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सिविल कानून

अनुप्रमाणन

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 01-Feb-2024

परिचय:

कानून की प्रत्येक प्रणाली के तहत अनुप्रमाणन दस्तावेज़ की सत्यता का प्रमाण है और वह दस्तावेज़ किसी व्यक्ति की स्वतंत्र इच्छा से निष्पादित किया गया है। अनुप्रमाणन को संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) की धारा 3 के तहत परिभाषित किया गया है।

अनुप्रमाणन:

  • इसका अर्थ किसी भी तथ्य पर हस्ताक्षर करना और उसकी गवाही देना है।
  • इसमें एक व्यक्ति इस तथ्य के परिसाक्ष्य के तौर पर दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करता है कि उसने कार्य निष्पादित होते देखा है
  • TPA को अनुप्रमाणन की आवश्यकता होती है लेकिन सभी दस्तावेज़ों के संबंध में नहीं।
  • उदाहरण के लिये, बंधक एवं दान को अनुप्रमाणित किया जाना चाहिये जबकि विक्रय, विनिमय और पट्टे को प्रभावित करने वाले दस्तावेज़ों को अनुप्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं होती है।

TPA की धारा 3:

  • TPA की धारा 3 एक लिखत के संबंध में अनुप्रमाणित को परिभाषित करती है, इसका अर्थ हमेशा दो या दो से अधिक गवाहों द्वारा अनुप्रमाणित माना जाएगा, जिनमें से प्रत्येक ने निष्पादक को हस्ताक्षर करते देखा है या लिखत पर अपने हस्ताक्षर किये हैं, या निष्पादक की उपस्थिति में उसके निर्देश से किसी अन्य व्यक्ति को लिखत पर हस्ताक्षर करते देखा है
  • या निष्पादक से उसके हस्ताक्षर या चिह्न, या ऐसे अन्य व्यक्ति के हस्ताक्षर की व्यक्तिगत पावती प्राप्त की है, जिनमें से प्रत्येक ने निष्पादक की उपस्थिति में दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • यह आवश्यक नहीं होगा कि ऐसे एक से अधिक गवाह एक ही समय में उपस्थित हों, तथा अनुप्रमाणन का कोई विशेष रूप भी आवश्यक नहीं होगा।

मान्य अनुप्रमाणन की अपेक्षित वस्तुएँ:  

  • हमेशा दो या दो से अधिक अनुप्रमाणित साक्षी होने चाहिये।
  • यह सामान्यतः आवश्यक है कि प्रत्येक साक्षी को यह अवश्य देखना चाहिये-
    • निष्पादक लिखत पर अपना हस्ताक्षर करता है/चिन्ह लगाता है, या
    • कोई अन्य व्यक्ति निष्पादक की उपस्थिति में और उसके निर्देशानुसार लिखत पर हस्ताक्षर करता है।
    • साक्षी को निष्पादक से निष्पादक के हस्ताक्षर/चिह्न या निष्पादक की ओर से हस्ताक्षर करने वाले किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत पावती प्राप्त होनी चाहिये।
  • एक अनुप्रमाणित साक्षी को विलेख के वास्तविक निष्पादन को देखने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह स्वयं निष्पादक द्वारा निष्पादन की पावती को अनुप्रमाणित कर सकता है।
  • प्रत्येक साक्षी को निष्पादक की उपस्थिति में लिखत पर हस्ताक्षर करना चाहिये।
  • निष्पादन पूर्ण होने के बाद ही प्रत्येक साक्षी को हस्ताक्षर करना चाहिये अन्यथा यह निष्पादन मान्य नहीं होगा।
  • सभी अनुप्रमाणित साक्षियों को एक ही समय में अनुप्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है।
  • अनुप्रमाणन का कोई विशेष फॉर्म आवश्यक नहीं है।
  • पावती परोक्ष रूप से या एजेंटों के माध्यम से नहीं बल्कि, निष्पादक द्वारा स्वयं होनी चाहिये।
  • केवल हस्ताक्षर की उपस्थिति ही अनुप्रमाणन के लिये अपर्याप्त है। आगे यह भी दिखाया जाना चाहिये कि साक्षी ने यह अनुप्रमाणित करने के उद्देश्य से हस्ताक्षर किये हैं कि उसने निष्पादक को दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करते देखा है।
  • एक व्यक्ति जो अंतरण करने वाला पक्षकार है, वह अनुप्रमाणित साक्षी नहीं हो सकता है, लेकिन लेनदेन में रुचि रखने वाला पक्षकार एक सक्षम साक्षी हो सकती है।
  • यह आवश्यक नहीं है कि अनुप्रमाणित करने वाले साक्षी एक-दूसरे के हस्ताक्षर पहचानने में सक्षम हो।
  • अमान्य अनुप्रमाणन के मामले में दस्तावेज़ को न्यायालय में लागू नहीं किया जा सकता है।

निर्णयज विधि:

  • कुंडल लाल बनाम रोफी बेगम (1939) मामले में, प्रिवी काउंसिल ने माना कि अनुप्रमाणन तब मान्य होगा जब पर्दे के पीछे की महिला चाहे तो अनुप्रमाणित साक्षी को देख सकती है।
  • अब्दुल जब्बार बनाम वेंकट शास्त्री (1966) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति किसी दस्तावेज़ पर किसी अन्य उद्देश्य के लिये अपना हस्ताक्षर करता है, तो वह अनुप्रमाणित साक्षी नहीं है।