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आपराधिक कानून
सत्र न्यायालय द्वारा संज्ञान
« »14-Jun-2024
परिचय:
संज्ञान शब्द लैटिन शब्द "कॉग्नोसिस" से लिया गया है, जिसका अर्थ- जानना। इस शब्द को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) में परिभाषित नहीं किया गया है, परंतु संज्ञान का अर्थ कई पूर्वनिर्णयों और न्यायिक घोषणाओं से लिया गया है।
- संज्ञान का अर्थ है ज्ञान या सूचना तथा अपराध का संज्ञान लेने का अर्थ है अपराध के होने की सूचना प्राप्त करना या उसके विषय में जागरूक होना। CrPC की धारा 193 सत्र न्यायालयों द्वारा अपराधों के संज्ञान से संबंधित है।
CrPC की धारा 193:
- CrPC की धारा 193, सत्र न्यायालय की किसी मामले में अभियुक्त के रूप में व्यक्तियों के नामों को जोड़ने की शक्ति से संबंधित है। यह धारा कहती है कि कोई भी सत्र न्यायालय, मजिस्ट्रेट को मामला सौंपे बिना मूल क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय के रूप में किसी अपराध का संज्ञान नहीं ले सकता।
- इसमें कहा गया है कि इस संहिता या किसी अन्य समय प्रवृत्त विधि द्वारा अन्यथा स्पष्ट उपबंध के सिवाय, कोई भी सत्र न्यायालय किसी अपराध का मूल क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय के रूप में संज्ञान नहीं लेगा, जब तक कि मामला इस संहिता के अधीन किसी मजिस्ट्रेट द्वारा उसे सौंप न दिया गया हो।
- संहिता की धारा 193 की भाषा स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि एक बार जब मामला संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा सत्र न्यायालय को सौंप दिया जाता है, तो सत्र न्यायालय मूल क्षेत्राधिकारिता ग्रहण कर लेता है।
CrPC की धारा 193 का उद्देश्य:
- सत्र न्यायालय को किसी अपराध का संज्ञान लेने से प्रतिबंधित करने का उद्देश्य, कुछ मामलों को छोड़कर, जब तक कि मामला मजिस्ट्रेट द्वारा उसे नहीं सौंपा गया हो, प्रारंभिक जाँच सुनिश्चित करने के उद्देश्य की पूर्ति करता है, हालाँकि प्रतिबंध इसलिये होता है ताकि अभियुक्त अपराध की परिस्थितियों से परिचित हो सके।
CrPC की धारा 193 का दायरा:
- एक बार जब मामला सत्र न्यायालय को सौंप दिया जाता है, तो CrPC की धारा 193 का प्रतिबंध हट जाता है और न्यायालय को अपराध का संज्ञान लेने के लिये मूल अधिकार क्षेत्र वाले न्यायालय का पूर्ण अप्रतिबंधित क्षेत्राधिकार प्राप्त हो जाता है, जिसमें व्यक्तियों को समन भेजना तथा आदेश जारी करने पर रोक लगाना शामिल है।
निर्णयज विधियाँ:
- रणजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य (1998) के मामले में, यह माना गया कि यदि सत्र न्यायालय को उच्चतम न्यायालय से आदेश प्राप्त होता है, तो बिना किसी कार्यवाही के उसके द्वारा अपराध का संज्ञान वैध है।
- हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य (2014) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने CrPC की धारा 193 के अधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए कहा कि किसी अभियुक्त को न्यायालय द्वारा समन किया जा सकता है, बशर्ते न्यायालय इस बात से संतुष्ट हो कि उक्त वैधानिक प्रावधानों में प्रदत्त शर्तें पूरी हो गई हैं।