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वाणिज्यिक विधि

भागीदारों के एक-दूसरे के प्रति संबंध

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 09-Jul-2025

परिचय 

भागीदारों के बीच संबंध भागीदारी विधि का मूल आधार हैं, जो यह निर्धारित करते हैं कि भागीदार कैसे परस्पर क्रिया करते हैं, निर्णय लेते हैं, लाभ-हानि साझा करते हैं और फर्म का कारबार कैसे संचालित करते हैं। भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 का अध्याय 3 इन अंतर-भागीदार संबंधों को नियंत्रित करने वाले व्यापक उपबंधों को उपबंधित करता है, जिसमें अनिवार्य कर्त्तव्यों और व्यतिक्रम नियमों, दोनों को स्थापित किया गया है जिन्हें भागीदारी करारों द्वारा संशोधित किया जा सकता है। 

भागीदारों के साधारण कर्त्तव्य (धारा 9) 

धारा 9 उन मौलिक कर्त्तव्यों को स्थापित करती है जो भागीदारों को एक दूसरे के प्रति निभाने होते हैं: 

  • सामान्य फायदे: भागीदारों को फर्म का कारबार सभी भागीदारों के अधिकतम सामान्य फायदे के लिये चलाना चाहिये 
  • सद्भावना: भागीदार सभी कारबार संव्यवहार में एक-दूसरे के प्रति न्यायपूर्ण और विश्वसनीय बने रहने के लिये आबद्ध हैं।  
  • पारदर्शिता: भागीदारों को सही लेखा-जोखा प्रस्तुत करना होगा तथा फर्म को प्रभावित करने वाले सभी मामलों की पूरी जानकारी किसी भी भागीदार या उनके विधिक प्रतिनिधि को देनी होगी।  
  • प्रत्ययी संबंध: यह धारा भागीदारों के बीच प्रत्ययी संबंध बनाता है, जिसके लिये अत्यंत सद्भावना और निष्ठा की आवश्यकता होती है। 
  • बागरी टेक्सटाइल्स बनाम गौरव ओवरसीज़ कॉर्पोरेशन (2012) मामलेमें, उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि भागीदारों का यह न्यासीय कर्त्तव्य है कि वे पूर्ण सद्भावना और पारस्परिक विश्वास बनाए रखें। उक्त मामले में, एक भागीदार ने जानबूझकर दूसरे भागीदार से महत्त्वपूर्ण जानकारी छिपाई, जिससे भागीदारी फर्म को नुकसान हुआ। न्यायालय ने निर्णय दिया कि ऐसा छिपाना एक भागीदार द्वारा दूसरे भागीदार के प्रति सद्भावना के कर्त्तव्य का उल्लंघन है। 

कपट से कारित हानि के लिये क्षतिपूर्ति करने का कर्त्तव्य (धारा 10) 

धारा 10 कपटपूर्ण संचालन के लिये भागीदारों पर कठोर दायित्त्व अधिरोपित करती है: 

  • प्रत्येक भागीदार को फर्म के कारबार के संचालन में कपट के कारण हुई किसी भी हानि के लिये फर्म को क्षतिपूर्ति करनी होगी। 
  • यह उपबंध सुनिश्चित करता है कि निर्दोष भागीदारों और फर्म को व्यक्तिगत भागीदारों की कपटपूर्ण कार्रवाइयों से बचाया जाए।  
  • यह कर्त्तव्य पूर्ण है और इसे करार द्वारा क्षमा नहीं किया जा सकता। 
  • यह कपटपूर्ण संचालन के परिणामस्वरूप होने वाली प्रत्यक्ष और परिणामी हानियों दोनों पर लागू होता है। 

संविदा द्वारा अधिकारों और कर्त्तव्यों का अवधारण (धारा 11) 

धारा 11 भागीदारी प्रशासन में लचीलापन उपबंधित करती है: 

  • संविदात्मक स्वतंत्रता: भागीदार संविदा द्वारा अपने पारस्परिक अधिकारों और कर्त्तव्यों को अवधारित कर सकते हैं, चाहे वे अभिव्यक्त हों या विवक्षित 
  • संशोधन: संविदा में सभी भागीदारों की सम्मति से परिवर्तन किया जा सकता है। 
  • व्यापार प्रतिबंध अपवाद: भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 27 के होते हुए भी, भागीदारी करार भागीदारों को प्रतिस्पर्धी कारबार करने से प्रतिबंधित कर सकते हैं।  
  • मोहनलाल अग्रवाल बनाम लक्ष्मी नारायण (2000) मामलेमें, न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि कारबार पर प्रतिबंध लगाने वाला करार तभी प्रवर्तनीय होगा जब वह युक्तियुक्त हो और फर्म के कारबार के हितों की सुरक्षा के लिये आवश्यक हो। यद्यपि, यदि प्रतिबंध अनुचित पाया जाता है या ऐसी सुरक्षा के लिये आवश्यक नहीं है, तो इसे कारबार पर प्रतिबंध लगाने के कारण शून्य और अप्रवर्तनीय माना जाएगा। 
  • कारबार का क्रम: अधिकार और कर्त्तव्य सुसंगत कारबार प्रथाओं के माध्यम से विवक्षित हो सकते हैं। 

कारबार का संचालन (धारा 12) 

धारा 12 कारबार प्रबंधन के लिये व्यतिक्रम नियम स्थापित करती है: 

  • भागीदारी का अधिकार: प्रत्येक भागीदार को कारबार के संचालन में भाग लेने का अधिकार है। 
  • परिश्रम का कर्तव्य: भागीदार अपने कर्त्तव्यों का तत्परतापूर्वक पालन करने के लिये आबद्ध हैं। 
  • बहुमत निर्णय : साधारण कारबार से संसक्त मामलों का निर्णय बहुमत से किया जा सकता है। 
  • सर्वसम्मत सम्मति: कारबार की प्रकृति में परिवर्तन के लिये सभी भागीदारों की सम्मति आवश्यक है। 
  • बहियों तक पहुँच: भागीदारों को फर्म की बहियों और अभिलेखों का निरीक्षण करने और उनकी प्रतिलिपि बनाने का अधिकार है। 

जुगल किशोर बनाम ज्योति (2009) मामलेमें, न्यायालय ने निर्णय दिया कि एक भागीदार को फर्म के बहीखातों का निरीक्षण करने का अधिकार है, किंतु इस अधिकार का प्रयोग गलत उद्देश्यों के लिये नहीं किया जाना चाहिये। फर्म के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिये गोपनीय जानकारी का प्रयोग करना सद्भावना के कर्त्तव्य का उल्लंघन है। 

पारस्परिक अधिकार और दायित्त्व (धारा 13) 

धारा 13 वित्तीय व्यवस्थाओं के लिये व्यापक व्यतिक्रम नियम उपबंधित करती है: 

पारिश्रमिक और लाभ साझाकरण: 

  • भागीदार कारबार संचालन में भाग लेने के लिये पारिश्रमिक के हकदार नहीं हैं, जब तक कि करार न हो। 
  • भागीदार लाभ में समान रूप से भाग लेते हैं और हानि में भी समान रूप से योगदान करते हैं। 
  • पूँजी पर ब्याज केवल लाभ से देय होता है, जब विशेषत: करार हो। 

वित्तीय दायित्त्व: 

  • कोई भी भागीदार जो ऐसी पूँजी के अतिरिक्त, जिसे लगाने का करार उसने कारबार के प्रयोजनों के लिये किया है, कोई संदाय या अधिदाय करता है, उस पर 6% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज पाने के हकदार हैं।  
  • फर्म को मामूली कारबार संचालन में किये गए संदायों के लिये भागीदारों को क्षतिपूर्ति देनी होगी। 
  • फर्म को अपनी संरक्षा के लिये की गई आपातकालीन कार्रवाई के लिये भागीदारों को क्षतिपूर्ति देनी होगी। 
  • भागीदारों को जानबूझकर की गई उपेक्षा के कारण हुई हानि के लिये फर्म को क्षतिपूर्ति देनी होगी। 

फर्म की संपत्ति (धारा 14) 

धारा 14 फर्म संपत्ति को व्यापक रूप से परिभाषित करती है: 

  • विस्तार : इसमें मूल रूप से फर्म में लाई गई या फर्म के प्रयोजनों के लिये अर्जित की गई समस्त संपत्ति सम्मिलित है। 
  • सद्भावना: इसमें मूलतः फर्म की संपत्ति के रूप में कारबार का गुडविल सम्मिलित है। 
  • उपधारणा: फर्म के धन से अर्जित संपत्ति को संपत्ति में के अधिकार और हित फर्म के लिये अर्जित समझे जाते है। 
  • अधिकार एवं हित: इसमें संपत्ति में सभी अधिकार एवं हित सम्मिलित हैं, न कि केवल स्वामित्व। 

फर्म की संपत्ति का उपयोजन (धारा 15) 

धारा 15 फर्म की संपत्ति के उपयोग को प्रतिबंधित करती है: 

  • फर्म की संपत्ति केवल कारबार के प्रयोजनों के लिये ही रखी और उपयोग की जानी चाहिये 
  • भागीदार करार के बिना फर्म की संपत्ति का उपयोग निजी लाभ के लिये नहीं कर सकते। 
  • यह उपबंध हितों के टकराव को रोकता है और फर्म की परिसंपत्तियों का उचित उपयोग सुनिश्चित करता है। 

भागीदारों द्वारा उपार्जित वैयक्तिक लाभ (धारा 16) 

धारा 16 हितों के टकराव से संबंधित है: 

लाभ के लिये जवाबदेही: 

  • भागीदारों को फर्म के संव्यवहार या फर्म की संपत्ति के उपयोग से व्युत्पन्न लाभ का लेखा-जोखा रखना होगा। 
  • फर्म के कारबारी संबंध या नाम के उपयोग से व्युत्पन्न लाभ का संदाय फर्म को किया जाना चाहिये 
  • प्रतियोगी कारबारों से प्राप्त लाभ फर्म को सौंप दिया जाना चाहिये 

प्रतियोगी कारबार पर प्रतिबंध: 

  • भागीदार लाभ का लेखा-जोखा रखे बिना प्रतियोगी कारबार नहीं चला सकते। 
  • इससे अनुचित प्रतिस्पर्धा को रोका जा सकता है और फर्म के हितों की संरक्षा होती है। 

फर्म में तब्दीली होने के पश्चात् अधिकार और कर्त्तव्य (धारा 17) 

धारा 17 फर्म में तब्दीली के दौरान निरंतरता को बताती है: 

पुनर्गठित फर्म: 

  • फर्म के संविधान में तब्दीली के पश्चात् भी अधिकार और कर्त्तव्य समान रहते हैं। 
  • निरंतरता सुनिश्चित करता है और विद्यमान व्यवस्था की संरक्षा करता है। 

अवधि का अवसान: 

  • जब फर्में निश्चित अवधि से आगे भी जारी रहती हैं, तो अधिकार और कर्त्तव्य इच्छाधीन भागीदारी के रूप में जारी रहते हैं। 
  • निरंतर संचालन के लिये विधिक निश्चितता उपबंधित करता है। 

अतिरिक्त उपक्रम: 

  • नये प्रोद्यम के अधिकार और कर्त्तव्य मूल उपक्रमों के समान ही होते हैं। 
  • फर्म की गतिविधियों में सुसंगत कारबार सुनिश्चित करता है। 

निष्कर्ष 

भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 का अध्याय 3, भागीदार संबंधों को नियंत्रित करने के लिये एक संतुलित ढाँचा तैयार करता है, जो सद्भावना, पारदर्शिता और न्यायसंगत व्यवहार पर बल देता है। ये उपबंध यह सुनिश्चित करते हैं कि भागीदारियाँ कुशलतापूर्वक संचालित हों और व्यक्तिगत भागीदारों के हितों की संरक्षा करें। अनिवार्य कर्त्तव्यों और लचीली संविदात्मक व्यवस्थाओं का संयोजन भागीदारियों को आवश्यक विधिक संरक्षण प्रदान करते हुए विशिष्ट कारबारी आवश्यकताओं के अनुकूल ढलने की अनुमति देता है। प्रभावी भागीदारी प्रशासन और विवाद निवारण के लिये इन उपबंधों को समझना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।