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आपराधिक कानून
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNNS) के अधीन Zero FIR
«08-Jul-2025
परिचय
Zero FIR भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण सुधार है जो किसी भी पुलिस थाने को, अधिकारिता की परवाह किये बिना, किसी भी संज्ञेय अपराध के लिये प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने की अनुमति देता है। 2012 के निर्भया मामले के बाद न्यायमूर्ति वर्मा समिति की सिफ़ारिश पर लागू की गई यह व्यवस्था, क्षेत्रीय सीमाओं के कारण बिना किसी विलंब के, त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करती है। Zero FIR की अवधारणा, जिसका उद्देश्य अधिकारिता की सीमाओं की परवाह किये बिना अपराधों का शीघ्र पंजीकरण सुनिश्चित करना है, भारत में आपराधिक प्रक्रिया की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अधीन Zero FIR
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173 प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के पंजीकरण को नियंत्रित करती है, जिसमें Zero FIR की अवधारणा भी सम्मिलित है।
- कोई भी व्यक्ति किसी संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस को मौखिक रूप से, लिखित रूप से या इलेक्ट्रॉनिक संसूचना के माध्यम से किसी भी पुलिस थाने में दे सकता है, चाहे अपराध किसी भी स्थान पर किया गया हो।
- धारा में आगे यह भी उपबंध है कि जब सूचना मौखिक रूप से दी जाती है, तो उसे अधिकारी द्वारा या उसके निदेशानुसार लिखित रूप में प्रस्तुत किया जाएगा तथा सूचना देने वाले को पढ़कर सुनाया जाएगा, तथा प्रत्येक ऐसी सूचना पर उसे देने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर होंगे।
- इलेक्ट्रॉनिक संसूचना के लिये, सूचना देने वाले व्यक्ति द्वारा तीन दिन के भीतर हस्ताक्षर किये जाने पर उसे लेखबद्ध किया जाएगा, तथा उसका सार विहित पुस्तक में दर्ज किया जाएगा।
- Zero FIR को सीरियल नंबर "0" के साथ दर्ज किया जाता है और बाद में अन्वेषण के लिये अधिकारिता वाले पुलिस थाने को स्थानांतरित कर दिया जाता है।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173(2) के अनुसार, उप-धारा (1) के अधीन दर्ज की गई सूचना की एक प्रति इत्तिला देने वाले को या पीड़ित को तत्काल, निःशुल्क दी जाएगी।
- इससे पारदर्शिता सुनिश्चित होती है और शिकायतकर्ता को उनकी शिकायत के पंजीकरण का दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध होता है।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173(3) में यह उपबंध है कि तीन वर्ष या उससे अधिक किंतु सात वर्ष से कम के दण्ड वाले संज्ञेय अपराधों से संबंधित सूचना प्राप्त होने पर, भारसाधक अधिकारी, उप- पुलिस अधीक्षक के पद से नीचे का न हो के अधिकारी की पूर्व अनुमति से, या तो चौदह दिनों के भीतर यह पता लगाने के लिये प्रारंभिक जांच कर सकता है कि क्या प्रथमदृष्टया: विद्यमान है, या प्रथमदृष्टया: मामला बनने पर जांच के साथ आगे बढ़ सकता है।
- यदि कोई पुलिस अधिकारी Zero FIR, दर्ज करने से इंकार करता है, तो परिवादकर्त्ता भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 175 के अधीन पुलिस अधीक्षक या अन्य उच्च अधिकारियों से संपर्क कर सकता है ।
- पंजीकरण से इंकार करने वाले अधिकारी को कर्त्तव्य में लापरवाही के लिये अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
अनुपालन न करने पर दण्ड
- संज्ञेय अपराधों के लिये Zero FIR दर्ज करने में असफल रहने वाले पुलिस अधिकारियों को धारा 199 (ग) भारतीय न्याय संहिता (विधि के अधीन निदेश की अवहेलना करने वाला लोक सेवक) के अधीन दण्ड का सामना करना पड़ सकता है।
- इसमें उपबंध है कि जो कोई भी लोक सेवक होते हुए, संज्ञेय अपराध के संबंध में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 173 की उपधारा (1) के अंतर्गत उसे दी गई किसी सूचना को लेखबद्ध करने में असफल रहता है, उसे कम से कम छह मास के कठोर कारावास से, किंतु दो वर्ष तक के कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा।
संवेदनशील पीड़ितों के लिये विशेष उपबंध
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में धारा 173 के अंतर्गत संवेदनशील पीड़ितों के लिये विशिष्ट सुरक्षा सम्मिलित है।
- जब ऐसी महिलाओं द्वारा सूचना दी जाती है जिनके विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64-71, 74-79, या 124 के अंतर्गत अपराध किये जाने का अभिकथन किया है, तो ऐसी सूचना महिला पुलिस अधिकारी या किसी महिला अधिकारी द्वारा दर्ज की जाएगी।
- विधि में यह अनिवार्य किया गया है कि जो पीड़ित अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से नि:शक्त हैं, उनके लिये ऐसी इत्तिला पुलिस अधिकारी द्वारा अपराध की रिपोर्ट करने वाले व्यक्ति के निवास पर या उनकी पसंद के किसी सुविधाजनक स्थान पर, आवश्यकतानुसार दुभाषिए या विशेष प्रबोधक की उपस्थिति में अभिलिखित की जाएगी।
- इसके अतिरिक्त, ऐसी इत्तिला के अभिलेखन की वीडियो फिल्म की जाएगी, और पुलिस अधिकारी यथाशीघ्र धारा 183 की उपधारा (6) के खण्ड (क) के अधीन न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा कथन अभिलिखित करवाएगा।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के बीच तुलना
Zero FIR की अवधारणा को न्यायिक निर्णयों और दिशा-निर्देशों (ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार, 2014) के माध्यम से दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन पेश किया गया था। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता इन उपबंधों को संहिताबद्ध और सुदृढ़ करता है।
तुलनात्मक विश्लेषण इस प्रकार है:
उपबंध |
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 |
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 |
FIR दर्ज करना |
धारा 154 |
धारा 173(1) |
Zero FIR अवधारणा |
न्यायिक रूप से विकसित, संहिताबद्ध नहीं |
धारा 173 में स्पष्ट रूप से संहिताबद्ध |
अंतरण की प्रक्रिया |
स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया |
धारा 173(2) |
इंकार के विरुद्ध कार्रवाई |
धारा 154(3), न्यायिक उपचार |
धारा 175 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और धारा 199 (ग) भारतीय न्याय संहिता |
डिजिटल FIR दर्ज करना |
अनिवार्य नहीं |
धारा 173 के अधीन अनिवार्य |
ऐतिहासिक निर्णय
- ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (2014) : उच्चतम न्यायालय ने संज्ञेय अपराधों के लिये प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) का अनिवार्य पंजीकरण अनिवार्य कर दिया, जिससे Zero FIR की नींव रखी गई।
- आंध्र प्रदेश राज्य बनाम पुनाती रामुलु (1993) : इस बात पर बल दिया गया कि पुलिस अधिकारिता के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकती।
- सतविंदर कौर बनाम राज्य (1999) : Zero FIR की अवधारणा को सुदृढ़ किया गया, जिससे किसी भी पुलिस थाने पर प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने की अनुमति मिली।
निष्कर्ष
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अधीन Zero FIR का उपबंध पीड़ित-केंद्रित न्याय की दिशा में एक बड़ा परिवर्तन दर्शाता है, जो अधिकारिता की परवाह किये बिना किसी भी पुलिस थाने पर प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने की अनुमति देता है - लैंगिक अपराधों जैसे आवश्यक मामलों के लिये यह महत्त्वपूर्ण है। यह कठोर अनुपालन तंत्र के माध्यम से त्वरित कार्रवाई, समय पर साक्ष्य संरक्षण और उत्तरदायित्त्व सुनिश्चित करता है। सफल कार्यान्वयन पुलिस प्रशिक्षण, जन जागरूकता और e-FIR जैसे तकनीकी समर्थन पर निर्भर करता है।