घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के अंतर्गत क्षतिपूर्ति
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घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के अंतर्गत क्षतिपूर्ति

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 06-May-2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

परिचय:

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने घरेलू हिंसा पीड़ितों को दिये जाने वाले क्षतिपूर्ति को तय करने के विषय पर अपना निर्णय सुनाया। न्यायालय ने कहा कि क्षतिपूर्ति, हिंसा की गंभीरता के आधार पर होनी चाहिये।

मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक मामले में याचिकाकर्त्ता ने अपनी पत्नी को दिये गए 3 करोड़ रुपए की क्षतिपूर्ति को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि क्षतिपूर्ति, उसकी वित्तीय स्थिति के बजाय, हुई क्षति के अनुपात में होनी चाहिये।
  • जबकि धारा 20, पीड़ित व्यक्ति के जीवन स्तर के अनुरूप मौद्रिक राहत को संबोधित करती है, याचिकाकर्त्ता का तर्क है कि धारा 22, के अंतर्गत क्षतिपूर्ति, ऐसे विचारों से प्रभावित नहीं होनी चाहिये।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 क्या है?

  • घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005, महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिये भारत की संसद द्वारा अधिनियमित एक विधि है।
  • यह अधिनियम घरेलू हिंसा को मानव अधिकारों के उल्लंघन के रूप में मान्यता देता है तथा इसका उद्देश्य, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को संबोधित करने के लिये एक विधि प्रदान करना है।
  • अधिनियम, घरेलू हिंसा को घरेलू संबंध में एक महिला के विरुद्ध किये गए शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक या आर्थिक दुर्व्यवहार के रूप में परिभाषित करता है।
  • इसमें विवाह, लिव-इन रिलेशनशिप, पारिवारिक संबंध तथा यहाँ तक कि एक ही घर में संबंध जैसे संबंध शामिल हैं।

घरेलू हिंसा, 2005 के अंतर्गत प्रक्रिया क्या है?

प्रक्रिया

धारा

राहत के लिये मजिस्ट्रेट को आवेदन

12

प्रतिवादी को नोटिस की स्वीकृति

13

पक्षकारों की काउंसलिंग

14

कल्याण-विशेषज्ञ द्वारा सहायता

15

कैमरे में कार्यवाही

16

सुरक्षा आदेश

18

निवास आदेश

19

आर्थिक राहत के लिये आदेश

20

अभिरक्षा का आदेश

21

क्षतिपूर्ति का आदेश

22

अंतरिम एवं एक पक्षीय आदेश

23

आदेशों की निःशुल्क प्रतियाँ

24

आदेशों की अवधि एवं परिवर्तन

25

अन्य वादों एवं विधिक कार्यवाही में राहत

26

अपील

29

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के अंतर्गत क्षतिपूर्ति के आदेश का प्रावधान क्या है?

धारा 22:

  • इस अधिनियम के अंतर्गत दी जाने वाली अन्य राहतों के अतिरिक्त, मजिस्ट्रेट पीड़ित व्यक्ति द्वारा किये गए आवेदन पर एक आदेश पारित कर सकता है, जिसमें प्रतिवादी को मानसिक यातना एवं भावनात्मक संकट सहित चोटें पहुँचाने के लिये या उस प्रतिवादी द्वारा किये गए घरेलू हिंसा के कार्य के विरुद्ध क्षतिपूर्ति एवं क्षति का भुगतान करने का निर्देश दिया जा सकता है।

निष्कर्ष:

जैसा कि उच्चतम न्यायालय, घरेलू हिंसा के मामलों में क्षतिपूर्ति के विषय पर विचार-विमर्श कर रहा है, उसे प्रतिस्पर्धी हितों में सामंजस्य स्थापित करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, अपराधियों को उत्तरदायी ठहराते हुए पीड़ितों को पर्याप्त राहत प्रदान करने की आवश्यकता है। व्यक्तिगत मामलों की सूक्ष्मता को पहचानते हुए विधिक सिद्धांतों एवं पूर्व निर्णयों का पालन करके, न्यायालय घरेलू हिंसा को संबोधित करने के लिये एक निष्पक्ष एवं उचित विधिक ढाँचे में योगदान कर सकती है।