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सांविधानिक विधि

COI के तहत धार्मिक स्वतंत्रता

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 30-Oct-2023

परिचय

लोगों के जीवन में धर्म के महत्त्व को पहचानते हुए, भारत के संविधान 1950 (COI) के अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।

भारत, एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म चुनने और उसका पालन करने का अधिकार एवं स्वतंत्रता देता है।

धर्म के अधिकार से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

Constitutional Provisions Relating to Right of Religion

  • अनुच्छेद 25: अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण एवं प्रचार करने की स्वतंत्रता।
  • अनुच्छेद 26: धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता।
  • अनुच्छेद 27: किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिये करों के संदाय के संबंध में स्वतंत्रता।
  • अनुच्छेद 28: कुछ शिक्षा संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता।

COI का अनुच्छेद 25

  • यह अनुच्छेद अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण एवं प्रचार करने की स्वतंत्रता से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि-

(1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंत:करण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण एवं प्रचार करने का समान हक होगा।

(2) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विद्यमान विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या राज्य को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो-

(a) धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य लौकिक क्रियाकलाप का विनियमन या निर्बन्धन करती है;

(b) सामाजिक कल्याण और सुधार के लिये या सार्वजनिक प्रकार की हिन्दुओं की धार्मिक संस्थाओं को हिंदुओं के सभी वर्गों और अनुभागों के लिये खोलने का उपबंध करती है।

स्पष्टीकरण I - कृपाण धारण करना और लेकर चलना सिक्ख धर्म के मानने का अंग समझा जाएगा।

स्पष्टीकरण II - खंड (2) के उप खंड (b) में हिंदुओं के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत सिक्ख, जैन या बौद्ध धर्म के मानने वाले व्यक्तियों के प्रति निर्देश है और हिन्दुओं की धार्मिक संस्थाओं के प्रति निर्देश का अर्थ तद्नुसार लगाया जाएगा।

  • इसमें न केवल धार्मिक मान्यताएँ बल्कि धार्मिक प्रथाएँ भी शामिल हैं।
  • ये अधिकार सभी व्यक्तियों के लिये उपलब्ध हैं - नागरिकों के साथ-साथ गैर-नागरिकों के लिये भी।

COI का अनुच्छेद 26

  • अनुच्छेद 26 धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को अधिकार होगा-
    • धार्मिक एवं पूर्त प्रयोजनों के लिये संस्थाओं की स्थापना और पोषण का;
    • अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने का;
    • जंगम और स्थावर संपत्ति के अर्जन और स्वामित्व का; और
    • ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का।
  • यह अनुच्छेद धर्म की सामूहिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है।
  • अनुच्छेद 26 द्वारा गारंटीकृत अधिकार धार्मिक संप्रदाय या उनके वर्गों जैसे संगठित निकाय का अधिकार है।
  • उच्चतम न्यायालय ने माना कि किसी धार्मिक संप्रदाय को निम्नलिखित तीन शर्तों को पूरा करना होगा:
    • यह उन व्यक्तियों का एक संग्रह होना चाहिये जिनके पास विश्वास या सिद्धांत की एक प्रणाली है जिसे वे अपने आध्यात्मिक कल्याण के लिये अनुकूल मानते हैं।
    • इसका एक साझा संगठन होना चाहिये।
    • इसे एक विशिष्ट नाम से नामित किया जाना चाहिये।

COI का अनुच्छेद 27

  • यह अनुच्छेद किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिये करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को ऐसे करों का संदाय करने के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा जिनके आगम किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि या पोषण में व्यय करने के लिये विनिर्दिष्ट रूप से विनियोजित किये जाते हैं।
  • यह अनुच्छेद न केवल कर लगाने पर रोक लगाता है, बल्कि किसी विशेष धर्म या संप्रदाय के प्रचार के लिये लोक निधि के उपयोग पर भी रोक लगाता है।

COI का अनुच्छेद 28

  • यह अनुच्छेद कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि -
    (1) राज्य निधि से पूर्णत: पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।
    (2) खंड (1) में की कोई बात ऐसी शिक्षा संस्था को लागू नहीं होगी जिसका प्रशासन राज्य करता है किंतु जो किसी ऐसे विन्यास या न्यास के अधीन स्थापित हुई है जिसके अनुसार उस संस्था में  धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है।
    (3) राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त या राज्य-निधि से सहायता प्राप्त करने वाली शिक्षा संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिये या ऐसी संस्थान में या उससे संलग्न स्थान में की जाने वाली धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिये तब तक बाध्य नहीं किया जाएगा जब तक कि उस व्यक्ति ने, या यदि वह अवयस्क है तो उसके संरक्षक ने, इसके लिये अपनी सहमति नहीं दे दी है।
  • इस प्रकार, अनुच्छेद 28 चार प्रकार के शिक्षा संस्थानों के बीच अंतर करता है:
    (a) पूरी तरह से राज्य द्वारा संचालित संस्थाएँ, जहाँ धार्मिक शिक्षा पूरी तरह से प्रतिबंधित है।
    (b) राज्य द्वारा प्रशासित लेकिन किसी विन्यास या न्यास के अधीन स्थापित संस्थान, जहाँ धार्मिक शिक्षा की अनुमति है।
    (c) राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान, जहाँ स्वैच्छिक आधार पर धार्मिक शिक्षा की अनुमति है।
    (d) राज्य से सहायता प्राप्त करने वाली संस्थाएँ, जहाँ स्वैच्छिक आधार पर धार्मिक शिक्षा की अनुमति है।

निर्णयज विधि

  • श्री शिरूर मठ के कॉमरेड एचआरई बनाम श्री एल.टी. स्वामीर (1954) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि COI का अनुच्छेद 25 प्रत्येक व्यक्ति को न केवल ऐसे धार्मिक विश्वास का पालन करने की स्वतंत्रता देता है, जिसे उसके निर्णय एवं विवेक द्वारा अनुमोदित किया जा सकता है, बल्कि ऐसे बाहरी कार्यों में अपना विश्वास प्रदर्शित करने के लिये भी, जिन्हें वह उचित समझता है तथा दूसरों की उन्नति के लिये अपने विचारों का प्रचार या प्रसार करता है, स्वतंत्रता देता है।
  • राजा बीराकिशोर बनाम ओडिशा राज्य (1964) में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि जगन्नाथ मंदिर अधिनियम, 1954 केवल सेवा पूजा के धर्मनिरपेक्ष पहलू को विनियमित करता है, इसलिये यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन नहीं है।
  • आचार्य जगदीश्वरानंद बनाम पुलिस आयुक्त, कलकत्ता (1983) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि आनंद मार्ग एक अलग धर्म नहीं बल्कि एक धार्मिक संप्रदाय है।
    • आनंद मार्ग, संप्रदाय की एक आवश्यक धार्मिक प्रथा (सड़कों पर तांडव करना) का गठन नहीं करता था।
    • And the performance of Tandava on public streets is not an essential practice of Ananda Marga.
  • एम. इस्माइल फारूकी बनाम भारत संघ (1994) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मस्ज़िद इस्लाम की अनिवार्य प्रथा नहीं है और एक मुसलमान कहीं भी, यहाँ तक कि खुले में भी नमाज़ अदा कर सकता है।
  • एम सिद्दीक (D) थ्रू एलआरएस बनाम महंत सुरेश दास (2019) में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि राज्य के पास संपत्ति हासिल करने की संप्रभु या विशेषाधिकार शक्ति है।
    • राज्य के पास मस्ज़िद, चर्च, मंदिर आदि जैसे उपासना स्थलों का अर्जन करने की भी शक्ति है तथा उपासना स्थलों का अर्जन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन नहीं है।