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सिविल कानून

भागिक पालन का सिद्धांत

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 01-Mar-2024

परिचय:

भागिक पालन का सिद्धांत संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) के तहत संपत्ति कानून का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है जो आंशिक रूप से निष्पादित समझौतों को मान्यता देने की अनुमति देता है, भले ही वे अधिनियम द्वारा निर्धारित औपचारिक आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं करते हों।

भागिक पालन के सिद्धांत की अवधारणा क्या है?

  • भागिक पालन का सिद्धांत TPA की धारा 53A में सन्निहित है।
  • यह धारा उन अंतरितियों की रक्षा करती है जिन्होंने संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया है या मौखिक समझौते या कानून के अनुसार पंजीकृत नहीं किये गए समझौते के आधार पर सुधार किया है।

भागिक पालन के सिद्धांत के तत्त्व क्या हैं?

  • एक समझौते का अस्तित्व:
    • संपत्ति के अंतरण के लिये पक्षों के बीच एक वैध समझौता होना चाहिये, भले ही यह लिखित या पंजीकृत न हो।
  • प्रतिफल का भुगतान:
    • समझौते की शर्तों के अनुसार, अंतरिती को या तो पूरी तरह से या आंशिक रूप से प्रतिफल का भुगतान करना होगा या भुगतान करने के लिये सहमत होना होगा।
  • कब्ज़ा या सुधार करना:
    • अंतरक ने समझौते के आधार पर संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया हो या उसमें सुधार के पर्याप्त कार्य किये हों।

भागिक पालन के सिद्धांत पर ऐतिहासिक मामला क्या है?

  • सारदामणि कंदप्पन बनाम एस. राजलक्ष्मी (2011) मामला:
    • ऐतिहासिक मामले में, उच्चतम न्यायालय ने TPA, 1882 की धारा 53A में निहित भागिक पालन के सिद्धांत के नियमों की पुनः पुष्टि की।
    • इस मामले में पक्षों के बीच स्थावर संपत्ति की बिक्री के लिये एक मौखिक करार शामिल था।
    • उच्चतम न्यायालय ने माना कि समझौते की अनौपचारिकता और इसके गैर-पंजीकरण के बावजूद अंतरित व्यक्ति TPA, 1882 की धारा 53A द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा का हकदार था।
    • न्यायालय ने संपत्ति लेनदेन में समानता एवं निष्पक्षता के महत्त्व पर ज़ोर दिया और भागिक पालन के सिद्धांतों के आधार पर अंतरिती के अधिकारों को बरकरार रखा।

भागिक पालन के सिद्धांत के अनुप्रयोग और निहितार्थ क्या हैं?

  • भागिक पालन के सिद्धांत का भारत में संपत्ति लेनदेन पर काफी प्रभाव है।
  • यह उन अंतरित लोगों को सुरक्षा प्रदान करता है जिन्होंने सत्यनिष्ठा से कार्य किया है और करारों पर विश्वास किया है, भले ही वे विधि की औपचारिक आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं करते हों।
  • यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि समझौतों में प्राविधिकताओं या औपचारिकताओं के कारण पक्षों को उनके अधिकारों से अनुचित रूप से वंचित नहीं किया जाता है।
  • इसके अलावा, भागिक पालन का सिद्धांत ऐसे लेनदेन की व्यावहारिक वास्तविकताओं को पहचानकर संपत्ति लेनदेन में निश्चितता और स्थिरता को बढ़ावा देता है जहाँ पक्षों ने पहले ही अपने समझौतों का पालन किया है।

निष्कर्ष:

  • TPA की धारा, 53A में निहित भागिक पालन का सिद्धांत भारत में संपत्ति कानून में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह उन अंतरितियों को सुरक्षा प्रदान करता है जिन्होंने संपत्ति के अंतरण के लिये आंशिक रूप से समझौतों का पालन किया है, भले ही समझौते औपचारिक विधिक आवश्यकताओं का अननुपालन करते हों।