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सांविधानिक विधि
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के मुख्य सचिव पर निर्णय
« »18-Jan-2024
स्रोत: द हिंदू
परिचय:
नवंबर, 2023 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन बनाम भारत संघ (2023) के मामले में, दिल्ली के मुख्य सचिव को छह महीने के विस्तार की अनुमति देने के उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने न्यायिक आत्म-त्याग (judicial self-abnegation) के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। यह मामला स्थापित उदाहरणों और पिछले न्यायिक ज्ञान से विचलन को उजागर करता है। इस मामले में निर्णय "रिट इन वाटर (writ in water)" माना जा रहा है।
मुख्य सचिव के कार्यकाल के विस्तार की पृष्ठभूमि क्या है?
- अभिकथन:
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के वर्तमान मुख्य सचिव पर भ्रष्टाचार और पक्षपात के गंभीर आरोप हैं, जिसके कारण दिल्ली के मुख्यमंत्री ने उन्हें हटाने की मांग की है।
- सरकारों की चर्चा:
- दिल्ली सरकार ने उत्तराधिकारी की नियुक्ति पर केंद्र से चर्चा की मांग की थी क्योंकि मुख्य सचिव 30 नवंबर, 2023 को सेवानिवृत्त होने वाले थे।
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन द्वारा दायर याचिका:
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन ने यह विश्वास करने का कारण होने के आधार पर उच्चतम न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की कि भारत संघ एकतरफा नियुक्ति करेगा या भारत सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन अधिनियम, 1991, जैसा कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम, 2023 द्वारा संशोधित किया गया है की धारा 41 के साथ पठित 45A(d) व 45H(2) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए मुख्य सचिव के कार्यकाल को एकतरफा बढ़ा दिया गया।
- पूर्व अनुमोदन:
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन ने तर्क दिया कि नियम 16 के तीसरे प्रावधान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी राज्य सरकार के मुख्य सचिव का पद संभालने वाले व्यक्ति को संबंधित राज्य सरकार द्वारा की गई सिफारिशों पर "पूर्ण औचित्य और लोक हित में" केंद्र सरकार के पूर्व अनुमोदन के साथ सेवा विस्तार दिया जा सकता है।
- इसलिये, यह आग्रह किया गया कि विस्तार की शक्ति का प्रयोग केवल राज्य सरकार की सिफारिश पर किया जा सकता है, जिसका वर्तमान मामले में अर्थ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन (GNCTD) होना चाहिये।
- केंद्र सरकार का अनुरोध:
- सॉलिसिटर जनरल ने न्यायालय को बताया कि केंद्र सरकार मौजूदा मुख्य सचिव को छह महीने का विस्तार देने का प्रस्ताव रखती है।
- न्यायालय का निर्णय:
- उच्चतम न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि "बाद के घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन अधिनियम, 1991 में संशोधन लागू हुआ, मौजूदा मुख्य सचिव की सेवाओं को छह महीने की अवधि के लिये बढ़ाने के केंद्र सरकार के निर्णय को कानून का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है।
न्यायालय ने पूर्व निर्णय को कैसे नज़रअंदाज किया?
- आलोचना:
- दिल्ली सरकार द्वारा चुनौती दी गई कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन (संशोधन) अधिनियम, 2023 पर न्यायालयों द्वारा रोक नहीं लगाई गई थी, जिससे संवैधानिकता का अनुमान लगाया गया था।
- अधिनियम में इसी मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के पिछले निर्णय के कुछ हिस्सों को नकारने की मांग की गई थी, जिसमें दिल्ली में सेवाओं पर निर्वाचित राज्य सरकार के नियंत्रण पर ज़ोर दिया गया था।
- पूर्व निर्णय:
- न्यायालय ने ई.पी. रोयप्पा बनाम तमिलनाडु राज्य पीठ (1974) के मामले में, पूर्व निर्णय को नज़रअंदाज कर दिया, जिसमें मुख्य सचिव की भूमिका को अत्यधिक विश्वास होने की स्थिति के रूप में महत्त्व दिया गया था।
- न्यायालय यह मानने में विफल रहा कि वर्ष 2023 के संशोधन ने रोयप्पा मामले के आवेदन को खारिज़ नहीं किया, जिससे इसके तर्क में दोष उजागर हुआ।
नियुक्ति पर शासन का क्या कहना है?
- सहयोगात्मक नियुक्ति प्रक्रिया के लिये दिल्ली सरकार के अनुरोध को न्यायालय ने गलत समझा है, जो गलती से उपराज्यपाल को एकमात्र विवेकाधिकार प्रदान करता है।
- न्यायालय दिल्ली सरकार की क्षमता के भीतर 100 से अधिक विषयों में मुख्य सचिव की भागीदारी को स्वीकार करने में विफल रहा है।
निष्कर्ष:
दिल्ली के मुख्य सचिव के कार्यकाल के एकतरफा विस्तार की अनुमति देने का उच्चतम न्यायालय का निर्णय न केवल संवैधानिक तर्क से विचलित होता है, बल्कि अपने स्वयं के पूर्व निर्णय की भी उपेक्षा करता है, जो निर्वाचित सरकार और नौकरशाही के बीच शक्ति के नाज़ुक संतुलन से संबंधित भविष्य के मामलों के लिये चिंताएँ उत्पन्न करता है।