होम / हिंदू विधि
पारिवारिक कानून
आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद
« »01-Aug-2024
परिचय:
हिंदू विधि के अंतर्गत विवाह एक संस्कार एवं शाश्वत मिलन है।
- हालाँकि, विवाह-विच्छेद के आधार हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) द्वारा प्रस्तुत किये गए थे।
- आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद इसके आधारों में से एक है जिसे बाद में HMA में संशोधन के द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद:
- आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद बिना किसी दोष के सिद्धांत के अंतर्गत आता है, जहाँ पक्षों को दूसरे व्यक्ति की ओर से दोष सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है।
- हिंदू विधि के अंतर्गत आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद को धारा 13 B द्वारा जोड़ा गया था जिसे हिंदू विवाह (संशोधन) अधिनियम, 1976 द्वारा शामिल किया गया था तथा यह 25 मई 1976 से लागू हुआ।
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 B
- आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद के लिये दोनों पक्षों द्वारा संयुक्त रूप से दो याचिकाएँ दायर की जानी चाहिये।
- धारा 13B (1) के अनुसार:
- विवाह विच्छेद के लिये संयुक्त याचिका जिला न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।
- विवाह चाहे हिंदू विवाह (संशोधन) अधिनियम, 1976 के लागू होने से पहले या बाद में संपन्न हुआ हो।
- पक्षकार एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हों।
- याचिका में यह प्रावधान होना चाहिये कि वे एक साथ नहीं रह पाए हैं तथा वे आपसी सहमति से इस बात पर सहमत हैं कि विवाह विच्छेद कर दिया जाना चाहिये।
- धारा 13 B (2) दूसरे प्रस्ताव का प्रावधान करती है:
- वाद कब संस्थित किया जाना चाहिये?
- प्रथम प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने के छह माह से पहले नहीं तथा उक्त के अठारह माह के बाद नहीं।
- यदि इस बीच याचिका वापस नहीं ली जाती है।
- विवाह-विच्छेद का आदेश कैसे पारित किया जाता है?
- पक्षों की सुनवाई करने तथा ऐसी जाँच करने के पश्चात जैसा वह उचित समझें।
- कि विवाह संपन्न हो चुका है तथा याचिका में दिये गए कथन सत्य हैं।
- विवाह को डिक्री की तिथि से विघटित करने की डिक्री पारित करें।
- उपरोक्त प्रक्रिया निर्धारित करने का उद्देश्य पक्षों को अलग होने से पहले साथ रहने की कुछ अवधि देना है।
- विवाह किसी भी व्यक्ति के जीवन का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण भाग है तथा इसलिये आपसी सहमति से विवाह को भंग करने से पहले पक्षों को विवाह को भंग करने के अपने निर्णय पर विचार करने के लिये कुछ उचित समय दिया जाना चाहिये।
धारा 13 B के अंतर्गत सहमति की वापसी:
हितेश भटनागर बनाम दीपा भटनागर (2011):
- यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हैं तो न्यायालय पक्षकारों के विवाह को विघटित घोषित करते हुए विवाह-विच्छेद का आदेश पारित करने के लिये बाध्य है:
- दोनों पक्षों की ओर से दूसरा आवेदन उपधारा (1) के अंतर्गत अपेक्षित याचिका दाखिल करने की तिथि से 6 महीने से पहले एवं 18 महीने के बाद नहीं किया जाता है।
- पक्षों को सुनने और ऐसी जाँच करने के बाद, जैसा कि वह ठीक समझे, न्यायालय को यह विश्वास हो जाता है कि याचिका में दिये गए कथन सत्य हैं; तथा
- डिक्री पारित करने से पहले किसी भी समय किसी भी पक्ष द्वारा याचिका वापस नहीं ली जाती है;
स्मृति पहाड़िया बनाम संजय पहाड़िया (2009):
- धारा 13 B के अंतर्गत विवाह-विच्छेद का आदेश केवल पक्षकारों की आपसी सहमति पर ही पारित किया जा सकता है।
- न्यायालय को पक्षकारों के मध्य आपसी सहमति के अस्तित्व के विषय में कुछ ठोस सामग्रियों पर संतुष्ट होना होगा जो स्पष्ट रूप से ऐसी सहमति का प्रकटन करते हैं।
उपशमन की समयावधि:
- धारा 13 B के अंतर्गत अगर याचिका प्रस्तुत किये जाने की तिथि से 6 महीने (और 18 महीने से ज़्यादा नहीं) के बाद याचिका वापस नहीं ली जाती है तो कोर्ट विवाह-विच्छेद का आदेश दे सकता है।
- इस प्रकार, पक्षों को 6 महीने का उपशमन की समयावधि (कूलिंग ऑफ पीरियड) दिया जाता है।
प्रश्न यह उठता है कि क्या उपशमन की समयावधि अनिवार्य है या निर्देशात्मक?
- अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर (2017):
- माननीय आदर्श कुमार गोयल, न्यायमूर्ति एवं माननीय उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति की दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने माना कि यह निर्धारित करने में कि अवधि निर्देशात्मक है या अनिवार्य, केवल भाषा ही निर्णायक नहीं है। बल्कि न्यायालय को संदर्भ को ध्यान में रखना होगा।
- न्यायालय ने माना कि कूलिंग ऑफ अवधि को केवल निम्नलिखित कारकों पर विचार करने के बाद ही क्षमा किया जा सकता है:
- धारा 13B(2) में निर्दिष्ट छह महीने की सांविधिक अवधि, धारा 13B(2) के अंतर्गत पक्षों के पृथक्करण की एक वर्ष की सांविधिक अवधि के अतिरिक्त, प्रथम प्रस्ताव से पहले ही समाप्त हो चुकी है;
- मध्यस्थता/समाधान के लिये सभी प्रयास जिनमें आदेश XXXIIA नियम 3 CPC/अधिनियम की धारा 23(2)/परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 9 के अनुसार पक्षकारों को फिर से एकजुट करने के प्रयास शामिल हैं, विफल हो गए हैं तथा आगे किसी भी प्रयास से उस दिशा में सफलता की कोई संभावना नहीं है;
- पक्षों ने वास्तव में गुज़ारा भत्ता, बच्चे की अभिरक्षा या पक्षों के मध्य किसी भी अन्य लंबित मुद्दों सहित अपने मतभेदों को सुलझा लिया है;
- प्रतीक्षा अवधि केवल उनकी पीड़ा को बढ़ाएगी।
- शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन (2023):
- संविधान पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 142 (1) के अंतर्गत शक्ति का प्रयोग कर सकता है तथा धारा 13 B के अंतर्गत निर्धारित प्रतीक्षा अवधि को समाप्त करते हुए आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद दे सकता है।
- न्यायालय ने कहा कि उप्शामाना उपशमन की समयावधि का उद्देश्य पहले से ही विघटित विवाह को और अधिक लंबा खींचना या पक्षों की पीड़ा को बढ़ाना नहीं है।
- न्यायालय ने कहा कि मामले में ऊपर वर्णित कारकों के अतिरिक्त न्यायालय को यह भी पता लगाना चाहिये कि क्या पक्षकार अपनी इच्छा से किसी वास्तविक समझौते पर पहुँचे हैं जिसमें गुज़ारा भत्ता, भरण-पोषण और अन्य मामलों का ध्यान रखा गया है।
- इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि धारा 13B आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद का आदेश देने की न्यायालय की शक्तियों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाती है।
निष्कर्ष:
आपसी सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद एक ऐसा तरीका है जिसके द्वारा पक्षकार आपसी सहमति से विवाह को समाप्त कर सकते हैं, बिना दूसरे पक्ष की ओर से कोई दोष दिखाए। यहाँ तक कि उच्चतम न्यायालय ने भी माना है कि ऐसी विवाह को समाप्त करना बेहतर है जो केवल कल्पना में ही मौजूद हो। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 B आपसी सहमति द्वारा विवाह को समाप्त करने के लिये एक सांविधिक उपाय प्रदान करती है।