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आपराधिक कानून

फाँसी के आलावा मौत की सजा देने के विकल्प

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 21-Sep-2023

परिचय-

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायाधीश जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने ऋषि मल्होत्रा बनाम भारत संघ (वर्ष 2017) मामले में सुनवाई की। इसमें उन्होंने भारत में मृत्युदंड के निष्पादन की समीक्षा करने के प्रश्न पर विचार किया क्योंकि आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 354 (5) के तहत मृत्युदंड का तरीका न केवल बर्बर है, बल्कि अमानवीय और क्रूर है।

पृष्ठभूमि-

  • न्यायालय द्वारा अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई की गई, जिसमें फाँसी से संबंधित कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी।
  • याचिकाकर्त्ता ने दलील दी, कि फाँसी से मृत्युदंड में लंबे समय तक दर्द और पीड़ा होती है। इसे अंतःशिरा (intravenous) घातक इंजेक्शन, गोली मारने, विद्युत् आघात या गैस चैंबर से बदलने का अनुरोध किया गया, जिसमें एक दोषी की कुछ ही मिनटों में मृत्यु हो सकती है।

न्यायालय की टिप्पणी-

  • CJI ने कहा कि हमें फाँसी से मृत्यु के मामले, फाँसी से मृत्युदंड का प्रभाव, दर्द, वास्तविक मौत की अवधि और किसी व्यक्ति को फाँसी देने के लिये संसाधनों की उपलब्धता पर पुनः विचार करने के लिये बेहतर आँकड़ों की आवश्यकता है।

भारत में मृत्युदंड-

  • मृत्यु शास्ति (Death penalty) को मृत्यु दंड (Capital Punishment) के रूप में भी जाना जाता है, एक आपराधिक अपराध के लिये न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद मौत की सजा प्राप्त अपराधी को फाँसी दी जाती है।
  • यह किसी आरोपी को दी जाने वाली सबसे बड़ी सजा है।
  • रस्सी से फाँसी देना, भारत में फाँसी देने का प्रचलित तरीका है।
  • भारतीय कानून, मौत की सज़ा पाए किसी अपराधी को फायरिंग दस्ते द्वारा गोली मारकर हत्या करने की भी अनुमति देते हैं। हालाँकि, इसकी अनुमति सीमित परिस्थितियों में है और इसे केवल सेना, नौसेना तथा वायु सेना द्वारा ही लागू किया जा सकता है।
  • इसे भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) के कुछ अपराधों में जैसे हत्या (धारा 302), आपराधिक साजिश (धारा 120B), हत्या के साथ डकैती (धारा 396), भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने या ऐसा करने (धारा 121), नाबालिग को आत्महत्या के लिये उकसाना (धारा 305) और अन्य का प्रयास करने पर दिया जा सकता है।
  • भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति द्वारा मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदला जा सकता है या उसे माफ किया जा सकता है।
  • रामनरेश और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (वर्ष 2012) के मामले में मृत्युदंड पर विचार करते समय सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित सिद्धांतों को संरेखित किया:
    • न्यायालय को यह निर्धारित करने के लिये जाँच करनी होगी कि क्या यह मृत्यु की सजा देने के लिये दुर्लभतम मामला था।
    • न्यायालय की राय में कोई अन्य सज़ा यानी आजीवन कारावास देना पूरी तरह से अपर्याप्त होगा, जो न्यायिक उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करेगा।
    • हालाँकि आजीवन कारावास नियम (rule) है जबकि मृत्युदंड अपवाद है।
    • अपराध की प्रकृति और परिस्थितियों में सभी प्रासंगिक विचारों को ध्यान में रखते हुए आजीवन कारावास की सजा देने का विकल्प सावधानीपूर्वक प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
    • जिसमें वह पद्धति (योजनाबद्ध या अन्यथा) या प्रकार (क्रूरता और अमानवीयता की सीमा, आदि) के द्वारा अपराध किया गया था और ऐसी परिस्थितियाँ जिसके कारण ऐसा जघन्य अपराध हुआ।

विरले सिद्धांतों में से विरलतम-

  • विरले सिद्धांतों में से विरलतम (Rarest of Rare doctrine) का उपयोग न्यायपालिका द्वारा आरोपी अपराधियों को मृत्युदंड देने के लिये एक मापक उपकरण के रूप में किया जाता है।
  • न्यायपालिका ने बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य (वर्ष 1980) के मामले में विरलतम मामले के सिद्धांत की अवधारणा दी।
  • इस सिद्धांत को मच्छी सिंह बनाम पंजाब राज्य (वर्ष 1983) के मामले में आगे लागू किया गया और चर्चा की गई।

कानूनी प्रावधान

  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 354(3):
    • इसमें कहा गया है, कि जब दोषसिद्धि पर मृत्यु की सजा, वैकल्पिक रूप से आजीवन कारावास या कई वर्षों की अवधि का कारावास दिया जाता है तब फैसले में दी गई सजा के कारण और मृत्यु की सजा के मामले में ऐसी सजा के विशेष कारण बताए जाएँगे।
  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 354(5):
    • इसमें कहा गया है, जब किसी व्यक्ति को मृत्यु की सजा सुनाई जाती है तो सजा में यह निर्देश दिया जाएगा कि उसे तब तक गर्दन से लटकाया जाए जब तक वह मर न जाए।

मानवाधिकार का रुख

  • नागरिक एवं राजनैतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा का अनुच्छेद 6 मृत्युदंड की सजा की अनुमति देता है।
  • हालाँकि, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने वर्ष 2007, 2008, 2010, 2012, 2014, 2016 और 2018 में अपनाए गए प्रस्तावों की एक शृंखला में सदस्य देशों से मृत्युदंड का सामना करने वाले लोगों के अधिकारों की रक्षा करने वाले अंतर्राष्ट्रीय मानकों का सम्मान करने का आग्रह किया है। जिसमें इसके उपयोग को प्रतिबंधित करना और मृत्यु की सजा वाले अपराधों की संख्या कम करना शामिल है।

विश्व में निष्पादन के अन्य प्रकार

  • घातक इंजेक्शन: चीन, वियतनाम, अमेरिका में उपयोग किया जाता है
  • इलेक्ट्रोक्यूशन: संयुक्त राज्य अमेरिका में उपयोग किया जाता है
  • फाँसी: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, बोत्सवाना, भारत, ईरान, इराक, जापान, कुवैत, मलेशिया, नाइजीरिया, फिलिस्तीनी प्राधिकरण (हमास प्राधिकरण, गाजा), दक्षिण सूडान, सूडान में उपयोग किया जाता है।
  • शूटिंग: चीन, इंडोनेशिया, उत्तर कोरिया, सऊदी अरब, सोमालिया, ताइवान, यमन में उपयोग किया जाता है
  • सिर कलम करना: सऊदी अरब में उपयोग किया जाता है

निष्कर्ष-

फाँसी से मृत्यु के अतिरिक्त किसी भी माध्यम से मृत्युदंड का निष्पादन लंबे समय तक चलने वाले दर्द को कम कर देगा। जिसमें पैनल बनाकर मामले की समीक्षा में भारत के कैदियों के अधिकारों सहित मानवाधिकारों का दृष्टिकोण शामिल किया जाएगा।