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सिविल कानून
मर्ज़-उल-मौत अंतरण उपहार के अंतर्गत
« »04-Dec-2023
परिचय:
- जानलेवा बीमारी के लिये अरबी शब्द मर्ज़-उल-मौत है।
- किसी व्यक्ति का “मर्ज़-उल-मौत” उसके व्यक्तिपरक अनुभव के बजाय उसके शारीरिक स्वास्थ्य से निर्धारित होता है।
- यह विशेष रूप से उस स्थिति को संदर्भित करता है जिसमें ठीक होने की संभावना कम होती है और व्यक्ति की मृत्यु निकट होती है।
- इसका निर्णय आमतौर पर एक चिकित्सक लेता है।
- कोई व्यक्ति अपने जीवनकाल के दौरान या अपनी मृत्यु के समय वसीयत बना सकता है।
- मर्ज़-उल-मौत अंतरण के मामले में भी यही नियम लागू होगा।
- एक वसीयतकर्त्ता अपनी मर्ज़-उल-मौत के दौरान अपनी संपत्ति के एक तिहाई से अधिक भाग का निपटान करता है।
मर्ज़-उल-मौत का इतिहास और वर्तमान प्रयोज्यता:
- मुस्लिमों को अपने निजी नागरिक कानून का पालन करने की अनुमति है क्योंकि भारत में, गोवा राज्य को छोड़कर, कोई एकीकृत नागरिक संहिता नहीं है।
- शरीयत मुस्लिम नागरिक कानून का मार्गदर्शक सिद्धांत है।
- ‘मर्ज़-उल-मौत’ से संबंधित नियम उपहार के साथ-साथ वसीयत के विचारों को भी अंतर्निविष्ट करते हैं।
- मर्ज़-उल-मौत के दौरान अंतरण के रूप में जाना जाने वाला एक प्रकार का वसीयती उत्तराधिकार हिबा (उपहार) और वसीयत दोनों की कई प्रमुख विशेषताओं को जोड़ता है।
- यदि कोई व्यक्ति गंभीर रूप से बीमार है और उसका निधन करीब है, तो उसका दान मर्ज़-उल-मौत के दौरान किया गया माना जाएगा।
- एक उपहार जो उस समय दिया जाता है जब अंतरक को यथोचित रूप से मरने की आशंका होती है, तो उसे शरिया कानून के सामान्य सिद्धांतों के अनुसार वितरित किया जाता है।
- ऐसे उपहार केवल तभी मान्य होते हैं जब वसीयतकर्त्ता की वसीयत निष्पादित करने के बाद मृत्यु हो जाती है।
उपहार के तहत मर्ज़-उल-मौत अंतरण की अनिवार्यताएँ:
- दाता द्वारा उपहार की घोषणा।
- अदाता द्वारा या उसकी ओर से उपहार (व्यक्त या निहित) की स्वीकृति।
- दाता द्वारा उपहार की विषय-वस्तु का आधिपत्य अदाता को सौंपना।
- मर्ज़-उल-मौत उपहार दाता की मृत्यु के बाद भी प्रभावी रहता है।
शिया और सुन्नी कानून में मर्ज़-उल-मौत की प्रयोज्यता:
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आधार |
सुन्नी कानून |
शिया कानून |
किसी उत्तराधिकारी को वसीयत करना |
सभी उत्तराधिकारियों की सहमति आवश्यक होती है। |
संपत्ति का 1/3 भाग तक वसीयत सहमति के बिना भी वैध है। |
एक अजात बच्चे को वसीयत |
अजात बच्चे के लिये वसीयत तभी वैध है, जब बच्चा वसीयत (मर्ज़-उल-मौत) करने के 6 महीने के भीतर पैदा हुआ हो। |
यदि बच्चा वसीयत (मर्ज़-उल-मौत) बनाने के 10 महीने के भीतर पैदा हुआ है तो मान्य है। |
बच्चे को जन्म देना |
इस कानून में मर्ज़-उल-मौत के अंतर्गत माना जाता है। |
इस कानून में मर्ज़-उल-मौत के अधीन नहीं माना जाता है। |
ऋण की स्वीकृति |
किसी उत्तराधिकारी के पक्ष में ऋण की मर्ज़-उल-मौत स्वीकृति पूरी तरह से अप्रभावी है। |
ऐसी स्वीकृति संपत्ति के 1/3 भाग तक के लिये मान्यता प्राप्त और बाध्यकारी है। |
मर्ज़-उल-मौत के कानूनी प्रभाव:
- मर्ज़-उल-मौत के दौरान किया गया विवाह:
- मर्ज़-उल-मौत के दौरान किया गया विवाह अमान्य है। लेकिन इसे वैध बनाने का एक तरीका है– यदि व्यक्ति बीमारी से बच जाता है और जीवित है, तो बीमारी का समापन विवाह को वैध बना देगा।
- मृत्यु शय्या वक्फ:
- वक्फ इस्लाम में एक अवधारणा है और वक्फ अधिनियम, 1995 द्वारा शासित है। इसका अर्थ मूल रूप से एक मुस्लिम द्वारा धार्मिक, शैक्षिक या धर्मार्थ कारण के लिये किया गया दान है।
- एक मृत्यु शय्या वक्फ उन्हीं नियमों के अधीन है जो अन्य मृत्यु शय्या व्यवस्थाओं को नियंत्रित करते हैं अर्थात यह केवल संपत्ति के 1/3 के भाग तक प्रभावी होगा जब तक कि उत्तराधिकारी इसके लिये सहमत न हों।
निर्णयज विधि:
- खुर्शीद बनाम फैयाज़ (1914):
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि एक शिया मुस्लिम द्वारा अपने उत्तराधिकारी को मर्ज़-उल-मौत के तहत दिया गया उपहार अन्य उत्तराधिकारियों की सहमति के बिना 1/3 के भाग तक वैध था।
- शरीफ अली बनाम अब्दुल अली सफियाबू (1935):
- मद्रास उच्च न्यायालय ने माना कि खुर्शीद मामले में निर्धारित नियम केवल तभी मान्य था जब दाता इथना-अशरी शिया था, किंतु इस्माइलिया शिया द्वारा किसी उत्तराधिकारी को अन्य उत्तराधिकारियों की सहमति के बिना मर्ज़-उल-मौत उपहार पूरी तरह से शून्य था।
- फातिमा बीबी बनाम अहमद बख्श, (1904):
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस मामले में माना कि मर्ज़-उल-मौत, मृत्यु की बीमारी है या इसमें रोगी ऐसी बीमारी से पीड़ित है जो पीड़ित व्यक्ति में यह विश्वास उत्पन्न करती है कि इससे मृत्यु हो जाएगी।