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आपराधिक कानून

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत विशेष न्यायालय

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 24-Jun-2025

परिचय 

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) एक समग्र विधिक ढाँचे की स्थापना करता है, जिसके अंतर्गत विशेष न्यायालयों की व्यवस्था की गई है, जिससे बालकों के विरुद्ध किये गए अपराधों के मामलों में त्वरित एवं प्रभावी न्याय सुनिश्चित किया जा सके। अधिनियम के अध्याय 7 के अंतर्गत ऐसे विशिष्‍ट न्यायिक तंत्रों की स्थापना का निदेश दिया गया है, जो मामलों का संवेदनशीलता एवं विधिक विशेषज्ञता के साथ संज्ञान लें। यह ढाँचा भारत की बाल संरक्षण विधि प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है, जो समर्पित न्यायिक प्रक्रियाओं के माध्यम से अवयस्क पीड़ितों के कल्याण को प्राथमिकता देता है। 

विशेष न्यायालयों का अभिहित किया जाना और स्थापना 

  • धारा 28 - विशेष न्यायालयों को अभिहित किया जाना 
    • राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से, प्रत्येक जिले में लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपराधों के विचारण के विशेष उद्देश्य के लिये विशेष न्यायालयों होने के लिये अभिहित करेगी। 
    • इन न्यायालयों का गठन बाल यौन दुरूपयोग के मामलों के शीघ्र विचारण और विशेषज्ञतापूर्ण निपटान सुनिश्चित करने के लिये किया गया है। 
  • मुख्य उपबंध: 
    • प्रत्येक जिले में विद्यमान सेशन न्यायालयों में से किसी एक को विशेष न्यायालय के रूप में नामित किया जाना अनिवार्य है।  
    • बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 के अंतर्गत जो न्यायालय पहले ही बाल न्यायालय के रूप में अधिसूचित किये जा चुके हैं, उन्हें लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के अधीन विशेष न्यायालय माना जाएगा। 
    • विशेष न्यायालयों को संबंधित अपराधों पर अधिकारिता प्राप्त है, जिन पर दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अधीन एक साथ विचारण किया जा सकता है। 
    • इन न्यायालयों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67ख के अधीन अपराधों पर विचारण करने का प्राधिकार है, विशेष रूप से बालकों को चित्रित करने वाली लैंगिक रूप से स्पष्ट सामग्री से संबंधित। 

न्यायिक उपधारणा और सबूत का भार  

  • धारा 29 - कतिपय अपराधों के संबंध में उपधारणा 
    • विशेष न्यायालय लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के अधीन विनिर्दिष्ट अपराधों के लिये प्रतिकूल सबूत के भार की व्यवस्था के अधीन कार्य करते हैं। जब किसी व्यक्ति पर धारा 3, 5, 7 और 9 के अधीन अपराध करने, दुष्प्रेरित या प्रयत्न करने के लिये अभियोजन चलाया जाता है, तो न्यायालय यह उपधारणा करेगा अभियुक्त दोषी है, जब तक कि इसके विरुद्ध साबित न कर दिया जाए 
  • धारा 30 - आपराधिक मानसिक दशा की उपधारणा  
    • विधि विशेष न्यायालय लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) मामलों में अभियुक्त की मानसिक दशा के बारे में एक उपधारणा स्थापित करता है। विशेष न्यायालय आपराधिक मानसिक दशा की विद्यमानता की उपधारणा करेगा, तथा अभियुक्त पर यह साबित करने का भार डालेगा कि ऐसी मानसिक दशा युक्तियुक्त संदेह से परे नहीं है। 
    • आपराधिक मानसिक दशा में सम्मिलित हैं: 
      • अपराध करने का आशय 
      • आपराधिक कृत्य के पीछे का हेतुक।  
      • सुसंगत तथ्यों का ज्ञान। 
      • विनिर्दिष्ट तथ्यों पर विश्वास या विश्वास करने का कारण। 

प्रक्रियात्मक रुपरेखा और विधि का लागू होना  

  • धारा 31 - दण्ड प्रक्रिया संहिता का लागू होना  
    • विशेष न्यायालय दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के उपबंधों के अधीन काम करते हैं, जिसमें लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) मामलों के लिये विनिर्दिष्ट अनुकूलन सम्मिलित हैं। इन न्यायालयों को प्रक्रियात्मक उद्देश्यों के लिये सेशन न्यायालय माना जाता है, जो बाल संरक्षण पर विशेष ध्यान बनाए रखते हुए स्थापित आपराधिक न्याय प्रक्रियाओं के साथ संगति सुनिश्चित करते हैं। 
  • प्रक्रियात्मक पहलू: 
    • दण्ड प्रक्रिया संहिता के सभी उपबंध लागू होते हैं जब तक कि लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) द्वारा विशेष रूप से संशोधित न किया जाए। 
    • जमानत और बंधपत्र उपबंध लागू रहेंगे। 
    • विशेष न्यायालयों को नियमित सेशन न्यायालयों के समान ही प्रधिकार प्राप्त हैं। 
    • विशेष न्यायालयों के समक्ष अभियोजकों को दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन लोक अभियोजक माना जाता है। 

विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति 

  • धारा 32 - विशेष लोक अभियोजक 
    • अधिनियम में प्रत्येक विशेष न्यायालय के लिये समर्पित विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति अनिवार्य की गई है, जिससे लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) मामलों में विशेष अभियोजन सुनिश्चित किया जा सके। इन अभियोजकों को विशेष रूप से लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) अधिनियम के उपबंधों के अधीन मामलों को संभालने के लिये नियुक्त किया गया है। 
  • पात्रता एवं नियुक्ति मानदंड: 
    • अधिवक्ता के रूप में न्यूनतम सात वर्ष का अनुभव 
    • राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से नियुक्त किया जाता है। 
    • दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 2(प) के अधीन डीम्ड लोक अभियोजक।  
    • लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) मामलों पर विशेष अधिकारिता 
    • दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत लोक अभियोजकों पर लागू सभी उपबंधों के अधीन। 
  • व्यावसायिक आवश्यकताएँ: 
    • आपराधिक विधि में विशेषज्ञता का प्रदर्शन किया। 
    • बाल मनोविज्ञान और आघात-सूचित दृष्टिकोण को समझना। 
    • बाल पीड़ितों के मामलों को संवेदनशीलता से निपटाने की प्रतिबद्धता। 
    • बाल यौन शोषण मामलों के लिये विशेष अभियोजन प्रोटोकॉल का पालन करना। 

निष्कर्ष 

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के अधीन विशेष न्यायालयों का ढाँचा बाल यौन शोषण के मामलों में भारत के दृष्टिकोण में एक आदर्श बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है, जो विशेष न्यायिक संचालन और त्वरित न्याय वितरण पर बल देता है। नामित विशेष न्यायालयों, प्रतिकूल सबूत के भार की विधिक व्यवस्था तथा प्रशिक्षित विशेष अभियोजकों के माध्यम से यह अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि बाल पीड़ितों को समुचित विधिक संरक्षण एवं आवश्यक सहायता प्राप्त हो। यह समेकित विधिक ढाँचा विधायिका की इस प्रतिबद्धता का परिचायक है कि एक बाल-मित्र न्याय प्रणाली की स्थापना की जाए, जो अवयस्क पीड़ितों के अधिकारों एवं कल्याण को सर्वोपरि रखते हुए निष्पक्ष विचारण के सिद्धांतों का भी पूर्णतः अनुपालन करे।