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सिविल कानून

अजन्मे व्यक्ति के लाभ हेतु स्थानांतरण

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 06-Nov-2023

परिचय

  • संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) की धारा 5 के तहत संपत्ति का अंतरण जीवित व्यक्तियों के बीच होने का प्रावधान है।
  • अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिये स्थानांतरण से संबंधित कानून संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 13 में वर्णित है।

धारा 13- संपत्ति अंतरण अधिनियम,1882

  • जहाँ कि संपत्ति के अंतरण पर उसकी संपत्ति में कोई हित उसी अंतरण द्वारा सृष्ट किसी पूर्विक हित के अध्यधीन ऐसे व्यक्ति के लाभ के लिये, जो अंतरण की तारीख को अस्तित्त्व में न हो, सृष्ट किया जाता है, वहाँ ऐसे व्यक्ति के लाभ के लिये सृष्ट हित प्रभावी न होगा जब तक कि उसका विस्तार संपत्ति में अंतरक के संपूर्ण अवशिष्ट हित पर न हो।
    • दृष्टांत- A उस संपत्ति का, जिसका वह स्वामी है, B को अनुक्रमाशः अपने और अपनी आशयित पत्नी के जीवनपर्यंत के लिये और उत्तरजीवी की मृत्यु के पश्चात आशयित विवाह से ज्येष्ठ पुत्र के जीवनपर्यंत के लिये और उसकी मृत्यु के पश्चात A के दूसरे पुत्र के लिये न्यास के रूप में अंतरित करता है। ज्येष्ठ पुत्र के लाभ के लिये इस प्रकार के सृष्ट हित प्रभावशील नहीं होता है क्योंकि उसका विस्तार उस संपत्ति में A के संपूर्ण अवशिष्ट हित पर नहीं है।
      • इसे सरल शब्दों में इस प्रकार समझा जा सकता है- A और A की आशयित पत्नी के जीवनपर्यंत के लिये, A ने न्यास में संपत्ति B को अंतरित की। यह उनकी मृत्यु के बाद आशयित विवाह से पहले पुत्र को दिया जाना था, और फिर उसकी मृत्यु के बाद A के दूसरे पुत्र को दिया जाना था। चूँकि, यह संपत्ति में अवशिष्ट पूर्ण हित को शामिल नहीं करता है, इसलिये सबसे बड़े बेटे के लाभ के लिये हित शून्य है।

धारा 13 का अंतर्निहित सिद्धांत

  • धारा 13 के अंतर्निहित सिद्धांत के अनुसार, जो व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को संपत्ति अंतरित करता है, उसे अगली पीढ़ियों द्वारा संपत्ति के स्वतंत्र व्ययन की क्षमता को प्रतिबंधित नहीं करना चाहिये।

धारा 13 के अंतर्गत नियम

  • सीधे अंतरण का निषेध
    • संपत्ति को सीधे किसी अजन्मे व्यक्ति को अंतरित नहीं किया जा सकता है, किंतु निम्नलिखित शर्तों के अधीन संपत्ति को अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिये अंतरित किया जा सकता है:
      • अंतरण के समय मौजूद व्यक्ति के पक्ष में आजीवन हित अजन्मे बच्चे के अंतरण से पूर्व होना चाहिये।
      • केवल पूर्ण हित ही किसी अजन्मे व्यक्ति के पक्ष में अंतरित किया जा सकता है।
  • पूर्व जीवनपर्यंत हित
    • किसी अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिये अंतरण, अंतरण की तिथि पर अस्तित्त्व में रहने वाले व्यक्ति के पक्ष में जीवनपर्यंत हित से पहले होना चाहिये। ताकि ऐसा जीवित व्यक्ति अपने जीवनपर्यंत और तब तक संपत्ति का स्वामित्त्व अपने पास रखता है जब तक अजन्मा व्यक्ति अस्तित्त्व में न आ जाए। इस जीवनपर्यंत हित की समाप्ति के बाद संपत्ति अंततः अजन्मे व्यक्ति को अंतरित हो जाएगी, जो उस समय तक अस्तित्त्व में आ जाता है।
    • A अपने घर को जीवनपर्यंत के लिये X को अंतरित करता है और उसके बाद A के अजन्मे बेटे को। अजन्मे के पक्ष में घर का यह अंतरण मान्य है। यहाँ चूँकि अंतरण की तिथि तक अजन्मा व्यक्ति अस्तित्त्व में नहीं है, अतः A घर को सीधे उसे अंतरित नहीं कर सका। इसलिये, A को X के पक्ष में जीवन हित का सीधा अंतरण करना था जो अंतरण की तिथि तक एक जीवित व्यक्ति है। X की मृत्यु के पश्चात, घर का हित अंतिम लाभार्थी, अर्थात् अजन्मे व्यक्ति को दिया जाएगा।
  • पूर्ण हित
    • केवल संपत्ति का पूर्ण हित किसी अजन्मे व्यक्ति के पक्ष में अंतरित किया जा सकता है। अजन्मे व्यक्ति को सीमित अथवा जीवनपर्यंत हित नहीं दिया जा सकता।
    • धारा 13 अधिनियमित करती है कि अजन्मे व्यक्ति को दिया गया हित संपत्ति में अंतरक के शेष हित का पूरा हिस्सा होना चाहिये।
      • दृष्टांत: A अपनी संपत्तियों को जीवन भर के लिये X को अंतरित करता है जो अविवाहित है और फिर पूरी तरह से X के सबसे बड़े बच्चे को अंतरित करता है। X के सबसे बड़े बच्चे के पक्ष में स्थानांतरण वैध है।

कानूनी परिणाम

  • अंतरण की तिथि तक जीवित मध्यस्थ व्यक्ति को केवल जीवनपर्यंत हित दिया जाना है। जीवनपर्यंत हित प्रदान करने का अर्थ है उसे संपत्ति के भोग अथवा स्वामित्त्व का अधिकार देना। उसे एक न्यासी की तरह संपत्ति की रक्षा करनी होती है। जीवनपर्यंत हित की समाप्ति के बाद सारी संपत्ति अथवा हित अस्तित्त्व में आए अजन्मे व्यक्ति को दे दिया जाएगा।
  • जीवन भर संपत्ति रखने वाले व्यक्ति की मृत्यु से पहले अजन्मे व्यक्ति का अस्तित्त्व में होना अनिवार्य है। यदि अजन्मा व्यक्ति एक महीने के बाद अस्तित्त्व में आता है, तो संपत्ति अंतरणकर्त्ता अथवा उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को वापस कर दी जाएगी।
    • ऐसा इसलिये होता है क्योंकि जीवनपर्यंत हित समाप्त होने के बाद संपत्ति के स्वामित्त्व का कार्यभार स्थगित नहीं रखा जा सकता।

अग्रणी वाद कानून

  • गिरजेश दत्त बनाम दाता दीन (1934)
    • तथ्य: A ने अपनी संपत्ति अपने भतीजे की पुत्री B को जीवनपर्यंत के लिये उपहार स्वरुप दे दी और फिर पूरी तरह से B के पुत्रों को, यदि उसके पास कोई हो तो, किंतु B के किसी भी पुत्र की अनुपस्थिति में, संपत्ति का अधिकार B की पुत्री को अलगाव की शक्ति के बिना प्रदान कर दिया जाएगा। यदि भतीजे के का कोई वंशज ही न हो, तो B की मृत्यु का कोई अर्थ नहीं रहा।
    • निर्णय: न्यायालय ने निर्णय दिया कि B को प्राप्त उपहार जीवनपर्यंत वैध था क्योंकि अंतरण की तिथि तक B जीवित व्यक्ति था, किंतु B की पुत्री के पक्ष में उपहार TPA के धारा 13 के तहत शून्य था क्योंकि उसे केवल सीमित हित दिया गया था, उसने पूर्ण हित नहीं दिया था। चूँकि यह स्थानांतरण अमान्य था, इसलिये इस पर आधारित आगामी अंतरण भी निश्चित नहीं किया जा सका।