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सांविधानिक विधि

130वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2025

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 21-Aug-2025

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस 

परिचय 

संविधान (130वाँ संशोधन) विधेयक 2025, भारत के संविधान में विद्यमान एक गंभीर रिक्ति की पूर्ति हेतु प्रस्तावित एक महत्त्वपूर्ण विधायी उपाय है। इस विधेयक का तात्पर्य यह है कि यदि कोई मंत्री गंभीर आपराधिक आरोपों के अधीन निरंतर तीस दिनों या उससे अधिक अवधि तक कारावास अथवा न्यायिक अभिरक्षा में रहता है, तो उसे अपने पद से अनिवार्यतः पदमुक्त किया जाएगा। वर्तमान गृह मंत्री द्वारा उक्त विधेयक संसद में प्रस्तुत किया गया है, तथापि इसे तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा है। फलस्वरूप, इसे गहन समीक्षा एवं विचारार्थ संयुक्त संसदीय समिति को संदर्भित किया गया है। इस विधेयक का उद्देश्य जनविश्वास की रक्षा करना तथा शासन-व्यवस्था में पारदर्शिता एवं ईमानदारी सुनिश्चित करना है, किंतु साथ ही यह न्यायोचित प्रक्रिया, विधिक अधिकारों की सुरक्षा तथा लोकतांत्रिक प्रणाली के संचालन की निष्पक्षता से संबंधित गंभीर प्रश्न भी उत्पन्न करता है।  

130वाँ संविधान संशोधन क्या था: प्रावधान और प्रक्रिया? 

संशोधन के मुख्य प्रावधान: 

  • 130वाँ संशोधन विधेयक मंत्रियों को नियंत्रित करने वाले प्रमुख सांविधानिक अनुच्छेदों में नये नियम जोड़ता है। 
  • यह विधेयककेंद्रीय मंत्रियों के लियेभारतीय संविधान के अनुच्छेद 75 , राज्य मंत्रियों के लियेअनुच्छेद 164तथादिल्ली के मंत्रियों के लिये अनुच्छेद 239कक में परिवर्तन करता है। 
  • मुख्य नियम सरल है: किसी भी मंत्री को गंभीर आरोपों (5+ वर्ष का दण्ड) में निरंतर 30 दिनों तक जेल में रहने पर पद से हटा दिया जाना चाहिये 
  • हटाने की प्रक्रिया स्पष्ट रूप से संरचित है। 
  • राष्ट्रपति केद्रीय मंत्रियों को प्रधानमंत्री की सलाह पर हटाते हैं, जबकि राज्यपाल राज्य मंत्रियों को मुख्यमंत्री की सलाह पर हटाते हैं। 
  • यदि 31वें दिन तक यह सलाह नहीं दी जाती है तो मंत्री स्वतः ही अपना पद खो देंगे। 
  • प्रधानमंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को 31 दिनों के भीतर इस्तीफा देना होगा अन्यथा वे स्वतः ही अपना पद खो देंगे। 

अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संशोधन की सांविधानिक प्रक्रिया क्या थी? 

  • अनुच्छेद 368 संसद को एक विशिष्ट प्रक्रिया के माध्यम से संविधान में परिवर्तन करने की शक्ति देता है। 
  • 130वें संशोधन को संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित होना चाहिये - न केवल नियमित बहुमत से, अपितु उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से। 
  • चूँकि यह संशोधन सरकारी ढाँचे से संबंधित महत्त्वपूर्ण अनुच्छेदों को प्रभावित करता है, इसलिये इसे कम से कम आधे राज्य विधानमंडलों से अनुमोदन की भी आवश्यकता हो सकती है। 
  • इससे यह सुनिश्चित होता है कि बड़े बदलावों पर पूरे देश में व्यापक सहमति बने। 

संयुक्त समिति के माध्यम से संसदीय संवीक्षा 

  • उक्त विधेयक को विस्तृत अध्ययन हेतु संसद की संयुक्त संसदीय समिति को संदर्भित किया गया है, जिसमें दोनों सदनों के कुल 31 सदस्य सम्मिलित हैं। 
  • यह समिति विधेयक के प्रावधानों का संवीक्षा करेगी, उसके सांविधानिक प्रभावों का आकलन करेगी तथा लोकमत पर विचार करेगी। यद्यपि समिति की सिफ़ारिशें बाध्यकारी नहीं होतीं, तथापि वे संसदीय वाद-विवाद तथा अंतिम निर्णय प्रक्रिया को गहन रूप से प्रभावित करती हैं। 
  • समिति इसमें परिवर्तन का सुझाव दे सकती है या विधेयक को पूरी तरह से अस्वीकार करने की सिफारिश भी कर सकती है। 

संशोधित किये जा रहे अनुच्छेद और सहयोगी विधेयक 

  • 130वाँ संविधान संशोधन विधेयक, सरकार के सभी स्तरों पर एक व्यापक विधिक ढाँचा बनाने के लिये दो सहयोगी विधेयकों के साथ मिलकर काम करता है। 
  • संविधान (130वाँ संशोधन) विधेयक 2025 विशेष रूप से: 
  • यह विधेयक केंद्रीय मंत्रियों से संबंधित अनुच्छेद 75, राज्य मंत्रियों से संबंधित अनुच्छेद 164 तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से संबंधित अनुच्छेद 239कक में संशोधन करता है। 
  • जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025, द्वारा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 54 में संशोधन कर जम्मू और कश्मीर में मंत्रियों को भी इसके दायरे में सम्मिलित किया गया है। 
  • संघ राज्य क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक 2025 संघ राज्य क्षेत्र सरकार अधिनियम 1963 की धारा 45 को संशोधित करता है जिससे अन्य संघ राज्य क्षेत्रों पर भी समान प्रावधान लागू किये जा सकें। 

सांविधानिक निहितार्थों का आलोचनात्मक विश्लेषण क्या है? 

  • प्रस्तावित संशोधन अनेक महत्त्वपूर्ण सांविधानिक प्रश्न उत्पन्न करते हैं। 
    • यह उपबंध उस मौलिक विधिक सिद्धांत के प्रतिकूल है कि जब तक अपराध साबित न हो व्यक्ति निर्दोष है क्योंकि यह प्रावधान केवल गिरफ्तारी अथवा निरुद्ध होने के आधार पर मंत्रियों को दण्डित करता है, न कि दोषसिद्धि के आधार पर। 
    • विपक्षी दलों को राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिये अन्वेषण एजेंसियों के दुरुपयोग की चिंता है। 
    • ये संशोधन शक्तियों के पृथक्करण में समस्या उत्पन्न करते हैं, क्योंकि इससे अन्वेषण एजेंसियां ​​प्रभावी रूप से मंत्री पद के लिये निर्णय ले सकेंगी। 
  • ये विधेयक एक वास्तविक समस्या को संबोधित करते हैं - संविधान में वर्तमान में पद पर रहते हुए गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना करने वाले मंत्रियों के लिये कोई स्पष्ट नियम नहीं हैं। 
  • अनिवार्य निष्कासन का उद्देश्य सरकारी संस्थाओं में जनता का विश्वास बनाए रखना है। 
    • स्वचालित निष्कासन प्रणाली विलंब को रोकती है और आवश्यकता पड़ने पर त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करती है। जेल से रिहाई के बाद मंत्रियों को फिर से नियुक्त करने का विकल्प, तात्कालिक आवश्यकताओं और निष्पक्षता के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है। 
    • ये संशोधन राष्ट्रपतियों, राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों की पदच्युति में सांविधानिक भूमिकाओं को बरकरार रखते हुए संघीय ढाँचे को बनाए रखते हैं। 
    • यद्यपि, आलोचकों को चिंता है कि केंद्रीय एजेंसियाँ चुनिंदा गिरफ्तारियों के ज़रिए राज्य सरकारों को अस्थिर कर सकती हैं। ये विधेयक यह सुनिश्चित करते हैं कि केंद्रीय मंत्रियों से लेकर केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्रियों तक, सभी पर समान नियम लागू हों। ये प्रावधान विद्यमान सत्ता संरचनाओं का सम्मान करते हैं और सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिये स्पष्ट जवाबदेही मानक निर्धारित करते हैं। 

निष्कर्ष 

130वाँ संविधान संशोधन विधेयक, लोकतांत्रिक सिद्धांतों और उचित प्रक्रिया के अधिकारों पर महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाते हुए, शासन की अखंडता को सुदृढ़ करने का एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है। संयुक्त संसदीय समिति की समीक्षा विपक्ष की चिंताओं का समाधान करने और संस्थागत जवाबदेही तथा व्यक्तिगत अधिकारों के बीच बेहतर संतुलन बनाने वाले संशोधनों का सुझाव देने में महत्त्वपूर्ण होगी। इस संशोधन की सफलता मुख्यतः इसके क्रियान्वयन पर निर्भर करेगी और इस बात पर भी कि क्या यह विधेयक वास्तव में जनहित की पूर्ति करता है अथवा केवल पक्षपातपूर्ण राजनीतिक उद्देश्यों की सेवा में प्रयुक्त होता है। यह विधायी प्रस्ताव भारत की इस क्षमता की परीक्षा के रूप में देखा जाएगा कि क्या वह अपने सांविधानिक ढाँचे का विकास करते हुए मौलिक लोकतांत्रिक मूल्यों एवं संघीय सिद्धांतों की रक्षा कर सकता है