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सांविधानिक विधि

लैच का सिद्धांत

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 20-Mar-2024

परिचय:

लैच का सिद्धांत उस व्यक्ति का समर्थन करता है जो अपने कानूनी अधिकारों के प्रति सतर्क रहता है, जो उन लोगों तक पहुँच से इनकार करने की ओर इशारा करता है जो नियत अवधि में मुकदमा दायर करने में लापरवाह हैं। यह सिद्धांत इस कहावत पर आधारित है कि समता जागरुक लोगों की सहायता करती है, न कि उनकी जो अपने अधिकारों के प्रति शिथिलता बरतते हैं।

लैच का सिद्धांत क्या है?

  • लैच का सिद्धांत इस तथ्य पर आधारित है कि “न्यायालय उन लोगों की सहायता नहीं करेगा, जो अपने अधिकारों के प्रति जागरुक नहीं होते हैं और केवल उन लोगों की मदद करते हैं जो अपने अधिकारों के बारे में जागरुक एवं सतर्क हैं”
  • इस सिद्धांत का उपयोग न्यायालयों द्वारा याचिका या शिकायत दर्ज करने में होने वाले अत्यधिक विलंब से निपटने के लिये किया जाता है।
  • किसी पक्षकार को उस लापरवाही का दोषी तब कहा जाता है, जब वे इस संबंध में काफी विलंब के पश्चात् अपने अधिकारों का दावा करने के लिये न्यायालय में आते हैं।
  • जो व्यक्ति लैच के दावे का समर्थन कर रहा है, उस पर यह सिद्ध करने का भार है कि यह लागू है।

लैच के सिद्धांत के तत्व क्या हैं?

  • याचिकाकर्त्ता को कार्रवाई के कारण से रोकने के लिये इस सिद्धांत पर विचार करने के लिये कुछ नियमों की पूर्ति होनी चाहिये:
    • मामला सामने लाते समय अनुचित विलंब न हो।
    • दावा या अधिकार जताने में लापरवाही।
    • याचिकाकर्त्ता को दावे की पूर्व से जानकारी

लैच के सिद्धांत का उद्देश्य:

  • इस सिद्धांत का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मुकदमा दायर करने में अनुचित विलंब को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। याचिकाकर्त्ता को विलंब हेतु उचित विवरण देना होगा। बहरहाल, विलंब के बाद भी, याचिकाकर्त्ता भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 32 के तहत न्यायालय में अपील कर सकता है, लेकिन यह अनुतोष प्रदान करने के न्यायाधीश के फैसले को प्रतिबंधित नहीं करता है।
  • जब साक्ष्य गायब हो जाते हैं, साक्षी मुकर जाते हैं आदि, तो यह सिद्धांत याचिकाकर्त्ता पर साक्ष्य का बोझ डालकर प्रतिवादी मामले में सहायता करता है।
  • इस सिद्धांत का उद्देश्य आवेदकों द्वारा फॉर्म भरने में होने वाले अनुचित विलंब को समाप्त करना है।

लैच के सिद्धांत और परिसीमा अधिनियम के बीच क्या अंतर हैं?

अंतर    

लैच का सिद्धांत

परिसीमा अधिनियम, 1963

परिसीमा

यह उस व्यक्ति को सीमित करता है जो अपने अधिकारों के प्रति शिथिलता बरतता है, या अपने अधिकारों के बारे में जानता है लेकिन उचित समय के भीतर कोई कार्रवाई नहीं करता है।

यह किसी व्यक्ति को उसके अधिकार क्षेत्र के आधार पर निर्धारित समयावधि से अधिक समय तक मुकदमा दायर करने से रोकता है।

निर्वचन

संबंधित कानून का कड़ाई से पालन अनिवार्य है।

यह न्यायाधीश का विवेक है कि वह विलंब को उचित मानता है या अनुचित।

व्युत्पत्ति

यह सिद्धांत पूर्णतः समता के सिद्धांत पर आधारित है।

यह कानून लोक नीति पर आधारित है।

प्रतिरक्षा की प्रकृति

यह तथ्य-आधारित प्रतिरक्षा है।

यह एक कानून-आधारित प्रतिरक्षा है।