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सांविधानिक विधि

आनुपातिकता का परीक्षण

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 19-Feb-2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

परिचय:

एक ऐतिहासिक फैसले में, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली उच्चतम न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से चुनावी बॉण्ड योजना को अविधिमान्य कर दिया। यह महत्त्वपूर्ण क्षण संवैधानिक स्वतंत्रता की सुरक्षा में आनुपातिकता के परीक्षण की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है। उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एंड अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले में दिया। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने आनुपातिकता के परीक्षण के संबंध में सहमती रखने वाली लेकिन अलग-अलग व्यक्तिगत राय दीं।

आनुपातिकता परीक्षण क्या है?

  • संवैधानिक स्थिति:
    • न्यायिक समीक्षा के केंद्र में आनुपातिकता का सिद्धांत निहित है, जो यह आकलन करता है कि क्या राज्य के हस्तक्षेप व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान करते हुए संवैधानिक लक्ष्यों के साथ सही प्रकार से संरेखित हैं।
    • संविधान के अनुच्छेद 19(2) में निहित, यह परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि मौलिक स्वतंत्रता पर सीमाएँ राज्य के उद्देश्यों के लिये आनुपातिक बनी रहें।
  • आनुपातिकता परीक्षण की अवधारणा:
    • आनुपातिकता, एक मानक-आधारित मॉडल के रूप में, न्यायाधीशों को स्थापित मानकों के विरुद्ध विविध तथ्यात्मक परिदृश्यों का विश्लेषण करने में लचीलापन प्रदान करती है।
    • आनुपातिकता के आलोचक, नियम-आधारित न्यायनिर्णयन के पक्षधर, निश्चित नियमों में निहित कानूनी निश्चितता के लिये तर्क देते हैं।
    • इसके उत्तर में, संतुलन के समर्थक अधिकारों व कानून के बीच संतुलन का समर्थन करते हुए इस बात पर ज़ोर देते हैं कि न तो नियम और न ही सिद्धांत पूर्ण हैं।
  •  परीक्षण का अनुप्रयोग:
    • न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने अपने विश्लेषण में, दानदाताओं की गोपनीयता को वैध राज्य हित के रूप में खारिज़ कर दिया, और राजनीतिक फंडिंग में गोपनीयता के बारे में मतदाताओं के जानने के अधिकार को प्राथमिकता दी।
    • CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ ने प्रतिस्पर्धी मौलिक अधिकारों को संतुलित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए "दोहरी आनुपातिकता" परीक्षण की शुरुआत करके चर्चा का विस्तार किया।
    • आमतौर पर, दो मॉडलों को न्यायविदों के कार्यों से अलग किया जा सकता है।
  • निर्णय में परीक्षण के मॉडल:
    • यह टकराव आनुपातिकता अपनाने के विभिन्न रूपों, विशेष रूप से मॉडल I और मॉडल II में स्पष्ट है।
    • मॉडल I में दो-चरणीय, साधन-अंत तुलना शामिल है, जबकि मॉडल II एक संतुलन चरण जोड़ता है।

इस मामले में किस पूर्व-निर्णय का हवाला दिया गया था?

  • वर्ष 2017 के न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017) निर्णय में, उच्चतम न्यायालय ने अधिकारों के टकराव से जुड़े विवादों को हल करने के लिये आनुपातिकता के परीक्षण को एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में स्थापित किया।
  • न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ वैध लक्ष्यों को संतुलित करने के लिये राज्य के कार्यों की आवश्यकता पर बल देते हुए चार मानदंडों की रूपरेखा तैयार की।
    • वैधता,
    • आवश्यकता,
    • आनुपातिकता, और
    • प्रक्रियात्मक सुरक्षा

सरकार का तर्क क्या था?

  • सरकार ने ज़ोर देकर कहा कि काले धन पर अंकुश लगाने और दाता की गोपनीयता की सुरक्षा के लिये चुनावी बॉण्ड योजना उचित है।
  • इन उद्देश्यों को स्वीकार करते हुए, न्यायालय ने विशेष रूप से मतदाता पारदर्शिता और जवाबदेही के संबंध में राज्य के हस्तक्षेप की सीमा की जाँच की।

"न्यूनतम प्रतिबंधात्मक साधन" क्या है?

  • CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ ने राज्य के उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिये चुनावी ट्रस्ट योजना जैसे कम दखल देने वाले विकल्पों की खोज करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
  • व्यक्तिगत अधिकारों पर राज्य के कार्यों के प्रभाव की जाँच करके, न्यायालय ने नीति कार्यान्वयन में न्यनतम प्रतिबंधात्मक तरीकों को अपनाने की अनिवार्यता को रेखांकित किया।

निष्कर्ष:

चुनावी बॉण्ड का निर्णय चुनावी प्रक्रिया में जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा देते हुए मौलिक स्वतंत्रता को बनाए रखने की न्यायपालिका की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है। आनुपातिकता के परीक्षण को लागू करके, उच्चतम न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि राज्य के कार्य संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप रहें, जिससे लोकतांत्रिक शासन और संवैधानिकता के एक नए युग की शुरुआत हो।