चेन्नु गौराराजू चेट्टी बनाम चेन्नरु सीताममूर्ति चेट्टी 1959 AIR 190
Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है









होम / भागीदारी अधिनियम

सिविल कानून

चेन्नु गौराराजू चेट्टी बनाम चेन्नरु सीताममूर्ति चेट्टी 1959 AIR 190

    «    »
 23-May-2024

परिचय:

यह मामला बताता है कि विधि या साम्य का कोई पूर्ण नियम नहीं है कि एक भागीदार द्वारा पट्टे का नवीनीकरण आवश्यक रूप से सभी भागीदारों के लाभ के लिये सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

तथ्य:

  • यह विवाद मद्रास नमक अधिनियम 1889 में उल्लिखित सरकारी नियमों के अंतर्गत नमक निर्माण में लगे पक्षों से संबंधित है।
  • नमक का निर्माण केवल उक्त अधिनियम के नियमों के अंतर्गत सरकारी स्वामित्व वाली भूमि एवं कारखाने पर ही स्वीकार्य है।
  • बोली के माध्यम से प्राप्त एक पट्टा (उच्चतम बोली लगाने वाले को दिया गया), जनवरी 1926 से दिसंबर 1942 तक 17 वर्षों के लिये दिया गया था।
  • भागीदारी विलेख में 17 वर्ष के पट्टे की अवधि के बाद भागीदारी जारी रखने के संबंध में कोई प्रावधान नहीं था।
  • वर्ष 1939 के आस-पास पक्षकारों के मध्य विवाद उत्पन्न हो गए।
  • अगस्त 1941 में, सरकार ने अपनी नीति में बदलाव किया, उच्चतम बोली के बजाय संबंधित विभाग की राय में संतोषजनक आचरण के आधार पर नए पट्टे दिये।
  • 15 अप्रैल 1943 को प्रतिवादियों को जनवरी 1943 से दिसंबर 1967 तक 25 वर्षों के लिये एक नया पट्टा प्रदान किया गया।
  • नमक निर्माण का पिछला पट्टा एवं अनुज्ञप्ति (लाइसेंस), जो भागीदारी व्यवसाय का भाग था, दिसंबर 1942 में समाप्त हो गया।
  • एक प्रतिवादी ने खातों का निपटान करने एवं नमक स्टॉक का निपटान करने के लिये नोटिस दिया, क्योंकि भागीदारी महीने के अंत में समाप्त हो रही थी।
  • वाद जनवरी 1943 में प्रारंभ हुआ था।

शामिल मुद्दे:

  • क्या वादी नए पट्टे को विघटित भागीदारी की संपत्ति के रूप में मानने के अधिकारी थे?

टिप्पणी:

  • उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि मूल पट्टा समाप्त होने पर भागीदारी वर्ष 1942 में स्वतः समाप्त हो गई।
  • नया पट्टा अप्रैल 1943 में दिया गया तथा नमक निर्माण एवं बिक्री के लिये स्थायी लाइसेंस वर्ष 1945 में प्राप्त किया गया।
  • विधिक तौर पर, जनवरी 1943 में वाद के समय, नमक निर्माण के लिये कोई वैध पट्टा या लाइसेंस नहीं था।
  • इसलिये, स्थायी लाइसेंस दिये जाने तक वादी, नमक निर्माण व्यवसाय को प्रभावी ढंग से संचालित नहीं कर सकते थे।
  • वादी का दावा वैध होता है, यदि वे सतत् भागीदारी के अस्तित्त्व को सिद्ध कर पाते, लेकिन वे ऐसा करने में विफल रहे थे।
  • परिणामस्वरूप, वे भागीदारी व्यवसाय की संपत्ति के रूप में नवीनीकृत पट्टे में किसी भी हित के अधिकारी नहीं थे।
  • मूल पट्टा समाप्त होने पर भागीदारों के मध्य परस्पर संबंध समाप्त हो गए तथा उस समापन के बाद प्रतिवादियों के पास भागीदारों के हितों की रक्षा करने का कोई दायित्व नहीं था।

निष्कर्ष:

  • यह मामला स्थापित करता है कि एक भागीदारी द्वारा पट्टे का नवीनीकरण आवश्यक रूप से सभी भागीदारों को लाभ प्रदान नहीं करता है, विधि या साम्य में पूर्ण नियम की अनुपस्थिति पर बल देता है। उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने रेखांकित किया कि मूल पट्टे की समापन ने भागीदारों के मध्य परस्पर संबंध के समापन को चिह्नित किया तथा वादी एक सतत् भागीदारी स्थापित करने में विफल रहे, इस प्रकार नवीनीकृत पट्टे में किसी भी हित के लिये उनकी पात्रता भी समाप्त हो गई।