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पारिवारिक कानून
मुस्लिम विधि के तहत न्यायिक तलाक
« »25-Dec-2023
परिचय:
- एक पति बिना कोई कारण बताए शादी को नकारकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। ऐसे शब्दों का उच्चारण जो पत्नी को त्यागने के उसके इरादे को दर्शाता हो, पर्याप्त है।
- कोई भी पत्नी अपनी मर्ज़ी से अपने पति को तलाक नहीं दे सकती। वह अपने पति को तभी तलाक दे सकती है जब पति ने उसे ऐसा अधिकार किसी समझौते के तहत सौंपा हो।
- एक समझौते के तहत, पत्नी अपने पति को खुला या मुबारत द्वारा तलाक दे सकती है। वर्ष 1939 से पहले एक मुस्लिम पत्नी को पति पर जारकर्म, पागलपन या नपुंसकता के झूठे आरोपों के अलावा तलाक लेने का कोई अधिकार नहीं था।
- लेकिन मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 कई अन्य आधार बताता है जिसके आधार पर एक मुस्लिम पत्नी न्यायालय के आदेश से तलाक की डिक्री पारित करा सकती है।
मुस्लिम विधि के तहत तलाक अतिरिक्त न्यायिक्त और न्यायिक पद्धति से लिया जा सकता है:
- अतिरिक्त न्यायिक्त:
- पति द्वारा- तलाब, इला और ज़िहार।
- पत्नी द्वारा- तलाक-ए-तफवीज़, लियान।
- आपसी सहमति से- खुला और मुबारत।
- मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 द्वारा वर्ष 1939 में न्यायिक तलाक की शुरुआत की गई जिसके तहत केवल पत्नी ही तलाक के लिये मुकदमा कर सकती थी।
- न्यायिक प्रक्रिया द्वारा विघटन:
- लियान (आपसी निंदा): इसका उल्लेख 'कुरान' में किया गया है और पैगंबर की परंपराओं द्वारा समर्थित है। 'लियान' की प्रक्रिया को संक्षेप में इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है:
- एक पति अपनी पत्नी पर जारकर्म का आरोप लगाता है लेकिन आरोप साबित नहीं कर पाता। ऐसे मामलों में पत्नी शादी के विघटन के लिये मुकदमा दायर करने की हकदार है।
- फस्ख: 'फस्ख' शब्द का अर्थ अमान्यकरण या निराकरण है। इसलिये, यह पत्नी के आवेदन पर शादी को अमान्य करने की मुस्लिम काज़ी की शक्ति को संदर्भित करता है या यदि पति और पत्नी दोनों इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वे पति और पत्नी के रूप में नहीं रह सकते हैं, तो वे मामले को काज़ी के पास ले जा सकते हैं।
- इसे 'न्यायिक डिग्री द्वारा शादी अनुबंध के विघटन या विखंडन' के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 के पारित होने से पहले, ऐसा कोई कानून नहीं था जिसके तहत एक मुस्लिम महिला अपने विवाह के विघटन के लिये आधार रख सके।
न्यायिक तलाक (मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939):
- इस अधिनियम को मुस्लिम पत्नी की वैवाहिक राहत के संबंध में एक मील का पत्थर माना जा सकता है। पत्नी को तलाक का अधिकार, जिसे न्यायालय ने इस्लामी कानून की गलत व्याख्या और गलत धारणा के कारण अस्वीकार कर दिया था, इस अधिनियम के तहत उसे बहाल कर दिया गया।
- यह अधिनियम सभी मुसलमानों पर लागू होता है, चाहे वे किसी भी विचारधारा से संबंधित हों।
- अधिनियम, 1939 की धारा 2, नौ आधार प्रदान करती है जिसके तहत एक मुस्लिम पत्नी अपने विवाह के विघटन के लिये डिक्री प्राप्त कर सकती है। वे आधार हैं:
- पति की अनुपस्थिति:
- यदि चार वर्ष की अवधि तक पति का पता नहीं चलता है, तो मुस्लिम विधि के तहत विवाहित महिला अपनी शादी के विघटन की डिक्री प्राप्त करने की हकदार होगी।
- भरण-पोषण में विफलता:
- यदि पति ने दो वर्ष की अवधि के लिये उसके भरण-पोषण की उपेक्षा की है या असफल रहा है, तो एक विवाहित मुस्लिम महिला तलाक के लिये डिक्री प्राप्त कर सकती है।
- पति को कारावास:
- यदि पति को सात वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिये कारावास की सज़ा सुनाई गई है, तो पत्नी अपनी शादी के विघटन के लिये न्यायालय की डिक्री की हकदार है, लेकिन जब तक कि सज़ा सुनिश्चित न हो जाए, इस आधार पर कोई भी डिक्री पारित नहीं की जा सकती है।
- वैवाहिक कर्त्तव्यों को पूरा करने में विफलता:
- यदि पति बिना किसी उचित कारण के तीन वर्ष की अवधि तक अपने वैवाहिक कर्त्तव्यों को पूरा करने में विफल रहता है, तो पत्नी डिक्री के माध्यम से अपना विवाह विघंडित करा सकती है।
- पति की नपुंसकता:
- यदि विवाह के समय पति नपुंसक था और अब भी नपुंसक है, तो पत्नी अपने विवाह के विघटन के लिये न्यायिक तलाक की हकदार है।
- पागलपन, कुष्ठ रोग और रजित रोग:
- यदि पति दो वर्ष से पागल है या कुष्ठ रोग या विषैले रजित रोग से पीड़ित है तो पत्नी न्यायिक तलाक का दावा कर सकती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि कुष्ठ और विषाणु रोग का दो वर्ष पुराना होना आवश्यक नहीं है। यह हाल का भी हो सकता है।
- पत्नी द्वारा विवाह का खंडन:
- यदि कोई पत्नी, जिसका विवाह उसके पिता या अन्य अभिभावक द्वारा 15 वर्ष की आयु से पहले कर दिया गया था, 18 वर्ष की आयु से पहले विवाह से इनकार कर देती है और विवाह संपन्न नहीं होता है, तो वह तलाक की डिक्री की हकदार है।
- पति की क्रूरता:
- न्यायिक तलाक का दावा मुस्लिम पत्नी द्वारा भी किया जा सकता है, यदि पति उसके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करता है, अर्थात्:
- उस पर आदतन हमला करने से क्रूरता या बुरे आचरण से उसका जीवन दयनीय हो जाता है, भले ही ऐसा आचरण शारीरिक दुर्व्यवहार की श्रेणी में न आता हो।
- खराब प्रतिष्ठा वाली महिलाओं के साथ संबंध रखता है या बदनाम जीवन जीता है, या
- उसे अनैतिक जीवन जीने के लिये मजबूर करने का प्रयास किया जाता है।
- उसकी संपत्ति का निपटान करता है या उसे उस पर उसके कानूनी अधिकारों का प्रयोग करने से रोकता है, या
- उसे उसके धार्मिक पेशे या अभ्यास के पालन से विचलित करता है, या
- यदि उसकी एक से अधिक पत्नियाँ हैं, वह कुरान के आदेश के अनुसार उसके साथ समान व्यवहार नहीं करता है।
- न्यायिक तलाक का दावा मुस्लिम पत्नी द्वारा भी किया जा सकता है, यदि पति उसके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करता है, अर्थात्:
- पति की अनुपस्थिति:
विघटन का प्रभाव:
- वैवाहिक संभोग:
- विघटन प्रभावी होने के बाद, पक्षों के बीच वैवाहिक संभोग गैरकानूनी हो जाता है।
- पुनर्विवाह सुलह:
- एक तलाकशुदा जोड़ा पुनर्विवाह नहीं कर सकता।
- नई शादी:
- जहाँ विवाह संपन्न नहीं हुआ है, वहाँ पक्ष तुरंत विवाह कर सकते हैं।
- जब विवाह संपन्न हो जाता है, तो पत्नी को पुनर्विवाह करने में सक्षम होने के लिये अपनी 'इद्दत' की समाप्ति तक इंतज़ार करना पड़ता है।
- डावर(मेहर):
- यदि विवाह संपन्न हो गया, तो पूरा डावर तुरंत देय होगा; यदि नहीं तो डावर की आधी राशि देय होगी।
- भरण-पोषण:
- इद्दत के दौरान पति को पत्नी को भरण-पोषण देना होता है।
- विरासत:
- जब तक तलाक प्रतिसंहरणीय है, पति-पत्नी दूसरे से विरासत प्राप्त कर सकते हैं; लेकिन जब तलाक अप्रतिसंहरणीय हो जाता है, तो विरासत के अधिकार परस्पर समाप्त हो जाते हैं।