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आपराधिक कानून

व्यपहरण

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 20-Jun-2024

परिचय:

व्यपहरण एक आपराधिक कृत्य है जो भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत व्यक्ति के जीवन एवं स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।

प्रासंगिक प्रावाधान:

  • IPC की धारा 359 में कहा गया है कि व्यपहरण दो प्रकार का होता है:
    • भारत से व्यपहरण
    • वैध अभिभावकत्व से व्यपहरण
  • IPC की धारा 360 भारत से व्यपहरण को परिभाषित करती है:
    • इस धारा में कहा गया है कि जो कोई भी, किसी व्यक्ति को उसकी सहमति के बिना, या उस व्यक्ति की ओर से सहमति देने के लिये विधिक रूप से प्राधिकृत किसी व्यक्ति की सहमति के बिना भारत की सीमाओं से बाहर ले जाता है, तो यह कहा जाता है कि उसने उस व्यक्ति का भारत से व्यपहरण किया है।
  • IPC की धारा 361 वैध अभिभावकत्व से व्यपहरण को परिभाषित करती है:
    • इसमें कहा गया है कि जो कोई भी किसी अल्पवयस्क को, यदि वह पुरुष है तो सोलह वर्ष से कम आयु का, या यदि वह महिला है तो अठारह वर्ष से कम आयु का, या किसी विकृत चित्त वाले व्यक्ति को, ऐसे अल्पवयस्क या विकृत चित्त वाले व्यक्ति के वैध अभिभावक की देखरेख से, ऐसे अभिभावक की सहमति के बिना ले जाता है या बहलाता है, तो उसे ऐसे अल्पवयस्क या व्यक्ति को वैध अभिभावकत्व से व्यपहरण करना कहा जाता है।
    • अपवाद: यह धारा ऐसे किसी व्यक्ति के कार्य पर लागू नहीं होगी जो सद्भावपूर्वक अपने को किसी अधर्मज बच्चे का पिता मानता है, या जो सद्भावपूर्वक अपने को ऐसे बच्चे की वैध अभिरक्षा का अधिकारी मानता है, जब तक कि ऐसा कार्य किसी अनैतिक या अविधिक उद्देश्य के लिये न किया गया हो।

व्यपहरण के प्रमुख तत्त्व:

  • व्यपहरण के अपराध को गठित करने वाले तत्त्व हैं:
    • ले जाना या फुसलाना- व्यपहरण में किसी व्यक्ति को उसके वैध संरक्षण या सुरक्षित स्थान से ले जाना या फुसलाना शामिल होता है।
    • सहमति के बिना- यह कार्य व्यक्ति या उसके वैध अभिभावक की सहमति के बिना किया जाना चाहिये।
    • आशय- अपराध करने का आशय अवश्य होना चाहिये।

दण्ड:

  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363 के अनुसार भारत से व्यपहरण करने तथा वैध अभिभावकत्व से बाहर ले जाने पर सात वर्ष तक के कारावास तथा अर्थदण्ड का प्रावधान है।

व्यपहरण से संबंधित अपराध:

  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363A, भीख मांगने के उद्देश्य से अल्पवयस्क का व्यपहरण या उसे अपंग बनाने से संबंधित है।
    • इसमें कहा गया है कि जो कोई भी व्यक्ति किसी अल्पवयस्क (16 वर्ष से कम आयु के पुरुष और 18 वर्ष से कम आयु की महिला) का भीख मांगने के लिये व्यपहरण करता है या अवैध रूप से उसे अपने कब्ज़े में लेता है, उसे 10 वर्ष तक के कारावास और अर्थदण्ड का दण्ड दिया जाएगा।
    • जो कोई भी किसी अल्पवयस्क को भीख मांगने के लिये अपंग बनाता है, उसे आजीवन कारावास और अर्थदण्ड से दण्डित किया जाएगा।
  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 364 व्यपहरण या हत्या के इरादे से व्यपहरण करने से संबंधित है।
    • यह धारा किसी व्यक्ति की हत्या करने या उसे ऐसी स्थिति में डालने के आशय से व्यपहरण करने या व्यपहरण करने के कृत्य को निहित करती है, जहाँ उसकी हत्या होने की संभावना हो। इसमें आजीवन कारावास या 10 साल तक के कठोर कारावास और अर्थदण्ड के दण्ड का प्रावधान है।
  • IPC की धारा 364A फिरौती आदि के लिये व्यपहरण से संबंधित है।
    • इसमें कहा गया है कि जो कोई भी व्यक्ति किसी व्यक्ति का व्यपहरण करता है, उसे बंदी बनाता है, या उसे जान से मारने या चोट पहुँचाने की धमकी देता है, ताकि शासन को कोई कार्य करने या कोई कार्य करने से विरत रहने के लिये बाध्य किया जा सके या फिर फिरौती दी जा सके, उसे मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास और अर्थदण्ड से दण्डित किया जाएगा।
  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 365 किसी व्यक्ति को गुप्त रूप से या गलत तरीके से बंधक बनाने के इरादे से व्यपहरण या अपहरण करने से संबंधित है, जिसके लिये 7 वर्ष तक का कारावास और अर्थदण्ड का दण्ड हो सकता है।
  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 366 किसी महिला का व्यपहरण करने, उसे भगा ले जाने या विवाह के लिये बाध्य करने आदि से संबंधित है जिसका उद्देश्य हो:
    • उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे विवाह करने के लिये बाध्य करना।
    • उसे अवैध संभोग के लिये बाध्य करना या बहकाना।
    • 10 वर्ष तक के कारावास (साधारण या कठोर) और अर्थदण्ड से दण्डित किया जाएगा।
  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 367, किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुँचाने, गुलाम बनाने आदि के लिये व्यपहरण करने से संबंधित है, जिसके लिये 10 वर्ष तक के कारावास और अर्थदण्ड से दण्डनीय होगा।
  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 369 के अधीन दस वर्ष से कम आयु के बच्चे का व्यपहरण या उसकी चल संपत्ति चुराने के इरादे से व्यपहरण करने पर 7 वर्ष तक के कारावास और अर्थदण्ड से दण्डित किया जा सकता है।

निर्णयज विधियाँ:

  • प्रकाश बनाम हरियाणा राज्य (2004) में, उच्चतम न्यायालाय ने कहा कि IPC की धारा 361 के अधीन उस अल्पवयस्क की सहमति पूरी तरह से अप्रासंगिक है जिसे ले जाया या बहलाया जाता है। केवल अभिभावक की सहमति ही मामले को इसके दायरे से बाहर करती है। साथ ही, यह आवश्यक नहीं है कि ले जाना या बहलाना बलपूर्वक या धोखाधड़ी से ही हो। अल्पवयस्क की इच्छा उत्पन्न करने के लिये अभियुक्त द्वारा अनुनय, इस धारा को आकर्षित करने के लिये पर्याप्त है।
  • हरियाणा राज्य बनाम राजा राम (1974) में, उच्चतम न्यायालय ने IPC की धारा 361 के अधीन अभियुक्त के दण्ड को बरकरार रखा और स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को उसके वैध संरक्षकत्व से बाहर निकालना या बहलाना अपहरण के समान है। माननीय न्यायालय ने यह भी स्थापित किया कि सहमति स्वतंत्र और स्वैच्छिक होनी चाहिये और ऐसी सहमति प्राप्त करने के लिये इस्तेमाल किया गया कोई भी दबाव या बल इसे अमान्य कर देगा
  • एस. वरदराजन बनाम मद्रास राज्य (1965) मामले में उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि किसी अल्पवयस्क का किसी व्यक्ति के साथ जाना एवं उसे जाने की अनुमति देना एक ही बात नहीं मानी जानी चाहिये।