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सांविधानिक विधि
दिल्ली का उप-राज्यपाल (LG)
« »08-Aug-2024
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
परिचय:
हाल ही में भारत के उच्चतम न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें उप-राज्यपाल (LG) की शक्तियों को राज्य के राज्यपाल की शक्तियों से अलग किया गया है। न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा द्वारा लिखे गए निर्णय में, भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने कहा कि दिल्ली के उप-राज्यपाल, दिल्ली सरकार की सहायता तथा परामर्श के बिना नगर निगम में सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं।
दिल्ली सरकार बनाम दिल्ली उप-राज्यपाल कार्यालय मामले की पृष्ठभूमि और टिप्पणियाँ क्या थीं?
पृष्ठभूमि:
- यह मामला दिल्ली नगर निगम अधिनियम की धारा 3(3)(b)(i) से संबंधित था, जो उप-राज्यपाल (LG) को दिल्ली नगर निगम (DMC) में विशेष ज्ञान रखने वाले 10 व्यक्तियों को मनोनीत करने की अनुमति देता है।
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार ने मंत्रिपरिषद की सहायता और परामर्श के बिना इन नामांकनों को करने की उप-राज्यपाल की शक्ति को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की।
- यह मामला संविधान के अनुच्छेद 239AA की व्याख्या से संबंधित था, जो दिल्ली के लिये विशेष प्रावधानों से संबंधित है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उप-राज्यपाल दिल्ली सरकार की सहायता और परामर्श के बिना नगर निगम में सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं।
- न्यायालय ने दिल्ली के उप-राज्यपाल और राज्यों के राज्यपालों की शक्तियों के बीच अंतर किया:
- अनुच्छेद 163 के अंतर्गत राज्य के राज्यपालों को सहायता और परामर्श पर कार्य करना चाहिये, सिवाय उन स्थितियों जब संविधान में विवेकाधिकार की आवश्यकता हो।
- अनुच्छेद 239AA (4) के अंतर्गत दिल्ली उप-राज्यपाल के लिये किसी भी विधान द्वारा आवश्यक होने पर विवेकाधिकार की अनुमति है।
- न्यायालय ने पाया कि DMC अधिनियम की धारा 3(3)(b)(i) विशेष रूप से LG को नामांकन करने का अधिकार देती है, जो अनुच्छेद 239AA (4) में अपवाद को संतुष्ट करती है।
- न्यायालय ने इस नामांकन शक्ति को उप-राज्यपाल का वैधानिक कर्त्तव्य माना, न कि दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्ति।
- निर्णय में कहा गया कि यह शक्ति 1993 के संशोधन के माध्यम से उप-राज्यपाल को जानबूझकर संवैधानिक परिवर्तनों को शामिल करने के लिये दी गई थी, न कि पिछले प्रशासक शक्तियों का अवशेष है।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि जब संसद राज्य या समवर्ती सूची के विषयों पर विधान बनाती है, तो इससे दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्ति सीमित हो जाती है।
उप-राज्यपाल (LG) कौन है?
- उप-राज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के प्रशासक हैं, जिन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 239 के अंतर्गत नियुक्त किया जाता है।
- अनुच्छेद 239AA (1) के अनुसार, दिल्ली का प्रशासक उप-राज्यपाल होगा।
- उप-राज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के संवैधानिक प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं।
- अनुच्छेद 239AA(4) के अंतर्गत, उप-राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सहायता और परामर्श पर कार्य करना आवश्यक है, सिवाय उन मामलों को छोड़कर जहाँ उसे विधि द्वारा अपने विवेक से कार्य करने की आवश्यकता होती है।
- उप-राज्यपाल की शक्तियाँ और कार्य संविधान, विशेषकर अनुच्छेद 239AA, तथा दिल्ली पर लागू विभिन्न वैधानिक प्रावधानों से प्राप्त होते हैं।
- दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 सहित विभिन्न विधानों के अधीन उप-राज्यपाल को कुछ विशिष्ट शक्तियाँ प्राप्त हैं।
- उप-राज्यपाल का कार्यालय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के प्रशासन में केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करता है।
- उप-राज्यपाल की भूमिका में निर्वाचित सरकार की सहायता और परामर्श पर कार्य करने तथा जहाँ वैधानिक रूप से आदेश दिया गया हो, वहाँ स्वतंत्र विवेक का प्रयोग करने के बीच संतुलन बनाना शामिल है।
दिल्ली के उप-राज्यपाल
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उप-राज्यपाल से संबंधित विधिक प्रावधान क्या हैं?
- अनुच्छेद 239AA(1): यह प्रावधान दिल्ली के प्रशासक को उप-राज्यपाल के रूप में नामित करता है।
- अनुच्छेद 239AA(4): यह खंड मंत्रिपरिषद के साथ उप-राज्यपाल के संबंधों को रेखांकित करता है:
- इसमें कहा गया है कि उप-राज्यपाल को सहायता और परामर्श देने के लिये एक मंत्रिपरिषद होगी।
- जिन मामलों में विधान सभा को विधान बनाने का अधिकार है, उनमें उप-राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सहायता और परामर्श पर कार्य करना होता है।
- अपवाद तब प्रदान किया जाता है जब विधि के अनुसार उप-राज्यपाल को अपने विवेक से कार्य करना आवश्यक हो।
- अनुच्छेद 239AA(4) प्रावधान: यह उप-राज्यपाल और मंत्रियों के बीच मतभेदों के समाधान का प्रावधान करता है:
- मतभेद की स्थिति में उप-राज्यपाल मामले को निर्णय के लिये राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।
- राष्ट्रपति के निर्णय के लंबित रहने तक, यदि उप-राज्यपाल को मामला अत्यावश्यक लगे तो वे तत्काल कार्यवाही कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 239AB: यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को दिल्ली में संवैधानिक तंत्र की विफलता की स्थिति में अनुच्छेद 239AA के प्रावधानों के संचालन को निलंबित करने की अनुमति देता है।
- अनुच्छेद 239(1): यद्यपि यह अनुच्छेद दिल्ली के लिये विशिष्ट नहीं है, यह राष्ट्रपति द्वारा अपने द्वारा नियुक्त प्रशासक के माध्यम से केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन का प्रावधान करता है।
- सातवीं अनुसूची: दिल्ली विधानसभा और संसद के बीच शक्तियों का वितरण सूची II और III के प्रावधानों द्वारा शासित होता है, परंतु अनुच्छेद 239AA(3) में निर्दिष्ट कुछ अपवादों के साथ।
भारत में केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासन कैसे होता है?परिचय:
दिल्ली और पुदुचेरी के लिये विशेष प्रावधान क्या हैं?
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उप-राज्यपाल और मुख्यमंत्री की शक्तियाँ क्या हैं?
उप-राज्यपाल:
- उप-राज्यपाल केंद्रशासित प्रदेश के संवैधानिक प्रमुख के रूप में कार्य करता है।
- दिल्ली में सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि जैसे 'आरक्षित विषयों' को नियंत्रित करता है।
- अध्यादेश जारी कर सकता है और राष्ट्रपति के विचार के लिये विधेयकों को आरक्षित कर सकता है।
- मुख्यमंत्री के परामर्श पर मुख्यमंत्री और मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
- संवैधानिक रूप से निर्दिष्ट मामलों में इसके पास विवेकाधीन शक्तियाँ हैं।
- विधि और व्यवस्था बनाए रखता है, विशेषतः दिल्ली राज्य क्षेत्र में।
- केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन और केंद्र सरकार के बीच समन्वय बनाए रखता है।
- केंद्रशासित प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा कर सकता है।
- केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन में संवैधानिक अनुपालन सुनिश्चित करता है।
- मंत्रिस्तरीय परामर्श के बिना कुछ निकायों में सदस्यों को नामित कर सकता है (हाल ही में दिल्ली के लिये उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुसार)।
मुख्य मंत्री:
- मंत्रिपरिषद का प्रमुख होता है और वास्तविक कार्यकारी अधिकारी होता है।
- सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों का निर्माण करता है।
- मंत्रिस्तरीय नियुक्तियों और विभाग आवंटन पर परामर्श देता है।
- विधानसभा में बहुमत वाली पार्टी या गठबंधन का नेतृत्व करता है।
- बजट की तैयारी और प्रस्तुति की देखरेख करता है।
- केंद्र सरकार के साथ व्यवहार में राज्य/संघ राज्य क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
- सरकारी विभाग के कामकाज की देखरेख करता है।
राज्यपाल और उप-राज्यपाल में क्या अंतर है?
- राज्यपालों की नियुक्ति राज्यों के लिये की जाती है, जबकि उप-राज्यपालों की नियुक्ति केंद्रशासित प्रदेशों के लिये की जाती है।
- राज्यपालों के पास अधिक स्वायत्तता वाले राज्यों पर अधिकार होता है; उप-राज्यपाल अधिक केंद्रीय नियंत्रण वाले केंद्रशासित प्रदेशों की देखरेख करते हैं।
- राज्यपालों की भूमिका आम तौर पर अधिक औपचारिक होती है; उप-राज्यपाल, विशेष रूप से दिल्ली में, अधिक सक्रिय प्रशासनिक भूमिका निभाते हैं।
- राज्यपाल ज्यादातर राज्य मंत्रिमंडल की परामर्श पर काम करते हैं; उप-राज्यपालों के पास अधिक व्यापक विवेकाधीन शक्तियाँ होती हैं।
- राज्यपालों की भूमिकाएँ संविधान के अनुच्छेद 153-162 के अंतर्गत परिभाषित की गई हैं; तथा उप-राज्यपालों की भूमिकाएँ संविधान के अनुच्छेद 239-239AA के अंतर्गत परिभाषित की गई हैं।
उच्चतम न्यायालय के हालिया निर्णय ने दिल्ली में प्रशासनिक नियंत्रण से संबंधित अनुच्छेद 239 और 239AA के बीच संवैधानिक संबंध को किस प्रकार स्पष्ट किया है?
- अनुच्छेद 239 और 239AA के बीच संवैधानिक संबंध, प्रशासनिक नियंत्रण के संबंध में केंद्र सरकार/LG और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के बीच राजनीतिक संघर्ष का स्रोत रहा है।
- वर्ष 2018 में, उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि जिन मामलों में विधानसभा के पास विधायी शक्ति है, उनमें उप-राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और परामर्श लेने के लिये बाध्य हैं तथा उप-राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता नहीं है।
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम, 2021 को उच्चतम न्यायालय के 2018 के निर्णय को संशोधित करने के लिये अधिनियमित किया गया था, जिसमें विधानसभा की शक्तियों पर प्रतिबंध लगाए गए और कार्यकारी कार्यों पर उप-राज्यपाल की राय की आवश्यकता थी।
- दिल्ली सरकार ने 2021 संशोधन अधिनियम की संवैधानिक वैधता को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी और तर्क दिया कि यह संघवाद, शक्तियों के पृथक्करण, विधि के शासन और प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
- वर्ष 2023 में, उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली सरकार के सिविल सेवकों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के दिन-प्रतिदिन के प्रशासन पर अधिकार की पुष्टि की।
- मंत्रिपरिषद की सहायता और परामर्श के बिना दिल्ली नगर निगम (MCD) में 10 व्यक्तियों को मनोनीत करने की उप-राज्यपाल की शक्ति के संबंध में उच्चतम न्यायालय में एक मामला लाया गया था।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्ति संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य और समवर्ती सूची के विषयों से संबंधित संसदीय विधानों के अनुरूप होनी चाहिये।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि MCD में सदस्यों को मनोनीत करने की उप-राज्यपाल की शक्ति दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 से ली गई है, जिसे अनुच्छेद 239AA और 239AB में संवैधानिक परिवर्तनों को शामिल करने के लिये 1993 में संशोधित किया गया था।
- यह निर्णय विशिष्ट वैधानिक प्रावधानों के आधार पर निर्वाचित सरकार से स्वतंत्र रूप से कुछ नियुक्तियाँ करने के उप-राज्यपाल के अधिकार की पुष्टि करता है।
- यह निर्णय संसदीय विधान, संवैधानिक प्रावधानों और दिल्ली की विशिष्ट शासन संरचना में शक्तियों के विभाजन के बीच के जटिल अंतर्संबंध को प्रकट करता है।
निष्कर्ष:
उच्चतम न्यायालय के हालिया निर्णय ने अनुच्छेद 239 और 239AA के बीच संवैधानिक संबंधों को स्पष्ट किया है, जिससे दिल्ली के शासन में शक्तियों के जटिल संतुलन पर प्रकाश डाला गया है। न्यायालय ने पुष्टि की है कि दिल्ली सरकार दिन-प्रतिदिन के मामलों का प्रबंधन करती है, जबकि उप-राज्यपाल के पास मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र नगर निगम में सदस्यों को मनोनीत करने जैसी विशिष्ट वैधानिक शक्तियाँ हैं।