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आपराधिक कानून
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के अंतर्गत निर्णयों की प्रासंगिकता
« »16-Aug-2024
परिचय:
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 5 में प्रावधान है कि साक्ष्य केवल मुद्दे के तथ्य एवं प्रासंगिक तथ्य के आधार पर ही दिया जा सकता है।
- BSA की धारा 34 से धारा 38 निर्णयों की प्रासंगिकता से संबंधित है।
- यह पहले भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 40 से धारा 44 में निहित था।
निर्णय के प्रकार:
- निर्णय दो प्रकार के होते हैं:
- लोकलक्षी निर्णय: जब कोई निर्णय पूरी दुनिया पर लागू होता है तथा केवल दो पक्षों के मध्य ही नहीं रहता है।
- व्यक्तिगत निर्णय: जब कोई निर्णय केवल दो पक्षों के मध्य ही लागू होता है।
BSA की धारा 34:
- BSA की धारा 34 में प्रावधान है कि पूर्व निर्णय जो दूसरे वाद या विचारण पर रोक लगाते हैं, प्रासंगिक हैं।
- BSA की धारा 34 में प्रावधान है:
- किसी सक्षम न्यायालय के किसी निर्णय, आदेश या डिक्री का अस्तित्व।
- जो विधि द्वारा न्यायालय को किसी वाद का संज्ञान लेने या विचारण करने से रोकता है।
- ऐसा निर्णय सुसंगत तथ्य है।
- जब प्रश्न यह हो कि क्या ऐसे न्यायालय को ऐसे वाद का संज्ञान लेना चाहिये या विचारण करना चाहिये।
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 11 में रेस ज्यूडिकाटा का नियम है जो एक ही मुद्दे पर एक ही पक्ष के मध्य वाद या मुकदमेबाज़ी पर रोक लगाता है।
- इसके अतिरिक्त, भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 20 (2) तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 300 दोहरा परिसंकट के सिद्धांत को निर्धारित करती है।
- BSA की धारा 34 का उद्देश्य कार्यवाही की बहुलता को रोकना है।
- यह IEA की धारा 40 में निहित है।
BSA की धारा 35:
- BSA की धारा 35 कुछ अधिकार क्षेत्रों में कुछ निर्णयों की प्रासंगिकता के विषय में प्रावधानित करती है।
- BSA की धारा 35 (1) निम्नलिखित अधिकार क्षेत्रों में दिये गए निर्णयों पर लागू होती है:
- प्रोबेट
- वैवाहिक
- दिवालियापन
- नावधिकरण
- उपरोक्त निर्णय:
- जो किसी व्यक्ति को कोई ऐसा चरित्र प्रदान करता है, या
- उससे लेता है या किसी विशेष वस्तु का अधिकारी बनाता है
- किसी निर्दिष्ट व्यक्ति के विरुद्ध नहीं बल्कि पूर्णतः।
- तब प्रासंगिक होगा जब किसी ऐसे व्यक्ति के किसी विधिक व्यक्तित्त्व, या
- किसी ऐसी वस्तु़ के लिये उसके शीर्षक का अस्तित्त्व प्रासंगिक हो।
- धारा 35 (2) में प्रावधान है कि ऐसा निर्णय, आदेश या डिक्री निम्नलिखित के संबंध में निर्णायक साक्ष्य होगा:
- कोई भी विधिक चरित्र जिसे यह प्रदान करता है, उस समय कारित होता है जब ऐसा निर्णय, आदेश या डिक्री लागू हुई थी।
- कोई भी विधिक व्यक्तित्त्व, जिसके लिये यह किसी ऐसे व्यक्ति को अधिकारी घोषित करता है, उस व्यक्ति को उस समय प्रोद्भूत होता है जब ऐसा निर्णय, आदेश या डिक्री घोषित करता है कि वह उस व्यक्ति को प्रोद्भूत हुई है।
- कोई भी विधिक व्यक्तित्व जिसे यह किसी ऐसे व्यक्ति से छीनता है, उस समय समाप्त हो जाता है जब ऐसे निर्णय, आदेश या डिक्री ने घोषित किया था कि वह समाप्त हो गया है या समाप्त हो जाना चाहिये।
- कोई भी वस्तु जिसके लिये यह किसी व्यक्ति को अधिकारी घोषित करता है, उस समय उस व्यक्ति की संपत्ति थी जब ऐसा निर्णय, आदेश या डिक्री घोषित करता है कि वह उसकी संपत्ति थी या होनी चाहिये।
- यह धारा पहले IEA की धारा 41 में निहित थी।
- BSA की धारा 2 (b) "निर्णायक साक्ष्य" को इस प्रकार परिभाषित करती है
- जब इस अधिनियम द्वारा एक तथ्य को दूसरे तथ्य का निर्णायक साक्ष्य घोषित कर दिया जाता है।
- न्यायालय एक तथ्य के सिद्ध हो जाने पर दूसरे तथ्य को सिद्ध मान लेगा।
- तथा उसे असत्य सिद्ध करने के उद्देश्य से साक्ष्य दिये जाने की अनुमति नहीं देगा।
BSA की धारा 36:
- BSA की धारा 36 BSA की धारा 35 में उल्लिखित निर्णयों, आदेशों या डिक्री के अतिरिक्त अन्य निर्णयों, आदेशों या डिक्री की प्रासंगिकता एवं प्रभाव से संबंधित है।
- BSA की धारा 36 में कहा गया है:
- धारा 35 में उल्लिखित निर्णयों, आदेशों और डिक्री के अतिरिक्त अन्य निर्णय, आदेश तथा डिक्री प्रासंगिक हैं।
- यदि वे जाँच से संबंधित सार्वजनिक प्रकृति के मामलों से संबंधित हैं।
- लेकिन ऐसे निर्णय, आदेश या डिक्री उस बात का निर्णायक साक्ष्य नहीं हैं जो वे कहते हैं।
- यह धारा पहले IEA की धारा 42 में समाहित थी।
BSA की धारा 37:
- BSA की धारा 37 में प्रावधान है कि BSA की धारा 34, 35 एवं 36 में उल्लिखित निर्णयों के अतिरिक्त अन्य निर्णय तब तक अप्रासंगिक हैं जब तक कि:
- ऐसे निर्णय, आदेश या डिक्री का अस्तित्व विवाद्यक तथ्य है या अधिनियम के किसी अन्य प्रावधान के अंतर्गत प्रासंगिक है।
- यह धारा पहले IEA की धारा 43 में समाहित थी।
BSA की धारा 38:
- BSA की धारा 38 में प्रावधान है कि निर्णय प्राप्त करने में छल या मिलीभगत या न्यायालय की अक्षमता सिद्ध की जा सकती है।
- BSA की धारा 38 में प्रावधान है कि किसी वाद या कार्यवाही में कोई भी पक्ष यह दिखा सकता है कि कोई निर्णय, आदेश या डिक्री जो प्रतिकूल पक्ष द्वारा सिद्ध की गई है, वह वैध थी।
- एक ऐसे न्यायालय द्वारा दिया गया जो इसे देने के लिये सक्षम नहीं है।
- छल से प्राप्त किया गया था।
- संलिप्तता से प्राप्त किया गया था।
- यह धारा पहले IEA की धारा 44 में समाहित थी।
निष्कर्ष:
BSA वह संविधि है जो प्रासंगिक तथ्यों के लिये प्रावधान करता है तथा इसलिये उन्हें सिद्ध किया जा सकता है। BSA की धारा 34 से धारा 38 प्रासंगिक निर्णयों के लिये प्रावधान करती है। इस प्रकार, इन प्रावधानों के अंतर्गत आने वाले निर्णयों के लिये साक्ष्य दिये जा सकते हैं।