होम / भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता
आपराधिक कानून
पीड़ित के अधिकार
« »23-Jan-2024
परिचय:
उत्पीड़न का निवारण इस दिशा में समग्र रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और संभावित पीड़ितों तक प्रासंगिक सूचना का प्रसार इस संबंध में उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये बहुत उपयोगी हो सकता है।
पीड़ित:
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 2 (wa) के अनुसार, पीड़ित का अर्थ उस व्यक्ति से है, जिसे उस कार्य या लोप के कारण कोई हानि या क्षति पहुँची हो, जिसके लिये अभियुक्त व्यक्ति पर आरोप लगाया गया है और पीड़ित की अभिव्यक्ति में उसके अभिभावक या कानूनी उत्तराधिकारी शामिल हैं।
- CrPC संशोधन अधिनियम, 2008 द्वारा पहली बार पीड़ित की अभिव्यक्ति को संहिता में परिभाषित किया गया है।
प्रतिकर देने का आदेश:
CrPC की धारा 357 आपराधिक न्यायालय को पीड़ित को प्रतिकर देने और अभियोजन की लागत का भुगतान करने का आदेश देने का अधिकार देती है। इसमें कहा गया है कि-
(1) जब कोई न्यायालय ज़ुर्माने का दंडादेश देता है या कोई ऐसा दंडादेश (जिसके अंतर्गत मृत्यु दंडादेश भी शामिल है) देता है जिसका भाग ज़ुर्माना भी है, तब निर्णय देते समय वह न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि वसूल किये गए सभी ज़ुर्माने या उसके किसी भाग का उपयोजन-
(a) अभियोजन में उचित रूप से उपगत व्ययों को चुकाने में किया जाए।
(b) किसी व्यक्ति को उस अपराध द्वारा हुई किसी हानि या क्षति का प्रतिकर देने में किया जाए, यदि न्यायालय की राय में ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रतिकर सिविल न्यायालय में वसूल किया जा सकता है।
(c) उस दशा में, जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु कारित करने के, या ऐसे अपराध के किये जाने का दुष्प्रेरण करने के लिये दोषसिद्ध किया जाता है, उन व्यक्तियों को, जो ऐसी मृत्यु से अपने को हुई हानि के लिये दंडादिष्ट व्यक्ति से नुकसानी वसूल करने के लिये घातक दुर्घटना अधिनियम, 1855 (1855 का 13) के अधीन हकदार हैं, प्रतिकर देने में किया जाए।
(d) जब कोई व्यक्ति, किसी अपराध के लिये, जिसके अंतर्गत चोरी, आपराधिक दुर्विनियोग, आपराधिक न्यासभंग या छल भी है, या चुराई हुई संपत्ति को उस दशा में जब वह यह जानता है या उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि वह चुराई हुई है बेईमानी से प्राप्त करने या रखे रखने के लिये या उसके व्ययन में स्वेच्छया सहायता करने के लिये, दोषसिद्ध किया जाए, तब ऐसी संपत्ति के सद्भावपूर्ण क्रेता को, ऐसी संपत्ति उसके हकदार व्यक्ति के कब्ज़े में लौटा दी जाने की दशा में उसकी हानि के लिये, प्रतिकर देने में किया जाए।
(2) यदि ज़ुर्माना ऐसे मामले में किया जाता है जो अपीलनीय है तो ऐसा कोई संदाय, अपील उपस्थित करने के लिये अनुज्ञात अवधि के बीत जाने से पहले या यदि अपील उपस्थित की जाती है तो उसके विनिश्चय के पूर्व, नहीं किया जाएगा।
(3) जब न्यायालय ऐसा दंड अधिरोपित करता है जिसका भाग ज़ुर्माना नहीं है तब न्यायालय निर्णय पारित करते समय, अभियुक्त व्यक्ति को यह आदेश दे सकता है कि उस कार्य के कारण जिसके लिये उसे ऐसा दंडादेश दिया गया है, जिस व्यक्ति को कोई हानि या क्षति उठानी पड़ी है, उसे वह प्रतिकर के रूप में इतनी रकम दे जितनी आदेश में विनिर्दिष्ट है।
(4) इस धारा के अधीन आदेश, अपील न्यायालय द्वारा या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा भी किया जा सकेगा जब वह अपनी पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो।
(5) उसी मामले से संबंधित किसी पश्चात्वर्ती सिविल वाद में प्रतिकर अधिनिर्णीत करते समय न्यायालय ऐसी किसी राशि को, जो इस धारा के अधीन प्रतिकर के रूप में दी गई है या वसूल की गई है, हिसाब में लेगा।
पीड़ित प्रतिकर योजना:
CrPC की धारा 357A पीड़ित प्रतिकर योजना से संबंधित है। इस धारा को CrPC संशोधन अधिनियम, 2008 द्वारा शामिल किया गया था ताकि राज्य सरकार को केंद्र सरकार के साथ समन्वय में पीड़ित या उसके आश्रितों के प्रतिकर के लिये एक योजना तैयार करने की सुविधा प्राप्त हो सके।
इसमें कहा गया है कि-
(1) प्रत्येक राज्य सरकार, केंद्रीय सरकार के समन्वय से, पीड़ित या उसके आश्रितों को, जिनको अपराध के परिणामस्वरूप हानि या क्षति पहुँची है तथा जिन्हें पुनर्वास की आवश्यकता है, को प्रतिकर प्रदान करने के प्रयोजन हेतु निधि के लिये योजना तैयार करेगी।
(2) जब कभी न्यायालय द्वारा प्रतिकर के लिये सिफारिश की जाती है, तो यथास्थिति, ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण या राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, उपधारा (1) में निर्दिष्ट योजना के अधीन अधिनिर्णीत किये जाने वाले प्रतिकर का विनिश्चय करेगा।
(3) विचारण की समाप्ति पर, यदि विचारण न्यायालय का समाधान हो जाता है कि धारा 357 के अधीन अधिनिर्णीत किया जाने वाला प्रतिकर ऐसे पुनर्वास के लिये पर्याप्त नहीं है या जहाँ मामले का अंत दोषमुक्ति या उन्मोचन में होता है तथा पीड़ित का पुनर्वास किया जाना होता है, यह प्रतिकर के लिये सिफारिश कर सकेगा।
(4) जहाँ अपराधी का पता नहीं चलता या उसकी पहचान नहीं हो पाती, किंतु पीड़ित की पहचान हो जाती है, विचारण नहीं होता है तो पीड़ित या उसके आश्रित प्रतिकर दिये जाने के लिये राज्य या ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण को आवेदन कर सकेंगे।
(5) उपधारा (4) के अधीन ऐसी सिफारिशें या आवेदन प्राप्त होने पर, राज्य या ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण, सम्यक् जाँच करने के पश्चात्, दो मास के भीतर जाँच पूरी करके पर्याप्त प्रतिकर अधिनिर्णीत करेगा।
(6) यथास्थिति, राज्य या ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण, पीड़ित की यातना को कम करने के लिये, पुलिस थाने के भारसाधक से अन्यून पंक्ति के पुलिस अधिकारी या संबद्ध क्षेत्र के मजिस्ट्रेट के प्रमाणपत्र पर प्राथमिक चिकत्सा सुविधा या चिकत्सा प्रसुविधाएँ उपलब्ध कराने या कोई अन्य अंतरिम अनुतोष दिलाने, जिसे समुचित प्राधिकरण ठीक समझे, के लिये तुरंत आदेश कर सकेगा।
पीड़ितों का उपचार:
- CrPC की धारा 357C में पीड़ितों के उपचार के संबंध में प्रावधान है।
- यह धारा न्यायमूर्ति जे.एस.वर्मा समिति की सिफारिशों पर जोड़ी गई है।
- इस धारा में कहा गया है कि सभी लोक या प्राइवेट अस्पताल, चाहे वे केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकायों या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चलाए जा रहे हों, भारतीय दंड संहिता की धारा 326A, धारा 376, धारा 376A, धारा 376AB, धारा 376B,धारा 376C, धारा 376D, धारा 376DA, धारा 376 DB या धारा 376E के अधीन आने वाले किसी अपराध के पीड़ितों को तुरंत नि:शुल्क प्राथमिक या चिकित्सीय उपचार उपलब्ध कराएँगे और ऐसी घटना की सूचना तुरंत पुलिस को देंगे।
निर्णयज विधि:
- मनीष जालान बनाम कर्नाटक राज्य (2008) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रतिकर की राशि अपराध की प्रकृति, क्षति और दोषी की प्रतिकर देने की क्षमता को ध्यान में रखकर निर्धारित की जानी चाहिये। प्रतिकर की राशि उचित होनी चाहिये, जिसे संबंधित व्यक्ति भुगतान करने में सक्षम हो।