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पारिवारिक कानून
बहुविवाह संबंधी आँकड़े
« »05-Oct-2023
परिचय
हाल ही में, असम राज्य ने यह विचार करने के लिये एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्णय लिया कि क्या विधायिका को बहुविवाह के विषय पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार है?
- राज्य सरकार के इस फैसले से उन लोगों में व्यापक अशांति फैल गई है जो इसे अल्पसंख्यक आबादी पर निशाने के रूप में देखते हैं।
बहुविवाह
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इस मुद्दे की पृष्ठभूमि:
- असम के मुख्यमंत्री श्री हिमंत बिस्वा शर्मा ने बहुविवाह के मामले से निपटने के लिये एक समिति का गठन किया है।
- उन्होंने तर्क दिया कि समिति भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 25, मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 की जाँच करेगी और यह इस्लामी विद्वानों से भी परामर्श करेगी।
- बहुविवाह का विषय आजादी के समय से ही पर्सनल लॉ और महिलाओं के अधिकारों के बीच लगातार विवाद का कारण बना हुआ है।
- उच्चतम न्यायालय भी पूर्व में यह कह चुका है कि वह बहुविवाह के मुद्दे पर चर्चा के लिये एक संवैधानिक पीठ का गठन होगा।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) ने डेटा प्रदान किया कि बहुविवाह की प्रथा केवल एक विशेष धर्म तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विभिन्न समुदायों में यह प्रथा मौजूद है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey- NFHS) बड़े पैमाने पर किया जाने वाला एक बहु-स्तरीय सर्वेक्षण है।
- पहला राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-1) वर्ष 1992-93 में किया गया था। इसके बाद, चार अन्य सर्वेक्षण किये गए,जिनमें नवीनतम NFHS-5 है।
भारत में बहुविवाह का वर्तमान परिदृश्य:
- निम्नलिखित डेटा वर्ष 2019-2021 के बीच की अवधि के लिये एनएफएचएस-5 द्वारा प्रदान किया गया है।
- 1.4% विवाहित भारतीय महिलाओं ने कहा कि उनके पतियों की दूसरी पत्नी या पत्नियाँ थीं।
- बहुविवाह की उच्च दर अनुसूचित जनजातियों (2.4%) और कुछ हद तक अनुसूचित जातियों (1.5%) के बीच मौजूद है।
- 6% के साथ, मेघालय का बहुविवाह के मामले में उच्चतम आँकड़ा दर्ज हुआ, जबकि गोवा 0.2% के आँकड़े के साथ इस सूची में सबसे नीचे था।
- विभिन्न धर्मों में बहुविवाह की दर:
- ईसाइयों में 1%
- मुसलमानों में 9%
- हिंदुओं और बौद्धों में3%
- सिखों में 5%
- अन्य धर्मों या जातियों के मामले में 5%।
विभिन्न धर्मों के अंतर्गत बहुविवाह से संबंधित कानूनी प्रावधान:
हिंदू धर्म:
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) के अधिनियमन से पहले बहुविवाह की प्रथा मौजूद थी, इस अधिनियम ने इस प्रथा पर पूरी तरह से रोक लगा दी ।
- HMA किसी भी ऐसे व्यक्ति पर लागू होता है जो अपने किसी भी रूप या विकास में धर्म से हिंदू है या किसी ऐसे व्यक्ति पर लागू होता है जो बौद्ध, जैन या सिख धर्म से संबंधित है।
- HMA की धारा 11 में कहा गया है कि द्विविवाह अमान्य हैं, अर्थात भारतीय कानूनों के तहत उनका कोई मूल्य नहीं है।
- HMA की धारा 17 में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के लागू होने के बाद बहुविवाह करता है, तो उसे द्विविवाह के अपराध के लिये भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 494 के तहत दंडित किया जा सकता है।
- IPC की धारा 494 - पति या पत्नी के जीवनकाल में दोबारा विवाह करना-
- कोई भी व्यक्ति जो अपने पति या पत्नी के जीवित रहते हुए विवाह करता है, तब यह विवाह अमान्य होगा,क्योंकि यह उनके पति या पत्नी के जीवित रहते हुए हुआ है, इसमें उसे सात वर्ष की अवधि के लिये कारावास की सजा दी जाएगी और वह जुर्माने के लिये भी उत्तरदायी होगा।
- अपवाद—यह धारा किसी ऐसे व्यक्ति पर लागू नहीं होती जिसका ऐसे पति या पत्नी के साथ विवाह सक्षम क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय द्वारा शून्य घोषित कर दिया गया हो, न ही ऐसे किसी व्यक्ति के लिये जो पूर्व पति या पत्नी के जीवित रहते हुए विवाह करता है, यदि पति या पत्नी अगली शादी से पहले सात साल तक लगातार अनुपस्थित रहा हो और उस दौरान उसकी कोई बात न सुनी गई हो। हालाँकि, यह केवल तभी सच है जब शादी करने वाला व्यक्ति शादी से पहले शादी करने वाले व्यक्ति को सूचित करता है कि पूर्व पति या पत्नी लगातार सात वर्षों से अनुपस्थित था।
ईसाई धर्म:
- न्यू टेस्टामेंट (ईसाई बाइबिल का दूसरा भाग, जो मूल रूप से ग्रीक में लिखा गया है, जिसमें ईसा मसीह और उनके शुरुआती अनुयायियों के जीवन और शिक्षाओं को दर्ज़ किया गया है) के तहत, यह कहा गया था कि चर्च के प्रमुखों को केवल एक विवाह करना चाहिये और कई पत्नियाँ नहीं रखनी चाहिये।
- आधुनिक समय में ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 देश के विभिन्न हिस्सों में ईसाइयों के बीच विवाह के मामलों को विनियमित करने के लिये लागू होता है और यह द्विविवाह पर रोक लगाता है।
मुस्लिम कानून:
- मुस्लिम पुरुषों में बहुविवाह वैध है, यानी मुस्लिम पुरुष एक ही समय में कई महिलाओं से शादी कर सकते हैं, लेकिन एक समय में यह चार से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- आधुनिक काल में, भारतीय मुसलमानों को मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट, 1937 के तहत बताए गए कानूनी प्रावधानों का पालन करना आवश्यक है जो किसी भी रूप में बहुविवाह पर प्रतिबंध नहीं लगाता है।
भारत में बहुविवाह संबंधी चिंताएँ:
- बहुविवाह प्रथा लैंगिक समानता और मानवाधिकारों की आधुनिक अवधारणा से असंगत है।
- बहुविवाह में अक्सर महिला को शोषण और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है जो मानसिक और शारीरिक दोनों हो सकता है।
- बहुविवाह से बच्चों में मानसिक और सामाजिक समस्याएँ विकसित होती हैं, और उन्हें देखभाल तथा स्नेह की कमी का भी सामना करना पड़ता है।
- बहुविवाह वाले परिवारों में बच्चों की खराब आर्थिक स्थिति, शिक्षा की कमी आदि देखी जा सकती है।
निष्कर्ष:
विश्व के कुछ देशों में अभी भी बहुविवाह प्रथा जारी है। आमतौर पर देखा जाता है कि मुस्लिमों के पर्सनल लॉ में बहुविवाह की अनुमति है तथा मुस्लिम बहुसंख्यक देशों में यह वैधानिक रूप से प्रचलित है। भारत, सिंगापुर और यहाँ तक कि मलेशिया जैसे कई देशों ने मुसलमानों के बीच बहुविवाह की प्रथा को अनुमति दी है। NFHS द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों को ध्यान में रखते हुए बहुविवाह की प्रथा पर प्रतिबंध लगाने के विकल्प पर और चर्चा किये जाने की आवश्यकता है।