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मुस्लिम विधि के अंतर्गत हिबा (उपहार)

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 24-Jun-2024

परिचय:

  • उपहार या हिबा एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को बिना किसी विनिमय के तुरंत किया गया संपत्ति का अंतरण है जिसे दूसरे व्यक्ति द्वारा या उसके द्वारा स्वीकार किया जाता है।
  • हिबा को निर्देशित करने वाले नियम कुरान, हदीस (पैगंबर मुहम्मद का आदेश) एवं इस्लामी विचारधारा के विभिन्न शाखाओं से लिये गए हैं।
  • उपहार के सिद्धांत का आधार पैगंबर का यह कथन है, "आपस में उपहारों का आदान-प्रदान करें ताकि मोहब्बत बढ़े"।
  • हिबा या उपहार की परिभाषा कंज़ अल दाक़ीक में दी गई है।

वैध हिबा के लिये आवश्यक तत्त्व:

  • दाता के द्वारा हिबा की घोषणा:
    • दानकर्त्ता को उपहार की स्पष्ट एवं सुस्पष्ट घोषणा करनी चाहिये।
    • संपत्ति के स्वामित्व को अंतरित करने का आशय स्पष्ट होना चाहिये तथा इसे दानकर्त्ता को सूचित करना चाहिये।
  • आदाता (ग्रहणकर्त्ता) के द्वारा हिबा की स्वीकार्यता:
    • आदाता को दानकर्त्ता के जीवनकाल में ही उपहार स्वीकार करना होगा।
    • यदि आदाता अप्राप्तवय है या उपहार स्वीकार करने में असमर्थ है, तो उसका अभिभावक उसकी ओर से उपहार स्वीकार कर सकता है
  • कब्ज़े का परिदान:
    • उपहार की प्रक्रिया पूरी करने के लिये कब्ज़े का वास्तविक या रचनात्मक परिदान होना चाहिये। दानकर्त्ता को स्वामित्व का त्याग करना चाहिये तथा आदाता को संपत्ति का स्वामित्त्व ग्रहण करना चाहिये।

अपेक्षित वस्तुएँ एवं प्रतिबंध:

  • दाता की सक्षमता:
    • दानकर्त्ता स्वस्थ मस्तिष्क का होना चाहिये तथा अप्राप्तवय नहीं होना चाहिये।
    • उसके पास संपत्ति अंतरित करने की विधिक क्षमता होनी चाहिये।
  • आदाता की सक्षमता:
    • उपहार के आदाता को संपत्ति को धारण करने एवं उसका स्वामित्व बनाए रखने में सक्षम होना चाहिये।
    • अप्राप्तवय एवं अस्वस्थ व्यक्ति अपने अभिभावकों के माध्यम से उपहार प्राप्त कर सकते हैं।
  • संपत्ति के अस्तित्त्व में होने की बाध्यता:
    • उपहार की विषय-वस्तु हिबा के समय अस्तित्त्व होनी चाहिये, भविष्य की संपत्ति हिबा के रूप में नहीं दी जा सकती।
  • विधिक उद्देश्य:
    • उपहार का उद्देश्य मुस्लिम विधि के अंतर्गत वैध होना चाहिये। कोई भी संपत्ति जो निषिद्ध (हराम) है, उसे उपहार के रूप में नहीं दिया जा सकता।

मुस्लिम विधि के अंतर्गत हिबा के प्रकार:

  • हिबा-बिल-नवाज़ (विनिमय के साथ हिबा)
    • यह एक ऐसा उपहार है जिसे विनिमय के द्वारा दिया जाता है।
    • इस उपहार में, दाता उपहार पाने वाले को कुछ देता है तथा बदले में, लगभग बराबर मूल्य की कोई अन्य वस्तु प्राप्त करता है।
    • इस तरह के उपहार को पंजीकृत होना चाहिये तथा एक मौखिक वचन पर्याप्त नहीं है।
  • हिबा-बा-शर्त-उल-इवाज़
    • इस प्रकार का उपहार बदले में कुछ प्राप्त करने की शर्त के साथ दिया जाता है, यदि शर्त पूरी नहीं होती है, तो उपहार रद्द किया जा सकता है।
    • उपहार को वैध बनाने के लिये कब्ज़े का परिदान आवश्यक है।
    • उपहार के आदाता द्वारा दानकर्त्ता को इवाज़ (वापसी) सौंपे जाने पर अपरिवर्तनीय हो जाता है।
  • अरीयत:
    • अरियत स्वामित्व का अंतरण नहीं है, बल्कि यह लाभ का आनंद लेने का एक अस्थायी लाइसेंस (अनुज्ञप्ति) है, जब तक दानकर्त्ता चाहे।
    • आदाता की मृत्यु होने पर, संपत्ति दानकर्त्ता को वापस कर दी जाएगी।
  • सदका:
    • सदका धार्मिक पुण्य प्राप्त करने के उद्देश्य से दिया गया उपहार है।
    • एक बार सदका का उपहार दे दिया गया तथा कब्ज़ा सौंप दिया गया, तो यह अपरिवर्तनीय हो जाता है।
    • सदका वैध नहीं है अगर इसमें संपत्ति में अविभाजित हिस्सा शामिल है।

हिबा का प्रतिसंहरण:

  • दानकर्त्ता द्वारा कब्ज़ा मिलने से पहले किसी भी समय उपहार को रद्द किया जा सकता है।
  • निम्नलिखित मामलों को छोड़कर, कब्ज़े के परिदान के बाद भी उपहार को रद्द किया जा सकता है:
    • जब उपहार पति द्वारा अपनी पत्नी को या पत्नी द्वारा अपने पति को दिया जाता है
    • जब आदाता का दानकर्त्ता से निषिद्ध डिग्री के अंतर्गत संबंध होता है
    • जब आदाता की मृत्यु हो जाती है
    • जब दी गई वस्तु बिक्री, उपहार या अन्यथा द्वारा आदाता के कब्ज़े से बाहर हो जाती है
    • जब दी गई वस्तु खो जाती है या नष्ट हो जाती है
    • जब दी गई वस्तु का मूल्य बढ़ जाता है, वृद्धि का कारण चाहे जो भी हो
    • जब दी गई वस्तु में इतना परिवर्तन हो जाता है कि उसे पहचाना नहीं जा सकता, जैसे जब गेहूँ को पीसकर आटे में बदल दिया जाता है
    • जब दानकर्त्ता को उपहार के बदले में कुछ प्राप्त होता है।

निर्णयज विधियाँ:

  • हफिज़ा बीवी बनाम शेख़ फरीद (2011)
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक मौखिक उपहार जो वैध उपहार की सभी तीन अनिवार्यताओं को पूरा करता है, उसे पूर्ण एवं अपरिवर्तनीय उपहार माना जाएगा।
  • महबूब साहब बनाम सैय्यद इस्माइल (1995)
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम विधि के अंतर्गत उपहार लिखित रूप में देना आवश्यक नहीं है, इसलिये उसे पंजीकरण अधिनियम, 1908 के अंतर्गत पंजीकृत कराने की आवश्यकता नहीं है।
  • अब्दुल रहीम बनाम अब्दुल ज़फर (2009)
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि किसी वैध उपहार के कारण उपहार में दी गई वस्तु आदाता के स्वामित्व से बाहर हो गई है, तो उसे रद्द नहीं किया जा सकता।

निष्कर्ष:

हिबा मुस्लिम पर्सनल लॉ का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, जो समुदाय के भीतर उदारता एवं समर्थन के सिद्धांतों पर ज़ोर देता है। इसके आवश्यक तत्त्वों एवं विधिक आवश्यकताओं को समझना दानकर्त्ताओं एवं आदाताओं दोनों के लिये महत्त्वपूर्ण है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उपहार वैध और लागू करने योग्य है। हिबा को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत इस्लामी न्यायशास्त्र के व्यापक मूल्यों को दर्शाते हैं, जो दयालुता एवं कल्याण को बढ़ावा देते हैं।