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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

राजेश बिंदल

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 21-Feb-2024

कौन हैं न्यायमूर्ति राजेश बिंदल?

न्यायमूर्ति राजेश बिंदल भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हैं। उनका जन्म 16 अप्रैल, 1961 को अंबाला शहर, हरियाणा, भारत में हुआ था, उन्होंने 1985 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. प्राप्त किया, उसी वर्ष सितंबर में पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालय में अपना कानूनी कॅरियर शुरू किया ।

न्यायमूर्ति राजेश बिंदल का कॅरियर:

  • न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) में चंडीगढ़ प्रशासन की सेवा की और 2004 तक कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के पंजाब व हरियाणा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया।
  • विशेष रूप से, उन्होंने हरियाणा और पंजाब के बीच सतलुज-यमुना जल विवाद को हल करने में योगदान दिया।
  • उन्हें 2006 में पंजाब व हरियाणा के उच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया था, उन्होंने समितियों की अध्यक्षता की तथा कानूनी सुधारों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के लिये मसौदा तैयार करना एवं बच्चों का संरक्षण (अंतर-देश निष्कासन और प्रतिधारण) विधेयक, 2016 शामिल है।
  • उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान लगभग 80,000 मामलों का निपटारा किया।
  • उन्होंने जम्मू और कश्मीर व लद्दाख, कलकत्ता उच्च न्यायालय के लिये कॉमन उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की भूमिका ग्रहण की तथा अंततः 13 फरवरी, 2023 को उच्चतम न्यायालय से पदोन्नत होने से पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।

न्यायमूर्ति राजेश बिंदल के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?

  • श्री लक्ष्मी स्टील्स बनाम भारत संघ (2016):
    • वह पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति राजेश बिंदल भी शामिल थे, मेजर पोर्ट ट्रस्ट एक्ट, 1963 के एक मामले की सुनवाई कर रही थी।
    • पीठ ने कहा के तहत प्राधिकरण की भूमिका पोर्ट अथॉरिटी दरों को निर्धारित करने तक सीमित थी, जबकि धारा 53 बोर्ड को शुल्क छूट मांगने वाले मामलों तक सीमित करती है।
    • सरकार के नीति निर्देश सीमा शुल्क द्वारा हिरासत में लिये गए माल के मामलों पर समान रूप से लागू होते हैं, जो जारी किये गए प्रमाण पत्र द्वारा सिद्ध होता है; इसलिये, पोर्ट ट्रस्ट को बाध्य करने वाले 2009 के विनियम 6(1) के तहत, सीमा पर विलंब शुल्क माफ किया सकता है।
  • जम्मू-कश्मीर राज्य बनाम मोहम्मद इमरान खान (2020):
    • पीठ ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की सदस्यता देते हुए निर्देश दिया कि केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की सभी अदालतों को अपनी कार्यवाही एवं निर्णयों में बलात्कार पीड़ितों की पहचान का खुलासा करने से बचना चाहिये।
    • एक और निर्देश जारी किया गया कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर व केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के सभी स्वास्थ्य पेशेवर बलात्कार पीड़िताओं का "प्रति-योनि परीक्षण" के रूप में "टू फिंगर टेस्ट" करने से सख्ती से बचें।
  • अंबिका रॉय बनाम माननीय अध्यक्ष, पश्चिम बंगाल विधान सभा और अन्य (2021):
    • यह मामले में प्रतिवादी नंबर 2 रहे एक सदस्य की अयोग्यता और पश्चिम बंगाल के अध्यक्ष के फैसले से संबंधित विषय था।
    • न्यायमूर्ति राजेश बिंदल के न्यायालय ने यह भी माना कि स्पीकर को भाजपा से AITC में शामिल होने वाले प्रतिवादी नंबर 2 की अयोग्यता के लिये उनके समक्ष दायर याचिका पर निर्णय करना आवश्यक था, जिसके परिणामस्वरूप विधानसभा में उनकी सदस्यता संदेह में थी।
  • दुर्गावती सिंह और अन्य बनाम उप रजिस्ट्रार, फर्म, सोसायटी एवं चिट, लखनऊ व अन्य (2022):
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने कहा कि, ऐसे मामलों में जहाँ तथ्यों को स्वीकार किया जा सकता है या निर्विवाद कहा जा सकता है, और केवल एक निष्कर्ष संभव है, न्यायालय रद्द करने या रिमांड के निरर्थक आदेश पारित नहीं करता है, जब वास्तव में, कोई पूर्वाग्रह उत्पन्न नहीं होता है।
      • यह निष्कर्ष न्यायालय द्वारा किसी मामले के तथ्यों के मूल्यांकन पर निकाला जाना चाहिये, न कि उस प्राधिकारी द्वारा जो किसी व्यक्ति को प्राकृतिक न्याय से वंचित करता है।
  • क्रिएटिव गारमेंट्स लिमिटेड बनाम काशीराम वर्मा (2023):
    • न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि किसी कामगार को प्रभावी राहत तभी प्रदान की जा सकती है जब दलीलों में कामगार का स्थायी पता दिया गया हो।
  • नीरज दत्ता बनाम दिल्ली राज्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (2023):
    • न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की खंडपीठ ने कहा कि, एक लोक सेवक द्वारा आरोपित परितोषण और स्वीकृति की मांग के आरोप को एक उचित संदेह से पृथक लगाया जाना चाहिये।