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हिंदू विधि के तहत भरण-पोषण संबंधी कानून
« »29-Dec-2023
परिचय:
- भरण-पोषण प्राय: जीवन के लिये आवश्यक वस्तुओं के खर्च को कवर करता है। हालाँकि, यह केवल दावेदार के जीवित रहने का अधिकार नहीं है।
- 'भरण-पोषण' शब्द को हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (Hindu Adoption and Maintenance Act) की धारा 3 (b) के तहत भी परिभाषित किया गया है।
- इसमें भोजन, कपड़े, आश्रय, शिक्षा और चिकित्सा व्यय जैसी मूलभूत आवश्यकताओं का प्रावधान शामिल है।
हिंदू विधि के तहत दो कानूनों के तहत भरण-पोषण का दावा किया जा सकता है
- हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत भरण-पोषण:
- HAMA, 1956 भरण-पोषण से संबंधित प्रावधान निर्धारित करता है।
- यह अधिनियम पत्नी, बच्चों, वृद्ध या अशक्त माता-पिता, विधवा बहू और आश्रितों के भरण-पोषण के लिये प्रावधान करता है।
- भरण-पोषण के प्रावधान के पीछे मुख्य कारण तलाकशुदा पत्नी या वृद्ध माता-पिता या अवयस्क बच्चों या किसी अन्य आश्रित को उनके हित और उनकी जीविका आवश्यकताओं के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
HAMA, 1956 के तहत भरण-पोषण का दावा कौन कर सकता है?
- पत्नी
- विधवा बहू
- बच्चे (धर्मज पुत्र, अधर्मज पुत्र, अविवाहित धर्मज और अधर्मज पुत्री, विवाहित पुत्री जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो)
- अभिभावक
- कोई अन्य आश्रित व्यक्ति
पत्नी का भरण-पोषण (HAMA, 1956 की धारा 18):
धारा 18(1):
- इस उपधारा के तहत, पति अपनी पत्नी के जीवनकाल के दौरान उसका भरण-पोषण करने के लिये बाध्य है।
- अपनी पत्नी का भरण-पोषण करना पति का व्यक्तिगत दायित्त्व है जो विवाह से शुरू होता है और पूरे वैवाहिक संबंध के दौरान जारी रहता है।
- अपने साथ रहने वाली पत्नी का भरण-पोषण करना पति का अनिवार्य कर्त्तव्य है।
- पति का भरण-पोषण का दायित्त्व तभी समाप्त होता है जब वह बिना किसी उपयुक्त कारण या उसकी सहमति के उसे छोड़ देती है।
धारा 18(2):
- इस उपधारा के तहत, एक पत्नी जो उपयुक्त कारण या उसकी सहमति से अपने पति से अलग रहती है, वह भरण-पोषण की हकदार है।
- यह उन आधारों की एक सूची प्रदान करता है जो बताते हैं कि कब एक पत्नी अलग रह सकती है और फिर भी अपने पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती है:
भरण-पोषण का दावा ज़ब्त किये बिना पत्नी अलग रह सकती है:
- यदि पति ने उसे कुछ समय के लिये छोड़ दिया हो।
- यदि पति ने उसके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया हो।
- यदि पति गंभीर कुष्ठ रोग से पीड़ित है।
- यदि उसकी एक अन्य जीवित पत्नी है।
- यदि वह घर या किसी अन्य स्थान पर रखैल/उपस्त्री रखता है।
- यदि उसने दूसरा धर्म अपना लिया हो।
- इनके अलावा कोई अन्य उपयुक्त कारण।
धारा 18(3):
- अगर पत्नी व्यभिचारी है या उसने कोई अन्य धर्म अपना लिया है तो वह अलग निवास में रहने की हकदार नहीं होगी।
विधवा बहू का भरण-पोषण (HAMA, 1956 की धारा 19):
- धारा 19(1) में कहा गया है कि एक हिंदू पत्नी जिसने इस अधिनियम के शुरू होने से पूर्व या बाद में विवाह किया है, वह अपने पति की मृत्यु के बाद अपने ससुर द्वारा भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार होगी।
वह निम्नलिखित शर्तों पर भरण-पोषण की हकदार होगी:
- जब वह अपनी आय से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो जाती है।
- जब वह निम्नलिखित की संपत्ति से भरण-पोषण प्राप्त करने में असमर्थ हो:
- अपने पति
- अपने पिता या माता
- अपने पुत्र या पुत्री
- धारा 19(2) उन शर्तों को बताती है जिनके तहत ससुर अपनी विधवा बहू के भरण-पोषण के लिये उत्तरदायी नहीं है:
- जब ससुर के पास उस सहदायिक संपत्ति से, जिसमें बहू का कोई हिस्सा नहीं है, भरण-पोषण करने का कोई साधन नहीं है, या
- जब बहू दूसरा विवाह कर लेती है।
बच्चों और वृद्ध माता-पिता का भरण-पोषण (HAMA, 1956 की धारा 20):
- इस अधिनियम में प्रावधान है कि एक हिंदू अपने बच्चों और वृद्ध या अशक्त माता-पिता का भरण-पोषण करने के लिये बाध्य है, यदि वे अपनी आय से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं।
'बच्चे' शब्द का अर्थ है -
- अवयस्क जो 18 वर्ष से कम आयु के हैं;
- इस शब्द में धर्मज और अधर्मज बच्चे शामिल हैं।
- इसके अलावा, 'माता-पिता' शब्द में निःसंतान सौतेली माँ भी शामिल है।
आश्रितों का भरण-पोषण (HAMA, 1956 की धारा 21 और 22):
- इस अधिनियम की धारा 21 और धारा 22 कुछ व्यक्तियों, जिन्हें आश्रित कहा जाता है, को नए अधिकार प्रदान करती है।
- आश्रित मृतक हिंदू के रिश्तेदार हैं और वे उत्तराधिकारियों द्वारा मृतक की संपत्ति के विरुद्ध भरण-पोषण का दावा करते हैं।
- उत्तराधिकारी शब्द में वे सभी व्यक्ति शामिल हैं जिन पर मृतक की संपत्ति अंतरित होती है।
- आश्रितों का अधिकार संपत्ति के विरुद्ध होता है न कि व्यक्तिगत रूप से उत्तराधिकारियों के विरुद्ध।
- यह व्यक्ति के जीवनकाल के दौरान उत्पन्न नहीं होता है; उनकी मृत्यु के बाद ही उन्हें आश्रित कहा जाता है।
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत भरण-पोषण:
- HMA, 1955 और HAMA, 1956 प्रारंभ में भरण-पोषण देने के प्रावधानों से संबंधित थे।
- HMA, 1955 के तहत, 2 प्रकार के भरण-पोषण का दावा किया जा सकता है।
धारा 24: अस्थायी भरण-पोषण (वादकालीन भरण-पोषण):
- जब न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि पत्नी या पति के पास उसके या उसके समर्थन के लिये पर्याप्त स्वतंत्र आय नहीं है, तो न्यायालय पत्नी या पति के आवेदन पर, प्रतिवादी को कार्यवाही के खर्च का भुगतान करने का आदेश दे सकती है और कार्यवाही के दौरान मासिक रूप से, याचिकाकर्त्ता की अपनी आय तथा प्रतिवादी की आय को ध्यान में रखते हुए, यह न्यायालय को उचित लग सकता है।
धारा 25- स्थायी भरण-पोषण:
- अलगाव या तलाक की कार्यवाही के निपटान के बाद स्थायी रूप से दिये जाने वाले भरण-पोषण को 'स्थायी भरण-पोषण' कहा जाता है।
- HMA, 1955 की धारा 25 के अनुसार, आवेदक पति या पत्नी होने के नाते अपने जीवनकाल तक के लिये सकल राशि या मासिक राशि के रूप में जीवनसाथी से अपना भरण-पोषण प्राप्त करने का हकदार है या जब तक आवेदक पुनर्विवाह नहीं कर लेता।
निर्णयज विधि:
- राज किशोर मिश्रा बनाम मीना मिश्रा (1994):
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि ससुर का दायित्त्व लागू करने योग्य नहीं होगा यदि उसके पास अपनी बहू को किसी भी सहदायिकी संपत्ति से बनाए रखने का कोई साधन नहीं है, जिसमें से बहू ने कोई हिस्सा प्राप्त नहीं किया है।
- अमर कांता सेन बनाम सोवाना सेन (1960):
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने माना कि, भले ही पत्नी जारकर्म या व्यभिचार में जी रही हो, उसे भरण-पोषण का प्रावधान किया गया है।
- यह भी निर्धारित किया गया कि, यदि वह अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, तो उसे किसी भी प्रकार के भरण-पोषण की आवश्यकता नहीं है।