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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

फली एस नरीमन

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 26-Feb-2024

कौन थे फली एस नरीमन?

प्रख्यात न्यायविद् और वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन का 21 फरवरी 2024 की सुबह निधन हो गया। उन्होंने 75 वर्षों से अधिक के उल्लेखनीय कॅरियर का अंत किया। उनका जन्म 10 जनवरी 1929 को हुआ था। उन्हें वर्ष 1991 में पद्म भूषण, 2007 में पद्म विभूषण और वर्ष 2002 में न्याय के लिये ग्रुबर पुरस्कार सहित सम्मान प्राप्त हुए। इसके अतिरिक्त, उन्होंने वर्ष 1999 से 2005 तक भारतीय संसद के ऊपरी सदन राज्य सभा के मनोनीत सदस्य के रूप में कार्य किया।

फली एस नरीमन की कॅरियर यात्रा क्या थी?

  • फली एस नरीमन ने शिमला के बिशप कॉटन स्कूल में पढ़ाई की।
  • उन्होंने अकादमिक रूप से उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए अर्थशास्त्र और इतिहास का अध्ययन किया।
  • उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से विधि की पढ़ाई की।
  • उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में अपनी विधिक यात्रा शुरू की और अंततः 22 वर्षों के बाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील का दर्जा हासिल किया।

फली एस नरीमन के उल्लेखनीय मामले क्या हैं?

  • आई सी गोलक नाथ बनाम पंजाब राज्य (1967):
    • फली एस नरीमन ने मौलिक अधिकारों में संशोधन करने के संसद के अधिकार के खिलाफ याचिकाकर्त्ताओं के तर्क का समर्थन किया।
    • वर्ष 1967 में दिये गए फैसले ने मौलिक अधिकारों की अनुल्लंघनीयता पर प्रकाश डाला और संवैधानिक सिद्धांतों की रक्षा में नरीमन की विरासत को मज़बूत किया।
  • कर्नाटक राज्य बनाम तमिलनाडु राज्य (1991):
    • कावेरी जल विवाद में फली एस नरीमन की लंबे समय तक भागीदारी विधिक रास्ते के माध्यम से विवादास्पद मुद्दों को हल करने की उनकी प्रतिबद्धता का उदाहरण है।
    • चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, उनके सैद्धांतिक रुख ने न्यायपालिका से प्रशंसा अर्जित की, जो विधिक अभ्यास के उच्चतम मानकों के प्रति उनके अटूट समर्पण को रेखांकित करता है।
  • उच्चतम न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1993):
    • वर्ष 1981 में, SC की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसमें कहा गया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की राय न्यायिक नियुक्तियों में सर्वोपरि महत्त्व रखती है, जो निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये सर्वसम्मति के दृष्टिकोण को दर्शाती है।
    • न्यायिक स्वतंत्रता मूलभूत है; CJI के साथ परामर्श बाध्यकारी है, जो संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने और सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने में न्यायपालिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
    • उच्चतम न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) का प्रतिनिधित्व करते हुए फली एस नरीमन ने वर्ष 1987 में इस फैसले का विरोध किया।
    • फली एस नरीमन ने न्यायिक स्वतंत्रता के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए तर्क दिया कि अनुच्छेद 124 के तहत "परामर्श" शब्द को केवल सलाह लेने से कहीं अधिक की आवश्यकता है।
      • उनकी वकालत के कारण अंततः वर्ष 1993 में उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम की स्थापना हुई, जिसने वरिष्ठ न्यायाधीशों को न्यायिक नियुक्तियों के लिये बाध्यकारी सिफारिशें करने का अधिकार दिया।
  • पुन: विशेष संदर्भ 1 (1998):
    • द्वितीय न्यायाधीश मामले के बाद, राष्ट्रपति के आर नारायणन ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया पर स्पष्टीकरण मांगा।
    • फली एस नरीमन ने इस मामले में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और न्यायालय को यह स्पष्ट करने में सहायता की कि CJI को सिफारिशें करने से पहले साथी न्यायाधीशों से परामर्श करना चाहिये।
    • वर्ष 1998 में दिये गए फैसले में, नियुक्तियों में न्यायपालिका की स्वायत्तता को मज़बूत करते हुए, पाँच वरिष्ठतम न्यायाधीशों को शामिल करने के लिये उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम की संरचना का विस्तार किया गया।
  • यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन बनाम भारत संघ (1989):
    • विनाशकारी भोपाल गैस रिसाव के बाद, पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिये बातचीत में फली एस नरीमन ने यूनियन कार्बाइड का प्रतिनिधित्व किया।
    • उनके प्रयासों का समापन एक समझौता में हुआ, जो जटिल कानूनी विवादों को करुणा और निष्पक्षता के साथ हल करने की उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
  • TMA पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2002):
    • फली एस नरीमन की वकालत अल्पसंख्यक अधिकारों से संबंधित मामलों तक फैली हुई है, जैसा कि TMA पाई फाउंडेशन मामले में प्रामाणित है।
    • उनके तर्कों ने अल्पसंख्यक संचालित शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता का समर्थन किया, संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार स्कूलों की स्थापना और प्रशासन करने के उनके अधिकार की रक्षा की।
  • जे. जयललिता बनाम तमिलनाडु राज्य (2014):
    • पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता से जुड़े एक हाई-प्रोफाइल मामले में, फली एस नरीमन ने ज़मानत हासिल की और उनकी सज़ा को निलंबित कर दिया, इस जटिल कानूनी कार्यवाही को उन्होंने परिश्रम एवं  विशेषज्ञता के साथ इसे निपुणता से पूरा किया।
  • सर्वोच्च न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2015):
    फली एस नरीमन ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 (NJAC) के खिलाफ आरोप का नेतृत्व किया, जिसने न्यायिक स्वतंत्रता के लिये संभावित खतरा उत्पन्न कर दिया।
    SCAORA का प्रतिनिधित्व करते हुए, फली एस नरीमन ने तर्क दिया कि NJAC के प्रावधान न्यायपालिका की स्वायत्तता पर प्रभाव डालेंगे।
    वर्ष 2015 में, सर्वोच्च न्यायालय  ने फली एस नरीमन के रुख से सहमति जताते हुए NJAC को रद्द कर दिया और न्यायाधीश नियुक्तियों के लिये कॉलेजियम प्रणाली की फिर से पुष्टि की।
  • अरुणाचल प्रदेश संकट में राज्यपाल का अधिकार: नबाम रेबिया और बमांग फेलिक्स बनाम डिप्टी स्पीकर (2016):
    • अरुणाचल प्रदेश में राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान, फली एस नरीमन के प्रतिनिधित्व ने मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करने के राज्यपाल के दायित्व पर ज़ोर देकर संवैधानिक व्यवस्था को बहाल करने में मदद की।
    • उनके प्रयासों ने चुनौतीपूर्ण संवैधानिक संकट के बीच लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने में योगदान दिया।