ICA की धारा 69
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भारतीय संविदा अधिनियम

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सिविल कानून

ICA की धारा 69

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 26-Apr-2024

परिचय:

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (ICA) की धारा 69 किसी हितबद्ध व्यक्ति द्वारा संदाय/भुगतान से संबंधित है। यह धारा उन पाँच दायित्वों में से एक है जिन्हें संविदा कल्प के रूप में जाना जाता है। संविदा कल्प ICA की धारा 68 से 72 में निहित हैं और ये दायित्व इस सिद्धांत पर आधारित हैं कि विधि के साथ-साथ न्याय को भी अनुचित संवृद्धि को रोकने का प्रयास करना चाहिये।

ICA की धारा 69

  • यह धारा उस व्यक्ति की प्रतिपूर्ति से संबंधित है जो किसी अन्य द्वारा शोध्य ऐसा धन देता है जिसके संदाय में वह व्यक्ति वह हितबद्ध है।
  • इसके अनुसार कोई व्यक्ति जो उस धन के, जिसके संदाय के लिये कोई अन्य व्यक्ति विधि द्वारा आबद्ध है, संदाय के लिये हितबद्ध है और इसलिये उसका भुगतान करता है, उस अन्य से प्रतिपूर्ति पाने का हकदार है।

ICA की धारा 69 का दृष्टांत:

  • B के पास ज़मींदार A द्वारा दिये गए पट्टे पर बंगाल में भूमि है। A द्वारा सरकार को संदेय राजस्व बकाया होने की दशा में सरकार द्वारा उसकी भूमि के विक्रय के लिये विज्ञापन दिया जाता है। राजस्व विधि के तहत, इस विक्रय के परिणामस्वरूप B का संबद्ध भूमि पर पट्टा रद्द किया जाना होगा। B, इस विक्रय को रोकने और उसके परिणामस्वरूप अपने पट्टे को रद्द होने से रोकने के लिये के लिये सरकार को A की सहायता से अपने शोध्य धन का संदाय करता है। A इस प्रकार संदाय की गई राशि को पुनः B को वापस करने के लिये आबद्ध है।

ICA की धारा 69 के तहत शर्तें:

धारा 69 के तहत दायित्व की शर्तें इस प्रकार हैं:

  • वादी को धन का संदाय करने में हितबद्ध होना चाहिये। जिस संपदा के संबंध में संदाय किया जाना है, उसमें संबद्ध व्यक्ति का विधिक स्वामित्व हित होना आवश्यक नहीं है।
  • इस धारा के अनुसार जिस व्यक्ति की संबद्ध संपदा में कोई रुचि नहीं है, वह उस संपदा के संबंध में संदाय करने हेतु हितबद्ध हो सकता है और इसके संबंध में कोई न्यायिक सीमा नहीं है।
  • वादी स्वयं संदाय करने के लिये बाध्य नहीं होना चाहिये। उसे केवल अपने हितों की रक्षा के लिये संदाय करने में हितबद्ध होना चाहिये।
  • प्रतिवादी पर संदाय की विधिक बाध्यता होनी चाहिये।
  • वादी को भुगतान स्वयं को न करके अपितु किसी अन्य व्यक्ति को करना होगा।
  • शोध्य धन का संदाय स्वेच्छया नहीं होना चाहिये।

निर्णय विधि:

  • आबिद हुसैन बनाम गंगा सहाय वाद में, G द्वारा संदेय बकाया सरकारी राजस्व की वसूली के लिये A के माल का अनुचित तरीके से अभिग्रहण कर लिया गया। A ने माल को विक्रय से बचाने के लिये शोध्य धन का संदाय किया। यह निर्णय किया गया कि वह G से रकम वसूलने का हकदार है।