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जंगम या स्थावर संपत्ति का उपहार

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 24-Jun-2024

कक्कोत राधा एवं अन्य बनाम बातक्कतलक्कल बटलाक मुस्तफा एवं अन्य

“संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के अंतर्गत स्वीकृति सिद्ध करने के लिये आवश्यक कोई विशेष प्रावधान निर्धारित नहीं किया गया है।”

न्यायमूर्ति के. बाबू

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने कक्कोत राधा एवं अन्य बनाम बातक्कतलक्कल बटलक मुस्तफा एवं अन्य के मामले में कहा है कि संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) के अंतर्गत स्वीकृति सिद्ध करने के लिये आवश्यक कोई विशेष प्रावधान निर्धारित नहीं किया गया है। उपहार की स्वीकृति सिद्ध करने के कई तरीके हो सकते हैं।

ककोत राधा एवं अन्य बनाम बातक्कतलक्कल बटलाक मुस्तफा एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • मूल मामला यह था कि वादी संख्या 2 एवं प्रतिवादी संख्या 1 क्रमशः दिवंगत कुन्हिमाथा के पोते एवं पुत्री हैं।
  • उनके पास वाद अनुसूची संपत्ति थी जो 21.25 सेंट भूमि एवं उसमें एक भवन था। कुन्हिमाथा ने आवासीय घर एवं 17 सेंट भूमि अपनी बेटी राधा, प्रतिवादी संख्या 1 को उपहार में दी थी।
  • राधा ने उपहार स्वीकार करने का संकेत देते हुए उस पर कोई कार्यवाही नहीं की। कुन्हिमाथा ने राधा के पक्ष में किये गए उपहार को रद्द कर दिया तथा बाद में पूरी संपत्ति वादी संख्या 2 को सौंप दी।
  • वादी संख्या 2 ने इसके बाद वादी संख्या 1 को, जो एक अजनबी है, वादी संपत्ति सौंप दी।
  • कुन्हिमाता की पुत्री ने संपत्ति पर स्वामित्व के अधिकार का दावा किया। उसने तर्क दिया कि उसने उपहार स्वीकार कर लिया है।
  • ट्रायल कोर्ट ने नोट किया कि, उपहार विलेख एवं उन्मुक्ति विलेख (रिलीज़ डीड) में जहाँ कुन्हिमाता ने अपनी पुत्री को संपत्ति पर अपना पूरा अधिकार जारी किया, यह उल्लेख किया गया था कि संपत्ति का कब्ज़ा उपहार आदाता को दिया जाता है। यह उपहार की स्वीकृति को स्थापित करने के लिये पर्याप्त है।
  • प्रथम अपीलीय न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित डिक्री एवं निर्णय को पलट दिया।
  • इसके बाद, केरल उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की गई।
  • उच्च न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायमूर्ति के. बाबू ने कहा कि स्वीकृति सिद्ध करने के लिये विधि के अंतर्गत कोई विशेष प्रावधान निर्धारित नहीं है। उपहार की स्वीकृति सिद्ध करने के कई तरीके हो सकते हैं।
  • न्यायालय ने कहा कि चूँकि पहला उपहार वैध है, इसलिये उपहार को बाद में एकतरफा रद्द करना, भले ही कोई हो, कोई विधिक वैधता नहीं रखता।

उपहार से संबंधित प्रासंगिक विधिक प्रावधान क्या हैं?

परिचय:

  • TPA का अध्याय VII उपहार से संबंधित है।
  • TPA की धारा 122 में उपहार को परिभाषित किया गया है, जो इस प्रकार है:
  • उपहार एक व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा से और बिना किसी प्रतिफल के, जिसे दानकर्त्ता कहा जाता है, दूसरे व्यक्ति को, जिसे आदाता कहा जाता है, तथा दानकर्त्ता  द्वारा या उसकी ओर से स्वीकार किया गया कुछ मौजूदा चल या अचल संपत्ति का अंतरण  है।
  • स्वीकृति कब की जानी चाहिये- ऐसी स्वीकृति दानकर्त्ता के जीवनकाल के दौरान और जब वह अभी भी देने में सक्षम हो, तब की जानी चाहिये। यदि स्वीकृति से पहले दानकर्त्ता की मृत्यु हो जाती है, तो उपहार अमान्य हो जाता है।

उपहार के आवश्यक तत्त्व:

  • उपहार के आवश्यक तत्त्व हैं:
    • विचार का अभाव
    • दानकर्त्ता
    • अदाता
    • विषय वस्तु
    • अंतरण
    • स्वीकृति

उपहार की स्वीकार्यता:

  • अशोकन बनाम लक्ष्मीकुट्टी एवं अन्य (2007) मामले में उच्चतम न्यायालय ने उपहार स्वीकार करने के सिद्धांत निर्धारित किये हैं:
    • उपहारों में किसी भी प्रकार के प्रतिफल या क्षतिपूर्ति का भुगतान शामिल नहीं होता है।
    • TPA स्वीकृति का कोई विशेष प्रावधान निर्धारित नहीं करता है।
    • प्रश्न का निर्धारण करने के लिये लेन-देन से संबंधित परिस्थितियाँ ही प्रासंगिक हो सकती हैं।
    • उपहार की स्वीकृति को सिद्ध करने के लिये कई तरीके हो सकते हैं।
    • दस्तावेज़ को दानकर्त्ता को सौंपा जा सकता है, जो किसी विशेष परिस्थिति में वैध स्वीकृति भी हो सकती है।
    • यह तथ्य कि आदाता को कब्ज़ा दिया गया था, स्वीकृति की धारणा भी उत्पन्न करता है।

स्थानांतरण का तरीका:

  • TPA की धारा 123 संपत्ति की प्रकृति के आधार पर उपहार देने के दो तरीके निर्धारित करती है।
  • इस धारा में कहा गया है कि अचल संपत्ति का उपहार देने के उद्देश्य से, दानकर्त्ता द्वारा या उसकी ओर से हस्ताक्षरित एवं कम-से-कम दो साक्षियों द्वारा सत्यापित पंजीकृत दस्तावेज़ द्वारा किया जाना चाहिये। चल संपत्ति का उपहार देने के उद्देश्य से, अंतरण या तो पूर्वोक्त रूप से हस्ताक्षरित पंजीकृत दस्तावेज़ या परिदान द्वारा किया जा सकता है। ऐसा परिदान उसी तरह किया जा सकता है जैसे विक्रय की गई वस्तुओं का परिदान किया जा सकता है।
  • अचल संपत्ति का अंतरण दानकर्त्ता द्वारा या उसकी ओर से हस्ताक्षरित पंजीकृत दस्तावेज़ द्वारा किया जाना चाहिये तथा कम-से-कम दो साक्षियों द्वारा सत्यापित होना चाहिये।

  • अधिनियम की धारा 123 हिंदू विधि के उस प्रावधान को हटा देती है, जिसमें वैध उपहार के अंतरण के पूरा होने के लिये कब्ज़े के परिदान को अनिवार्य शर्त बनाने का कोई प्रावधान था।
  • धारा 123 का उपहार से संबंधित हिंदू विधि के नियमों पर एक अधिभावी प्रभाव है, जिसमें वह नियम भी शामिल है, जिसके अनुसार उपहार में दी गई संपत्ति का कब्ज़ा आदाता को दिया जाना चाहिये।
  • विधिक प्रतिनिधि के मध्यम से दौलत सिंह (मृत) बनाम राजस्थान राज्य (2021) के मामले में, यह माना गया कि अधिनियम की धारा 123 के अनुसार विधिवत पंजीकृत एवं सत्यापित उपहार विलेख का निष्पादन और इस तरह के उपहार को स्वीकार करने से अचल संपत्ति का परिदान पूरा हो जाता है तथा इस तरह आदाता को उपहार में दी जा रही संपत्ति के शीर्षक या हित से वंचित कर दिया जाता है एवं दानकर्त्ता उसी का स्वामी बन जाता है।