होम / एडिटोरियल
सांविधानिक विधि
भारत में बहुविवाह
« »13-Feb-2024
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
परिचय:
उत्तराखंड विधानसभा ने दो दिवसीय व्यापक विचार-विमर्श के बाद 7 फरवरी, 2024 को समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code- UCC) विधेयक, 2024 पारित किया। इस ऐतिहासिक कानून का उद्देश्य जनजातीय समुदायों को छोड़कर राज्य के विभिन्न समुदायों में विवाह, तलाक और उत्तराधिकार जैसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता स्थापित करना है।
समान नागरिक संहिता क्या है?
- भारत के संविधान, 1950 के अध्याय IV में निहित अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि "राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों को समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) सुरक्षित करने का प्रयास करेगा"।
- संविधान सभा ने 1937 के आयरिश संविधान से राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (DPSP) को लिया था।
- भारत के संविधान के अध्याय IV में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (अनुच्छेद 36-51) का भी वर्णन किया गया है। ये ऐसी नीतियाँ हैं जिन्हें राज्य को समाज की समग्र भलाई के लिये लागू करने की आवश्यकता है।
- UCC का उद्देश्य भारत में प्रत्येक धर्म पर एक समान व्यक्तिगत कानून लागू करना है।
- UCC के अंतर्गत शामिल मामले हैं: विवाह, भरण-पोषण, संरक्षकता, उत्तराधिकार, दत्तक ग्रहण आदि।
UCC विधेयक के निहितार्थ क्या हैं?
- UCC विधेयक के पारित होने से उत्तराखंड में कानूनी सद्भाव और सामाजिक सामंजस्य के एक नए युग की शुरुआत हुई है।
- इसके मूल में, विधेयक मुस्लिम समुदाय के लिये एक विवाह के सिद्धांत का विस्तार करता है, एक ऐसा प्रावधान जो वैवाहिक संबंधों में लैंगिक समानता और निष्पक्षता के लोकाचार के साथ संरेखित है।
- विशेष रूप से, यह प्रावधान कि "विवाह के समय किसी भी पक्ष का जीवनसाथी जीवित नहीं है" वैवाहिक संबंधों के लिये एक समान मानदंड प्रस्तुत करता है, जो पहले विभिन्न समुदायों के व्यक्तिगत कानूनों के बीच मौजूद असमानता को कम करता है।
बहुविवाह पर आँकड़े क्या हैं?
- UCC विधेयक का एक महत्त्वपूर्ण पहलू विभिन्न धार्मिक समुदायों में बहुविवाह प्रथाओं में असमानताओं को संबोधित करने से संबंधित है।
- जबकि दशकीय जनगणना और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey- NFHS) जैसे सरकारी स्रोतों के डेटा बहुविवाह की व्यापकता में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, तथा कुछ सीमाएँ भी प्रस्तुत करते हैं।
डेटा संग्रह की सीमाएँ क्या हैं?
- जनगणना पद्धति, जो विवाहित पुरुषों एवं महिलाओं की संख्या में अंतर से बहुविवाह का अनुमान लगाती है, में प्रत्यक्षता का अभाव है और यह वैवाहिक व्यवस्था की जटिलताओं को पूरी तरह से समझने में सक्षम नहीं है।
- इसके अलावा, पिछली जनगणना 2011 में आयोजित की गई थी, जिससे डेटा कुछ हद तक पुराना हो गया था।
- इसी तरह, जबकि NFHS बहुविवाह प्रथाओं में अधिक प्रत्यक्ष अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, इसका नमूना आकार अपेक्षाकृत छोटा है, जो भारत के कुल परिवारों के 1% से भी कम का प्रतिनिधित्व करता है।
सरकारी अध्ययनों से क्या अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है?
- सीमाओं के बावजूद, पिछले सरकारी अध्ययन बहुविवाह प्रवृत्तियों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
- 1974 के अध्ययन में मुसलमानों की तुलना में बौद्धों, जैनियों और हिंदुओं में बहुविवाह की उच्च दर को उजागर किया गया, जिससे बहुविवाह के बारे में प्रचलित गलत धारणाओं को चुनौती मिली।
जनगणना और NFHS डेटा का विश्लेषण क्या है?
- हालिया जनगणना और NFHS डेटा विभिन्न धार्मिक समुदायों में बहुविवाह की व्यापकता पर प्रकाश डालते हैं।
- 2011 की जनगणना में विवाहित पुरुषों और महिलाओं की संख्या के बीच एक उल्लेखनीय अंतर सामने आया, जो बहुविवाह या प्रवासन के संभावित उदाहरणों का सुझाव देता है।
- इसी तरह, NFHS 5 डेटा ने धार्मिक समूहों में बहुविवाह के विभिन्न स्तरों को प्रदर्शित किया, जिसमें ईसाइयों और मुसलमानों ने हिंदुओं की तुलना में बहुविवाह से संबंधित अधिक घटनाओं की सूचना दी।
बहुविवाह का चलन क्या है?
- इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज़ द्वारा किये गए एक अध्ययन में 2005-06 से 2019-21 तक बहुपत्नी विवाह में कमी आने पर प्रकाश डाला गया, जो एकपत्नी मानदंडों की ओर सकारात्मक बदलाव का संकेत देता है।
- यह प्रवृत्ति वैवाहिक प्रथाओं के प्रति विकसित हो रहे सामाजिक दृष्टिकोण और विभिन्न समुदायों में एक विवाह की बढ़ती स्वीकार्यता को रेखांकित करती है।
निष्कर्ष:
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता विधेयक का पारित होना कानूनी समानता और सामाजिक एकता हासिल करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता को बढ़ावा देकर, कानून विविध धार्मिक समुदायों में समानता, न्याय और समावेशिता को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।