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आपराधिक कानून
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के अधीन अतिरिक्त अभियुक्तों को समन करना
06-Dec-2025
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नीरज कुमार उर्फ़ नीरज यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य "दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी दोषी व्यक्ति विधि की प्रक्रिया से बच न सके, जिससे यह सूक्ति "judex damnatur cum nocens absolvitur" (जब दोषी को दोषमुक्त कर दिया जाता है तब न्यायाधीश स्वयं निंदा का पात्र होता है) ।" न्यायमूर्ति संजय करोल और नोंगमेइकापम कोटिस्वर सिंह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति संजय करोल और नोंग्मीकापम कोटिश्वर सिंह की पीठ ने नीरज कुमार उर्फ़ नीरज यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) के मामले में उच्च न्यायालय के आदेश को अपास्त कर दिया और विचारण के दौरान सामने आए साक्ष्यों के आधार पर दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 319 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 358) के अधीन अतिरिक्त अभियुक्तों को समन की अनुमति दे दी।
नीरज कुमार उर्फ़ नीरज यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- 25 मार्च 2021 को अपीलकर्त्ता नीरज कुमार ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 187/2021 दर्ज कराई, जिसमें अभिकथित किया गया कि उसकी बहन निशि को उसके पति राहुल ने उसके वैवाहिक घर (ससुराल) पर गोली मार दी थी।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) उनकी नौ वर्षीय भतीजी सृष्टि से प्राप्त सूचना के आधार पर दर्ज की गई, जिसने उन्हें बताया कि उसके पिता ने उसकी माता को गोली मार दी थी।
- मृतका को पहले बुलंदशहर के सरकारी अस्पताल और फिर नोएडा के कैलाश अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उसे गोली लगने से हुई चोटों का इलाज कराया गया।
- उपचार के दौरान, मृतक के कथन दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अधीन दो मौकों पर अभिलिखित किये गए - 25 मार्च 2021 और 18 अप्रैल 2021, दोनों बार वीडियो रिकॉर्डिंग की गई।
- 25 मार्च 2021 को दिए गए अपने पहले कथन में उसने अपने पति राहुल का नाम उस व्यक्ति के रूप में लिया जिसने उसे गोली मारी थी।
- 18 अप्रैल 2021 को दिए गए अपने दूसरे कथन में, उसने आगे आरोप लगाया कि उसके पति ने अपनी माता राजो उर्फ़ राजवती, भाई शैतान उर्फ़ विनीत और बहनोई गब्बर के उकसावे पर उसे गोली मार दी थी।
- 15 मई 2021 को मृतका की मृत्यु हो गई।
- 20 मई 2021 को अपीलकर्त्ता ने SHO के समक्ष एक और परिवाद दर्ज कराया, जिसमें मृतका द्वारा अपने कथनों में नामजद किये गए उकसाने वालों (पति के नातेदारों) के विरुद्ध विधिक कार्रवाई का अनुरोध किया गया।
- 16 जुलाई 2021 को दायर आरोपपत्र में केवल राहुल (पति) का नाम धारा 302 और 316 भारतीय दण्ड संहिता के अधीन दर्ज किया गया है, जबकि परिवार के अन्य सदस्यों को दोषमुक्त कर दिया गया है।
- विचारण के दौरान, अपीलकर्त्ता से 28 मार्च 2022 को PW-1 के रूप में पूछताछ की गई, और अवयस्क पुत्री सृष्टि से 12 जुलाई 2022 को PW-2 के रूप में पूछताछ की गई।
- PW-2 ने परिसाक्ष्य में कहा कि उसके पिता ने उसकी दादी, चाचा और चाची के पति के उकसावे पर उसकी माता को गोली मार दी थी।
- इन साक्ष्यों और मृतक के कथनों के आधार पर अभियोजन पक्ष ने अतिरिक्त अभयुक्तों को समन के लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के अधीन आवेदन प्रस्तुत किया।
- विचारण न्यायालय ने 3 अगस्त 2023 को आवेदन को खारिज कर दिया, यह मानते हुए कि अभिलेख पर विद्यमान सामग्री धारा 319 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन असाधारण शक्ति का प्रयोग करने के लिये अपर्याप्त थी।
- अपीलकर्त्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष दाण्डिक पुनरीक्षण संख्या 4729/2023 दायर की, जिसे भी 22 अप्रैल 2024 को खारिज कर दिया गया।
- उच्च न्यायालय ने माना कि मृतक के कथनों को मृत्युकालिक कथन नहीं माना जा सकता, क्योंकि मृत्यु काफी समय बाद हुई थी, PW-1 प्रत्यक्षदर्शी नहीं थी, तथा पPW-2 ने प्रतिपरीक्षा में स्वीकार किया कि वह गोलियों की आवाज सुनने के बाद ही घटनास्थल पर पहुँची थी।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 एक असाधारण शक्ति है, जो यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी दोषी व्यक्ति न्याय से बच न सके, तथा इसके लिये प्रथम दृष्टया संलिप्तता को दर्शाने वाले ठोस साक्ष्य की आवश्यकता होती है, जो आरोप विरचित करने से अधिक संतोषजनक हो, किंतु दोषसिद्धि के मानक से कम हो।
- न्यायालय ने पाया कि PW-1 के परिसाक्ष्यसे प्रथम दृष्टया प्रत्यर्थियों की सक्रिय भागीदारी और उकसावे का संकेत मिलता है, तथा स्पष्ट किया कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) कोई विश्वकोश नहीं है, जिसमें हर सूक्ष्म विवरण की आवश्यकता होती है।
- PW-2 के परिसाक्ष्य पर, न्यायालय ने माना कि उच्च न्यायालय ने लघु-विचारण का संचालन करते समय यह निष्कर्ष निकालने में त्रुटी की कि वह प्रत्यक्षदर्शी नहीं थी, प्रतिपरीक्षा पर विश्वास करते हुए, न्यायालय ने कहा कि समन के प्रक्रम में यह दृष्टिकोण अग्राह्य था।
- न्यायालय ने इस तर्क को नामंजूर कर दिया कि PW-2 को कुछ सिखाया गया था, तथा यह भी कहा कि उसने धारा 161 के अपने कथन में भी प्रत्यर्थियों का नाम स्पष्ट रूप से बताया था, तथा स्पष्ट किया कि क्या उसने वास्तव में गोलीबारी देखी थी या उसके तुरंत बाद वहाँ पहुँची थी, यह मामला विचारण में ही अवधारित किया जाएगा।
- मृतक के कथनों पर न्यायालय ने कहा कि वे स्पष्ट रूप से मृत्युकालिक कथनों के रूप में साक्ष्य अधिनियम की धारा 32(1) के अंतर्गत आते हैं, तथा उच्च न्यायालय के इस तर्क को खारिज कर दिया कि सारवान् समय के बाद हुई मृत्यु उन्हें इस प्रकार अयोग्य बनाती है।
- न्यायालय ने दोहराया कि मृत्युकालिक कथन मजिस्ट्रेट के समक्ष अभिलिखित कराने की आवश्यकता नहीं है, डॉक्टर के प्रमाणीकरण का अभाव उन्हें अग्राह्य नहीं बनाता है, तथा किसी भी विसंगति की परीक्षा विचारण के दौरान की जानी चाहिये, न कि प्रारंभिक समन प्रक्रम में।
- न्यायालय ने पाया कि अभिलेख पर उपलब्ध सामग्री - मृतक के कथनों के साथ PW-1 और पीडब्लूPW-2 के कथन - से प्रथम दृष्टया प्रत्यर्थियों की सहभागिता का पता चलता है, तथा धारा 319 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन उन्हें समन करने के लिये पर्याप्त आधार विद्यमान है।
- अपील को स्वीकार कर लिया गया, उच्च न्यायालय के निर्णय को अपास्त कर दिया गया, तथा पक्षकारों को शीघ्र विचारण के लिये 8 जनवरी 2026 को विचारण न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने का निदेश दिया गया।
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 क्या है?
- यह उपबंध किसी अपराध के दोषी प्रतीत होने वाले अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध कार्यवाही करने की शक्ति प्रदान करता है।
- यह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 358 में निहित है।
- यह "judex damantur cum nocens absolvitur" के सिद्धांत पर आधारित है , जिसका अर्थ है कि जब दोषी को दोषमुक्त कर दिया जाता है तब न्यायाधीश स्वयं निंदा का पात्र होता है। इस धारा में कहा गया है कि-
- जहाँ किसी अपराध की जांच या विचारण के दौरान साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि किसी व्यक्ति में, जो अभियुक्त नहीं है, कोई ऐसा अपराध किया है जिसके लिये ऐसे व्यक्ति का अभियुक्त के साथ विचारण किया जा सकता है, वहाँ न्यायालय उस व्यक्ति के विरुद्ध उस अपराध के लिये जिसका उसके द्वारा किया जाना प्रतीत होता है, कार्यवाही कर सकता है।
- जहाँ ऐसा व्यक्ति न्यायालय में हाजिर नहीं है वहाँ पूर्वोक्त प्रयोजन के लिये उसे मामले की परिस्थितियों की अपेक्षानुसार, गिरफ्तार या समन किया जा सकता है ।
- कोई व्यक्ति जो गिरफ्तार या समन न किये जाने पर भी न्यायालय में हाजिर है, ऐसे न्यायालय द्वारा उस अपराध के लिये, जिसका उसके द्वारा किया जाना प्रतीत होता है. जांच या विचारण के प्रयोजन के लिये निरुद्ध किया जा सकता है।
- जहाँ न्यायालय उपधारा (1) के अधीन किसी व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही करता है, वहाँ—
- उस व्यक्ति के बारे में कार्यवाही फिर से प्रारंभ की जाएगी और साक्षियों को फिर से सुना जाएगा;
- खंड (क) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, मामले में ऐसे कार्यवाही की जा सकती है, मानो वह व्यक्ति उस समय अभियुक्त व्यक्ति था जब न्यायालय ने उस अपराध का संज्ञान किया था जिस पर जांच या विचारण प्रारंभ किया गया था।
- धारा 319 के आवश्यक तत्त्व:
- किसी अपराध की जांच या विचारण हो रहा है।
- साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि किसी व्यक्ति ने, जो अभियुक्त नहीं है, कोई ऐसा अपराध किया है जिसके लिये उस व्यक्ति पर अभियुक्त के साथ मिलकर विचारण चलाया जाना चाहिये।
वाणिज्यिक विधि
एम.एस.एम.ई. ऋणों पर पुरोबंध भार का निषेध
06-Dec-2025
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माँ तारिणी पोल्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड बनाम इंडियन बैंक और अन्य "जब विवेकाधिकार, बलपूर्वक में परिवर्तित हो जाता है, तो वह बैंकिंग नहीं रह जाता और अधिग्रहण बन जाता है। फ्लोटिंग-रेट क्रेडिट सुविधाओं पर पूर्व-संदाय या पुरोबंध भार लगाना, जो कि RBI के बाध्यकारी निदेशों द्वारा निषिद्ध है, ऐसे ही अनुचित परिवर्तन का उदाहरण है।" डॉ. न्यायमूर्ति संजीब के. पाणिग्रही |
स्रोत: उड़ीसा उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
डॉ. न्यायमूर्ति संजीव के. पाणिग्रही की पीठ ने माँ तारिणी पोल्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम इंडियन बैंक, मुख्य शाखा, बरहामपुर एवं अन्य (2025) के मामले में निर्णय दिया कि अस्थिर ब्याज दरों वाले सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास ऋणों पर पुरोबंध भार लगाना अवैध, मनमाना और RBI के बाध्यकारी निदेशों के विपरीत है, और ऐसे भारों पर बल दिये बिना बंधक संपत्ति के दस्तावेज़ों को तुरंत जारी करने का निदेश दिया।
माँ तारिणी पोल्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड बनाम इंडियन बैंक एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता, माँ तारिणी पोल्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड, एक रजिस्ट्रीकृत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSME) थी जिसकी रजिस्ट्रीकरण संख्या UDYAM-OD-11-0003310 थी, जो पोल्ट्री क्षेत्र में कार्यरत थी।
- सितंबर 2020 में, याचिकाकर्त्ता ने कृषि आधारित औद्योगिक इकाई स्थापित करने के लिये रजिस्ट्रीकृत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSME) योजना के अधीन 1.80 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता की मांग करते हुए इंडियन बैंक, बरहामपुर से संपर्क किया।
- फरवरी 2022 में, इंडियन बैंक ने 1.80 करोड़ रुपए का ऋण स्वीकृत किया, जिसमें 1.45 करोड़ रुपए का सावधि ऋण और 35 लाख रुपए की नकद ऋण सुविधा सम्मिलित थी, जो याचिकाकर्त्ता की अचल संपत्तियों पर न्यायसंगत बंधक के निर्माण के अधीन थी।
- याचिकाकर्त्ता ने अभिकथित किया कि बैंक अधिकारियों ने उन्हें 1.53 लाख रुपए प्रति वर्ष मूल्य की SBI लाइफ पर्सनल इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने के लिये विवश किया और इंकार करने पर बैंक ने चेक अनादरण कर दिया और 2023 के दौरान NEFT संव्यवहार में बाधा डाली।
- 22 मई 2023 को, याचिकाकर्त्ता के पोल्ट्री फार्म को काल बैसाखी तूफान के कारण भारी नुकसान हुआ। बीमा दावा प्रक्रिया के लिये बैंक से तत्काल संपर्क करने के बावजूद, एक वर्ष से अधिक समय तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया, जिससे गंभीर वित्तीय संकट उत्पन्न हो गया।
- निरतंर कठिनाइयों के कारण, याचिकाकर्त्ता ने ऋण अधिग्रहण के लिये HDFC बैंक से संपर्क किया। 22 मई 2024 और 26 मई 2024 की तारीखों वाले चेकों के माध्यम से इंडियन बैंक के सभी बकाया भुगतान के बाद, 26 मई 2024 को HDFC बैंक ने ऋण अधिग्रहण कर लिया।
- पूर्ण पुनर्भुगतान और अधिग्रहण के होते हुए भी, इंडियन बैंक ने बकाया राशि के 4% पर पुरोबंध भार की मांग की, जो सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSME) फ्लोटिंग-रेट ऋणों पर इस तरह के भारों को प्रतिबंधित करने वाले RBI के दिशानिर्देशों के विपरीत है।
- बैंक ने पूर्ण ऋण चुकौती के होते हुए भी याचिकाकर्त्ता के मूल स्वामित्व विलेख और संपत्ति के दस्तावेज़ वापस करने से इंकार कर दिया, जिसमें लगभग 2 करोड़ रुपए मूल्य की आवासीय संपत्ति और NH-16 के पास 5.9 एकड़ गराबारी भूमि शामिल थी।
- याचिकाकर्त्ता ने 4 जुलाई 2025 को परिवाद संख्या N2025260030026 के साथ RBI लोकपाल से संपर्क किया, किंतु शिकायत का समाधान नहीं हो सका क्योंकि तंत्र में व्यक्तिगत सुनवाई का प्रावधान नहीं था।
- बैंकिंग प्राधिकारियों के माध्यम से कोई प्रभावी उपाय उपलब्ध न होने पर याचिकाकर्त्ता ने उड़ीसा उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि बैंकिंग संविदा लोक विनियामक मानदंडों के अंतर्गत संचालित होती हैं, और जब RBI सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSME) के लिये सुरक्षा निर्धारित करता है, तो ऐसे निदेशों के साथ असंगत संविदात्मक शर्तों को लागू नहीं किया जा सकता।
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया बनाम रविंद्र (2002) के मामले पर विश्वास करते हुए , न्यायालय ने माना कि RBI के परिपत्र वाणिज्यिक बैंकों के लिये बाध्यकारी हैं, और ICICI बैंक बनाम आधिकारिक परिसमापक (2010) के अनुसार संविदा की शर्तें RBI के निदेशों को अधिभावी नहीं कर सकती हैं।
- न्यायालय ने पाया कि किसी भार का सार, न कि उसका लेबल, उसकी वैधता अवधारित करता है—"पूर्व भुगतान पर प्रसंस्करण शुल्क" या "स्विचओवर भार" जैसे प्रच्छन्न पूर्व भुगतान भार अवैध ज़ब्ती शुल्क हैं। बैंक द्वारा बाद में 4% से घटाकर 2% करने से मूल अवैधता का समाधान नहीं हो सकता।
- LIC ऑफ इंडिया बनाम उपभोक्ता शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र (1995) का हवाला देते हुए, न्यायालय ने कहा कि " डॉटी लाइन कॉन्ट्रैक्ट" में अनुचित संविदा शर्तों को, जहाँ कमजोर पक्षकारों के पास सौदेबाजी की शक्ति का अभाव है, खारिज किया जा सकता है।
- न्यायालय ने माना कि पुरोबंध शास्ति प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 3 के अधीन प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार है, जो प्रतिस्पर्धा को रोकता है और ऋण बाजार में उपभोक्ता के विकल्प को सीमित करता है।
- न्यायालय ने कहा कि यदि ऋण स्वीकृति में पुरोबंध भार की शर्तें शामिल हों, तो भी ऐसी धाराएँ बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21 और 35क के अधीन RBI के बाध्यकारी आदेशों से टकराएंगी, और स्वतः ही निरस्त हो जाएंगी।
- न्यायालय ने माना कि सांविधिक रूप से निषिद्ध मांगों के आधार पर मूल स्वामित्व विलेख जारी करने से बैंक का इंकार, अधिकार का दुरुपयोग है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 300-क का उल्लंघन है।
- न्यायालय ने इंडियन बैंक को निदेश दिया कि वह याचिकाकर्त्ता के संपत्ति दस्तावेज़ों को पुरोबंध भार पर बल दिये बिना तुरंत जारी करे, तथा एक महीने के भीतर अनुपालन शपथपत्र दाखिल करने का आदेश दिया।
पुरोबंध भार क्या हैं?
बारे में:
- पुरोबंध भार, जिसे पूर्वभुगतान शास्ति के रूप में भी जाना जाता है, बैंकों द्वारा लगाया जाने वाला भार है, जब कोई उधारकर्त्ता निर्धारित परिपक्वता तिथि से पहले ऋण चुका देता है।
- ऐतिहासिक रूप से इन भारों को शेष ऋण अवधि से प्रत्याशित ब्याज आय की हानि के लिये बैंकों को क्षतिपूर्ति के रूप में उचित ठहराया गया था।
- बैंकों ने तर्क दिया कि जब उधारकर्त्ता ऋण का समयपूर्व संदाय करते हैं, विशेष रूप से बेहतर ब्याज दर की पेशकश करने वाले प्रतिस्पर्धी ऋणदाताओं के पास जाने के लिये, तो इससे उनके राजस्व पूर्वानुमान और नकदी प्रवाह की योजना बाधित होती है।
- यद्यपी, ऐसे भार शीघ्र पुनर्भुगतान और ऋण पुनर्वित्त के लिये बाधक के रूप में कार्य करते हैं, तथा ऋण बाजार में उधारकर्त्ता की गतिशीलता और उपभोक्ता विकल्प को सीमित करते हैं।
- ऋण गतिशीलता को बढ़ावा देने और प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकने के लिये RBI द्वारा विभिन्न परिपत्रों के माध्यम से प्पुरोबंध भार लगाने पर क्रमिक रूप से प्रतिबंध लगाया गया है।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSME) संरक्षण का समर्थन करने वाला सांविधिक ढाँचा:
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 की धारा 10 में समय पर और निर्बाध ऋण प्रवाह सुनिश्चित करने के लिये RBI के दिशानिर्देशों के अनुरूप सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSME) के लिये प्रगतिशील ऋण नीतियों के निर्माण का प्रावधान है।
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को बैंकिंग कंपनियों की ऋण एवं उधार देने की प्रथाओं को विनियमित करने का अधिकार प्रदान करती है; तथा धारा 21(3) यह अनिवार्य करती है कि प्रत्येक बैंकिंग कंपनी, RBI द्वारा जारी सभी निदेशों का अनुपालन करेगी।
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35क, RBI को जनहित में बैंकिंग परिचालनों में हस्तक्षेप करने के लिये व्यापक अधिकार प्रदान करती है।
- भारतीय बैंकिंग संहिता एवं मानक बोर्ड (BCSBI) ने सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिये बैंक की प्रतिबद्धता संहिता तैयार की है, जिसमें निष्पक्ष एवं पारदर्शी बैंकिंग प्रथाओं के न्यूनतम मानक निर्धारित किये गए हैं।
पुरोबंध भार की प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रकृति:
- प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 3(1) ऐसे करारों पर रोक लगाती है जो प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं या पड़ने की संभावना रखते हैं।
- धारा 3(3)(ख) के अधीन प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रभावों की उपधारणा तब उत्पन्न होती है, जब कोई ऐसी प्रथा हो जिसके परिणामस्वरूप सेवाओं के प्रावधान में सीमा या नियंत्रण होता है।
- पुरोबंध शास्ति उधारकर्त्ताओं को विशेष संस्थाओं से बंधे रहने के लिये बाध्य करके प्रतिस्पर्धा को बाधित करती है, तथा व्यापार की स्वतंत्रता और उपभोक्ता की पसंद पर अनुचित प्रतिबंध अधिरोपित करती है।