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आपराधिक कानून

रंजीत डी. उडेशी बनाम महाराष्ट्र राज्य 1965 AIR 881

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 12-Aug-2024

परिचय:

इस मामले में सामग्री में अश्लीलता की जाँच के लिये “हिकलिन परीक्षण” के स्थान पर “सामुदायिक मानक परीक्षण” किया जाता है।

तथ्य:

  • इस मामले में, अपीलकर्त्ता पर बॉम्बे में DH लॉरेंस एवं उसके तीन अन्य सहयोगियों द्वारा लिखित पुस्तक ‘लेडी चैटरलीज लवर्स’ के नाम से अपनी पुस्तकों की दुकान में अश्लील सामग्री विक्रय करने का आरोप लगाया गया था।
  • अपीलकर्त्ता ने तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता 1860 (IPC) की धारा 292, भारत के संविधान (COI) के अनुच्छेद 19(1)(a) अर्थात् भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है।
  • अपीलकर्त्ता ने यह भी तर्क दिया कि उसे पुस्तक में अश्लील सामग्री की उपस्थिति का ज्ञान नहीं था।
  • यह भी तर्क दिया गया कि संपूर्ण पुस्तक एवं पुस्तक के संदर्भ को पढ़ने से इसे अश्लील नहीं माना जा सकता।
  • अपीलकर्त्ता को ट्रायल कोर्ट एवं उच्च न्यायालय ने IPC की धारा 292 के अधीन दोषी ठहराया था।
  • अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय से असंतुष्ट होकर अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील की।

शामिल मुद्दे:

  • क्या भारतीय दण्ड संहिता की धारा 292 संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) का उल्लंघन करती है एवं अवैध है?
  • क्या अश्लील सामग्री बेचने वाले को अपराध हेतु दोषी ठहराने के लिये उसके ज्ञान की आवश्यकता है?
  • क्या इस पुस्तक की विषय-वस्तु पाठकों के मन को भ्रष्ट करने वाली है?

टिप्पणी:

  • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 292, भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर एक उचित प्रतिबंध है, क्योंकि यह शालीनता तथा नैतिकता को बनाए रखना सुनिश्चित करती है।
  • उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि ‘अश्लीलता’ शब्द को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 292 के अधीन परिभाषित नहीं किया गया है, उच्चतम न्यायालय को यह अंतर स्थापित करना था कि क्या यह अश्लील है तथा क्या यह कलात्मक है।
    • न्यायालय ने सामुदायिक मानक परीक्षण लागू किया, जिसमें अश्लील मामले का मूल्यांकन औसत व्यक्ति के मानक के आधार पर किया जाता है, न कि उसके संदर्भ को अलग से देखते हुए, हिक्लिन परीक्षण में तीन संशोधन किये गए:
      • कला एवं साहित्य में सेक्स व नग्नता अकेले अश्लीलता का साक्ष्य नहीं हो सकते।
      • अश्लील एवं गैर-अश्लील दोनों पक्षों को ध्यान में रखते हुए कार्य का मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
      • लोक हित के लिये प्रकाशन अश्लीलता के आरोप के विरुद्ध बचाव हो सकता है।
  • उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि ज्ञान को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 292 का अभिन्न अंग बनाने वाला विधान संसद बनाती है, न कि न्यायालय।

निष्कर्ष:

  • उच्चतम न्यायालय ने माना कि विवादित पुस्तक अश्लील है तथा पुस्तक विक्रेताओं को प्रावधानों के अंतर्गत उत्तरदायी ठहराया।

नोट:

  • IPC की धारा 292 अब निम्नलिखित परिवर्तनों के साथ भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 294 के अंतर्गत आ गई है:
    • अर्थदण्ड दो हज़ार से बढ़ाकर पाँच हज़ार रुपए तथा पुनः दोषी पाए जाने पर पाँच हज़ार से बढ़ाकर दस हज़ार रुपए किया गया है।
    • “इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में किसी भी सामग्री का प्रदर्शन'' वाक्यांश जोड़ा गया है।
    • 'किसी भी तरीके से'' वाक्यांश भी जोड़ा गया है।

[मूल निर्णय]