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सांविधानिक विधि
जी. बसी रेड्डी बनाम अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (2003) 4 SCC 225
»11-Aug-2023
परिचय
भारत का संविधान, 1950 के अनुच्छेद 12 की व्याख्या के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण निर्णय है। प्रदीप कुमार विश्वास बनाम भारतीय रासायनिक विज्ञान संस्थान और अन्य (2002) में न्यायालय द्वारा सुनाए गए निर्णय के अनुसार "अनुच्छेद 12 के तहत एक राज्य या प्राधिकरण के लिये परीक्षण" का वर्तमान प्रकरण/वाद में पालन किया गया।
उपर्युक्त प्रकरण/वाद में यह निर्णय दिया गया कि अनुच्छेद 12 के तहत किसी प्राधिकरण के लिये किसी संविधि के माध्यम से स्थापित होना अब आवश्यक नहीं है और अन्य शर्तों के साथ-साथ सरकार का व्यापक नियंत्रण भी आवश्यक है।
तथ्य
‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (International Crops Research Institute for the Semi-Arid Tropics- ICRISAT) एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर परामर्शी समूह (CGIAR) के तहत विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा सह-स्थापित किया गया है। इस संस्थान में विश्व भर की लगभग 50 सरकारें और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन शामिल हैं। इसका उद्देश्य पर्यावरणीय रूप से सतत् तरीकों से ग्रामीण क्षेत्र की निर्धनता और भुखमरी को कम करने के लिये अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय देशों को विकसित करने में मदद करना है।
अपीलकर्त्ता प्रतिवादी (ICRISAT) के कर्मचारी थे।
अंतर्राष्ट्रीय रोज़गार नीतियों के कारण तैयार किये गए ‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (International Crops Research Institute for the Semi-Arid Tropics- ICRISAT) कार्मिक नीति वक्तव्य के आधार पर सिद्ध कदाचार के आरोप में उनकी सेवाएँ समाप्त कर दी गईं थी।
उसने ‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ और भारत संघ के खिलाफ कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका दायर की। दोनों याचिकाएँ खारिज़ कर दी गईं, इसलिये यह अपील शीर्ष न्यायालय में गई।
शामिल मुद्दे
क्या ‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (ICRISAT) भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के दायरे में, "राज्य" के अर्थ में आता है?
वास्तव में ‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (ICRISAT) किस प्रकार का संगठन है?
क्या उच्च न्यायालय का यह मानना सही था कि वह अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार के प्रति उत्तरदायी नहीं है?
टिप्पणियाँ
अनुच्छेद 226 के तहत कोई भी रिट तभी लागू होती है जब याचिकाकर्त्ता यह स्थापित करता है कि उसके मूल अधिकार, या किसी अन्य विधायी अधिकार का उल्लंघन किया गया है। यह दावा कि ‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (ICRISAT) ने अनुच्छेद 14 और 16 के तहत अपीलकर्त्ता के मूल अधिकारों का उल्लंघन किया है, ‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (ICRISAT) के खिलाफ केवल तभी स्वीकार्य होगा जब यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत एक राज्य या प्राधिकरण हो।
यह निर्धारित करने के लिये ऐसे परीक्षणों के बाद कि क्या कोई संगठन अनुच्छेद 12 के तहत एक राज्य या प्राधिकरण था, ‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (ICRISAT) को नीचे उल्लिखित आधारों पर अनुच्छेद 12 के तहत एक राज्य नहीं पाया गया :
‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (ICRISAT) को एक गैर-लाभकारी संगठन माना जाता था जिसका उद्देश्य विकासशील देशों को पर्यावरणीय रूप से सतत् तरीकों से ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता और भुखमरी को कम करने में मदद करना था।
इसकी स्थापना सरकार द्वारा नहीं की गई थी और इसने भारत सहित बड़ी संख्या में विभिन्न देशों को स्वेच्छा से अपनी सेवाएँ प्रदान कीं।
‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (ICRISAT) पर न तो सरकार का नियंत्रण था और न ही यह सरकार के प्रति उत्तरदायी था।
‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (ICRISAT) में भारत सरकार का वित्तीय योगदान न्यूनतम था।
‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (ICRISAT) के प्रशासन में इसके 15 सदस्यों में से केवल 3 सरकारी अधिकारियों की भागीदारी शामिल है।
‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (ICRISAT) ने प्रदीप कुमार (2002) प्रकरण/वाद में संविधान पीठ द्वारा निर्धारित किसी भी कसौटी को पूरा नहीं किया और इसलिये ‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (ICRISAT) को भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत एक राज्य या अन्य प्राधिकरण नहीं माना गया।
अनुच्छेद 226 के तहत कोई रिट किसी 'व्यक्ति' के खिलाफ तभी हो सकती है यदि वह एक सांविधिक निकाय है या कोई सार्वजनिक कार्य करता है या सार्वजनिक या सांविधिक कर्तव्य का निर्वहन करता है और चूँकि ‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (ICRISAT) की स्थापना किसी संविधि द्वारा नहीं की गई थी और न ही इसकी गतिविधियों को सांविधिक रूप से नियंत्रित किया गया था, इसलिये न्यायालय ने माना कि ‘अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान’ (ICRISAT) के खिलाफ रिट याचिका दायर नहीं करना उच्च न्यायालय का सही निर्णय था।
निष्कर्ष
विकासशील देशों में ग्रामीण क्षेत्र की निर्धनता और भुखमरी को कम करने में मदद करने के लिये इस संगठन को गैर-लाभकारी अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र के रूप में स्थापित किया गया है, इसलिये यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के दायरे में नहीं आता है।
यह न तो सरकार द्वारा स्थापित है और न नियंत्रित तथा यह संस्थान स्वेच्छा से बड़ी संख्या में विभिन्न देशों को अपनी सेवाएँ प्रदान करता है।
नोट
भारत के संविधान का अनुच्छेद 12 राज्य के अर्थ से संबंधित है, जिसमें जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, “राज्य” के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान- मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी हैं ।
भारत के संविधान का अनुच्छेद 226 कुछ रिट जारी करने की उच्च न्यायालय की शक्ति से संबंधित है, अनुच्छेद 32 में किसी बात के होते हुए भी प्रत्येक उच्च न्यायालय को उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके संबंध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिये और किसी अन्य प्रयोजन के लिये उन राज्यक्षेत्रों के भीतर किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को या समुचित मामलों में किसी सरकार को ऐसे निदेश, आदेश या रिट जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, जो भी समुचित हो, निकालने की शक्ति होगी।