निर्णय लेखन कोर्स – 19 जुलाई 2025 से प्रारंभ | अभी रजिस्टर करें










होम / भारतीय संविदा अधिनियम

सिविल कानून

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के अंतर्गत प्रतिग्रहण

    «    »
 12-Aug-2024

परिचय:

किसी भी संविदा के कारित होने के लिये प्रथम आवश्यक चरण प्रस्थापना एवं प्रतिग्रहण है।

  • कोई भी वैध संविदा तब तक नहीं मानी जाएगी जब तक कि प्रस्थापना का वैध प्रतिग्रहण न हो।

प्रस्थापना एवं प्रतिग्रहण की परिभाषा:

  • भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (ICA) की धारा 2 (a) प्रस्थापना को परिभाषित करती है:
    • जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने के उद्देश्य से कोई कार्य करने या प्रविरत रहने की अपनी इच्छा दूसरे व्यक्ति को संज्ञापित करता है, तो उसे प्रस्थापना करना कहा जाता है।
  • ICA की धारा 2 (b) में प्रावधान है कि जब कोई व्यक्ति जिसके समक्ष प्रस्थापना रखी जाती है, अपनी सहमति दे देता है तो प्रस्थापना स्वीकार कर ली जाती है।
  • जब प्रस्थापना स्वीकार कर ली जाती है तो वह वचन बन जाती है।

प्रतिग्रहण की संसूचना:

  • ICA की धारा 3 में प्रस्थापना के संसूचना, प्रतिग्रहण एवं प्रतिसंहरण का प्रावधान है।
    • इस धारा के अनुसार प्रतिग्रहण की संसूचना किसी कार्य या चूक द्वारा दी गई मानी जाएगी;
      • जिसके द्वारा वह संप्रेषण करना चाहता है।
      • या जिसका प्रभाव संप्रेषण करने का है।
  • डाक नियम:
    • ICA की धारा 4 में यह प्रावधान है कि प्रतिग्रहण की संसूचना कब पूरी हो जाती है। यहाँ जिस स्थिति को शामिल किया गया है उसे डाक नियम कहा जाता है, अर्थात् जब प्रतिग्रहण डाक द्वारा संप्रेषित किया जाता है।
    • प्रतिग्रहण की संसूचना पूरी हो जाती है।

प्रस्थापना कर्त्ता के विरुद्ध

जब प्रतिग्रहण की संसूचना संचरण के दौरान इस प्रकार रखा जाता है कि वह प्रतिग्रहीता की शक्ति से परे हो जाए।

प्रतिग्रहीता के विरुद्ध

जब मामला प्रस्थापना कर्त्ता के ज्ञान की आती है।

  • एन्सन के अनुसार "प्रतिग्रहण का अर्थ है बारूद की गाड़ी के लिये जलती हुई माचिस की तीली प्रस्तुत करना।"
  • हालाँकि डाक नियम के संबंध में भारतीय संदर्भ में उपरोक्त कथन सत्य नहीं होगा। ऐसा इसलिये है क्योंकि प्रतिग्रहण को वास्तव में रद्द किया जा सकता है।
  • एडम बनाम लिंडसेल (1818):
    • उनके विक्रय हेतु प्रस्थापना-पत्र वादी के पास 5 सितंबर को पहुँचा।
    • वादी ने प्रतिग्रहण पत्र पोस्ट किया जो 9 सितंबर को प्रतिवादी के पास पहुँचा।
    • प्रतिवादियों ने 8 सितंबर तक प्रतिग्रहण का इंतज़ार किया और फिर उनको अन्य पक्षों को बेच दिया।
    • प्रतिवादियों पर संविदा के उल्लंघन का वाद संस्थित किया गया तथा उन्होंने तर्क दिया कि जब तक प्रतिग्रहण वास्तव में प्राप्त नहीं हो जाता, तब तक यह एक बाध्यकारी संविदा नहीं है।
    • हालाँकि न्यायालय ने माना कि प्रतिग्रहण-पत्र पोस्ट किये जाने के क्षण से ही पूर्ण संविदा उत्पन्न हो जाती है।
  • हाउसहोल्ड फायर एंड एक्सीडेंटल इंश्योरेंस कंपनी बनाम ग्रांट (1879):
    • प्रतिवादियों ने वादी की कंपनी में शेयरों के आवंटन के लिये आवेदन किया।
    • वादी ने प्रतिग्रहण-पत्र पोस्ट किया, लेकिन यह तय समय पर नहीं पहुँचा।
    • न्यायालय ने माना कि प्रतिग्रहण-पत्र पोस्ट किये जाने के क्षण से ही संविदा अस्तित्व में आ गई थी।
  • टेलीफोन या टेलेक्स द्वारा संचार:
    • ICA यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि प्रतिग्रहण कब पूरा होगा, यदि संसूचना त्वरित हो तथा डाक के माध्यम से न हो।
    • एंटोरेस लिमिटेड बनाम माइल्स फार ईस्ट कॉर्पोरेशन (1955):
      • वादी ने लंदन से हॉलैंड में प्रतिवादी को प्रस्थापना-पत्र दिया।
      • प्रस्थापना को वादी की लंदन स्थित टेलेक्स मशीन द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
      • इस मामले में, यह माना गया कि तात्कालिक संसूचना के मामले में संविदा तभी पूर्ण हो जाती है जब प्रस्थापना कर्त्ता द्वारा प्रतिग्रहण प्राप्त कर लिया जाता है तथा संविदा उस स्थान पर की जाती है जहाँ प्रतिग्रहण प्राप्त किया जाता है।
    • भगवानदास बनाम गिरधारीलाल (1966):
      • इस मामले में अपीलकर्त्ता भगवानदास गोवर्द्धनदास केडिया ऑयल मिल्स ने प्रतिवादी मेसर्स गिरधारीलाल पुरुषोत्तमदास एंड कंपनी को टेलीफोन पर बीज की आपूर्ति करने पर प्रस्थापना व्यक्त की थी।
      • उच्चतम न्यायालय ने माना कि यदि प्रस्थापना टेलीफोन द्वारा की जाती है तो प्रतिग्रहण का स्थान वह स्थान होगा जहाँ प्रतिग्रहण की संसूचना प्रस्थापना देने वाले व्यक्ति द्वारा प्राप्त किया जाता है, या हम कह सकते हैं कि वह स्थान जहाँ प्रस्थापना कर्त्ता उपस्थित है।

वैध प्रतिग्रहण की अनिवार्यताएँ:

  • ICA की धारा 7 में प्रावधान है कि प्रतिग्रहण पूर्ण होना चाहिये।
    • प्रतिग्रहण इस प्रकार होना चाहिये:
      • पूर्णतया
      • अयोग्य
    • प्रतिग्रहण का तरीका:
      • इसे किसी सामान्य और उचित तरीके से व्यक्त किया जाना चाहिये।
      • यदि प्रस्थापना में प्रतिग्रहण का प्रावधान निर्धारित किया गया है तो उसका पालन किया जाना चाहिये।
      • यदि प्रावधान निर्धारित है तथा प्रतिग्रहण उस प्रावधानित विधि से नहीं किया जाता है।
      • प्रस्थापना कर्त्ता उचित समय के अंदर आग्रह कर सकता है कि प्रस्थापना को निर्धारित तरीके से स्वीकार किया जाए।
      • यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है तो वह प्रतिग्रहण को स्वीकार कर लेता है।

प्रतिग्रहण के प्रकार:

  • ICA की धारा 8 के अनुसार, प्रतिग्रहण इस प्रकार हो सकता है:
    • शर्तों का पालन, या
    • पारस्परिक वचन के लिये किसी भी प्रतिफल का प्रतिग्रहण।
  • शर्तों के निष्पादन द्वारा प्रतिग्रहण:
    • कार्लिल बनाम कार्बोलिक स्मोक बॉल कंपनी (1983):
      • इस मामले में एक कंपनी थी जिसने इन्फ्लूएंज़ा के इलाज के लिये स्मोक बॉल नामक एक नया उत्पाद बनाया था।
      • एक विज्ञापन जारी किया गया था जिसमें कहा गया था कि अगर कोई निर्धारित कोर्स का उपयोग करने के बाद भी इन्फ्लूएंज़ा से बीमार हो जाता है तो उसे 100 पाउंड का इनाम दिया जाएगा।
      • ग्राहक ने कंपनी के विरुद्ध इस आधार पर मामला संस्थित किया था कि उन्हें इन्फ्लूएंज़ा हो गया है।
      • इस मामले में न्यायालय ने माना कि जो कोई भी विज्ञापन में दी गई शर्तों को पूरा करता है, वह प्रस्थापना को स्वीकार करता है। इस प्रकार, शर्तों का पालन करना प्रस्थापना को स्वीकार करना है।
  • किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रतिग्रहण मान्य नहीं:
    • पोवेल बनाम ली(1908);
      • स्कूल में एक पद रिक्त था। वादी ने उसी के लिये आवेदन किया।
      • आवेदन को बोर्ड के सदस्यों के पास भेजा गया तथा वे इस पर चर्चा कर रहे थे, जिसमें उन्होंने वादी को कार्य के लिये नियुक्त करने का निर्णय किया।
      • इस विषय में वादी को कोई सूचना नहीं थी। हालाँकि, बोर्ड के एक सदस्य ने जाकर वादी को यह कथन बताया।
      • बाद में उनकी नियुक्ति रद्द कर दी गई। वादी ने यह वाद संस्थित किया था।
      • न्यायालय ने इस मामले में माना कि वैध प्रतिग्रहण के अस्तित्व में आने के लिये कोई अधिकृत व्यक्ति होना चाहिये जो इसे वादी तक पहुँचाएँ।
      • यहाँ संसूचना आधिकारिक क्षमता में नहीं की गई थी जिससे यह वैध संसूचना नहीं थी।
        • मौन का अर्थ प्रतिग्रहण नहीं है।
    • फ़ेल्टहाउस बनाम बिंडले (1862):
      • इस मामले में एक चाचा ने अपने भतीजे से कहा, "अगर मैं उसके विषय में और कुछ नहीं सुनूँगा, तो मैं घोड़े को अपना ही समझूंगा।"
      • भतीजे ने कोई उत्तर नहीं दिया। हालाँकि बाद में संयोग से घोड़ा बूढ़ा हो गया था।
      • चाचा ने भतीजे के विरुद्ध वाद संथित किया।
      • इस मामले में न्यायालय ने माना कि कोई संविदा नहीं था क्योंकि इसमें प्रतिग्रहण का अभाव था।
      • न्यायालय ने माना कि मौन प्रतिग्रहण के तुल्य नहीं है।
  • प्रति-प्रस्थापना प्रतिग्रहण के तुल्य नहीं है:
    • हाइड बनाम रेंच (1840):
      • इस मामले में रेंच ने हाइड को अपनी ज़मीन 1200 पाउंड में विक्रय हेतु प्रतिग्रहण किया।
      • लेकिन हाइड ने 950 पाउंड में ज़मीन क्रय हेतु प्रतिग्रहण किया। रेंच ने 950 पाउंड में ज़मीन विक्रय करने से मना कर दिया।
      • इसके बाद, हाइड 1200 पाउंड में ज़मीन क्रय करने के लिये सहमत हो गया।
      • बाद में उसने संविदा के उल्लंघन का वाद संस्थित किया।
      • न्यायालय ने माना कि कोई संविदा नहीं थी क्योंकि यह एक प्रति प्रस्थापना थी तथा इसमें कोई प्रतिग्रहण नहीं था।

प्रतिग्रहण का प्रतिसंहरण:

  • ICA की धारा 5 में प्रतिग्रहण एवं प्रस्थापना दोनों को प्रतिसंहरित करने का प्रावधान है।
    • इसमें यह प्रावधान है कि प्रतिग्रहण की संसूचना पूर्ण होने से पहले किसी भी समय प्रतिग्रहण को प्रतिग्रहीता के विरुद्ध प्रतिसंहरित किया जा सकता है, परंतु उसके बाद नहीं।

निष्कर्ष:

प्रतिग्रहण किसी संविदा का बहुत महत्त्वपूर्ण घटक है। वैध प्रतिग्रहण के बिना कोई भी वैध संविदा अस्तित्व में नहीं आ सकती। प्रतिग्रहण के लिये ऊपर बताए गए नियमों का पालन करना होगा।