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आपराधिक कानून
मामलों का अंतरण
« »20-Feb-2024
परिचय:
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के तहत मामलों का अंतरण एक आपराधिक मामले या अपील को एक ही अधिकार क्षेत्र के भीतर या एक अलग अधिकार क्षेत्र में एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में ले जाने को संदर्भित करता है।
- CrPC के अध्याय XXXI में निहित धारा 406 से 412 मामलों के अंतरण से संबंधित है।
CrPC की धारा 406:
- यह धारा मामलों और अपीलों को अंतरित करने की उच्चतम न्यायालय की शक्ति से संबंधित है।
- यदि उच्चतम न्यायालय न्याय के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये ऐसा करना समीचीन समझता है, तो वह निर्देश दे सकता है कि किसी विशेष मामले या अपील को अंतरित कर दिया जाए:
- एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय तक।
- एक उच्च न्यायालय के अधीनस्थ आपराधिक न्यायालय से लेकर समान या प्रवर अधिकार क्षेत्र वाले आपराधिक न्यायालय तक, जो दूसरे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ है।
- उच्चतम न्यायालय केवल निम्नलिखित के आवेदन पर कार्य कर सकता है:
- भारत के महान्यायवादी या;
- हितबद्ध पक्षकार
- शिकायतकर्त्ता
- लोक अभियोजक
- अभियुक्त
- प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराने वाला व्यक्ति।
- ऐसा प्रत्येक आवेदन हलफनामे या प्रतिज्ञान द्वारा समर्थित प्रस्ताव के रूप में किया जाएगा, सिवाय इसके कि जब आवेदन निम्न द्वारा किया गया हो:
- भारत के महान्यायवादी या;
- राज्य के महाधिवक्ता।
- जहाँ इस धारा द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने के लिये कोई आवेदन खारिज़ कर दिया जाता है वहाँ, यदि उच्चतम न्यायालय की यह राय है कि आवेदन तुच्छ या तंग करने वाला था तो वह आवेदक को आदेश दे सकता है कि वह एक हज़ार रुपए से अनधिक इतनी राशि, जितनी वह न्यायालय उस मामले की परिस्थितियों में समुचित समझे, प्रतिकर के तौर पर उस व्यक्ति को दे जिसने आवेदन का विरोध किया था।
CrPC की धारा 407:
- यह धारा मामलों और अपीलों को अंतरित करने की उच्च न्यायालय की शक्ति से संबंधित है।
- यदि निम्नलिखित में से एक या अधिक स्थितियाँ स्पष्ट हैं, तो उच्च न्यायालय अपनी पहल पर, अर्थात् स्वतः संज्ञान से, या हितबद्ध पक्षकार के आवेदन पर, या अवर न्यायालय की रिपोर्ट पर कार्य कर सकता है:
- निष्पक्ष जाँच या सुनवाई नहीं हो सकती।
- किसी असाधारणतः कठिन विधि प्रश्न के उठने की संभाव्यता है।
- इस धारा के अधीन आदेश इस संहिता के किसी उपबंध द्वारा अपेक्षित है, या पक्षकारों या साक्षियों के लिये साधारण सुविधाप्रद होगा, या न्याय के उद्देश्यों के लिये समीचीन है।
- यदि अंतरण के लिये आवेदन स्वीकार कर लिया जाता है, तो उच्च न्यायालय आदेश दे सकता है:
- किसी अपराध की जाँच या विचारण ऐसे किसी न्यायालय द्वारा किया जाए जो धारा 177 से 185 तक के (जिनके अंतर्गत ये दोनों धाराएँ भी हैं) अधीन तो अर्हित नहीं है किंतु ऐसे अपराध की जाँच या विचारण करने के लिये अन्यथा सक्षम है।
- कोई विशिष्ट मामला या अपील या मामलों या अपीलों का वर्ग उसके प्राधिकार के अधीनस्थ किसी दण्ड न्यायालय से ऐसे समान या वरिष्ठ अधिकारिता वाले किसी अन्य दण्ड न्यायालय को अंतरित कर दिया जाए।
- कोई विशिष्ट मामला सेशन न्यायालय को विचारणार्थ सुपुर्द कर दिया जाए।
- कोई विशिष्ट मामला या अपील स्वयं उसको अंतरित कर दी जाए, और उसका विचारण उसके समक्ष किया जाए।
- ऐसा प्रत्येक आवेदन हलफनामे या प्रतिज्ञान द्वारा समर्थित प्रस्ताव के रूप में किया जाएगा, सिवाय इसके कि जब आवेदक राज्य के महाधिवक्ता द्वारा हो।
- लोक अभियोजक कम-से-कम चौबीस घंटे पहले आवेदन की सूचना (जिस आधार पर यह बनाया गया है उसकी एक प्रति के साथ) प्राप्त करने का हकदार है।
- उच्च न्यायालय, यदि वह संतुष्ट है कि न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक है, आदेश दे सकता है कि, आवेदन के निपटान तक, अधीनस्थ न्यायालय में कार्यवाही ऐसी शर्तों पर रोक दी जाएगी, जिन्हें उच्च न्यायालय लगाना उचित समझे:
- बशर्ते कि इस तरह का स्थगन CrPC की धारा 309 के तहत अधीनस्थ न्यायालय की प्रतिप्रेषण (रिमांड) की शक्ति को प्रभावित नहीं करेगा।
- जहाँ अंतरण आवेदन खारिज़ कर दिया गया है और तुच्छ या कष्टप्रद पाया गया है, तो उच्चतम न्यायालय आवेदक को उचित मुआवज़ा देने का आदेश दे सकता है तथा मुआवज़े की राशि एक हज़ार रुपए से अधिक नहीं होगी।
- नायब सिंह बनाम हरियाणा राज्य, (1996) मामले में, अभियुक्त को नोटिस दिये बिना या उसे विरोध करने का अवसर दिये बिना एक सत्र न्यायालय से दूसरे में मामले का अंतरण सही नहीं माना गया था।
CrPC की धारा 408:
- यह धारा मामलों और अपीलों को अंतरित करने की सत्र न्यायाधीश की शक्ति से संबंधित है।
- एक सत्र न्यायाधीश किसी विशेष मामले को अपने सत्र प्रभाग में एक आपराधिक न्यायालय से दूसरे में अंतरित करने का आदेश दे सकता है:
- अवर न्यायालय की रिपोर्ट पर, या
- किसी हितबद्ध पक्षकार के आवेदन पर, या
- स्वयं की अपनी पहल पर
- CrPC की धारा 407 की उपधारा (3) (4) (5) (6) (7) (8) और (9) के प्रावधान सत्र न्यायाधीश के समक्ष आवेदन के मामले में भी लागू होते हैं।
- किसी मामले के अंतरण के लिये तुच्छ आवेदन के मामले में, अधिकतम मुआवज़ा केवल दो सौ पचास रुपए होगा।
CrPC की धारा 409:
- यह धारा सत्र न्यायाधीश द्वारा मामलों और अपीलों को वापस लेने से संबंधित है।
- एक सत्र न्यायाधीश किसी भी मामले/अपील को वापस ले सकता है, जिसे उसने अपने अधीनस्थ किसी सहायक सत्र न्यायाधीश/मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंपा है।
- वह मामले की वास्तविक सुनवाई या अपील की सुनवाई शुरू होने से पहले किसी भी अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को सौंपे गए किसी भी मामले/अपील को वापस ले सकता है।
- वह मामले की सुनवाई या तो अपने न्यायालय में कर सकता है या सुनवाई के लिये इसे किसी अन्य न्यायालय में भेज सकता है।
- सत्र न्यायाधीश को इस धारा के तहत आदेश देने के कारणों को भी दर्ज करना आवश्यक है।
CrPC की धारा 410:
- यह धारा न्यायिक मजिस्ट्रेटों द्वारा मामलों को वापस लेने से संबंधित है।
- मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को किसी अधीनस्थ मजिस्ट्रेट को सौंपे गए किसी भी मामले को वापस लेने का अधिकार है।
- वह या तो स्वयं मुकदमा चला सकता है, या इसे मुकदमा चलाने के लिये सक्षम किसी अन्य मजिस्ट्रेट के पास भेज सकता है।
- CrPC की धारा 192(2) के तहत, कोई भी न्यायिक मजिस्ट्रेट अपने द्वारा किसी अन्य मजिस्ट्रेट को सौंपे गए किसी भी मामले को वापस ले सकता है और उसकी सुनवाई स्वयं कर सकता है।
CrPC की धारा 411:
- यह धारा कार्यकारी मजिस्ट्रेटों द्वारा मामलों को सौंपने या वापस लेने से संबंधित है।
- कोई भी ज़िला मजिस्ट्रेट या उप-विभागीय मजिस्ट्रेट-
- उसके समक्ष शुरू की गई किसी भी कार्यवाही को निपटान के लिये अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट को सौंप सकता है।
- अपने अधीनस्थ किसी भी मजिस्ट्रेट से कोई भी मामला वापस ले सकता है या किसी मामले को वापस ले सकता है जिसे उसने सौंपा है, और ऐसी कार्यवाही का निपटान स्वयं करेगा या किसी अन्य मजिस्ट्रेट को निपटान के लिये संदर्भित करेगा।
- यदि कोई मामला उप-विभागीय मजिस्ट्रेट द्वारा अंतरित किया जाता है, तो ज़िला मजिस्ट्रेट इसे किसी भी तरीके से पुनः अंतरित कर सकता है जैसा वह उचित समझता है।
- उप-विभागीय मजिस्ट्रेट न्यायालय का कोई मामला सत्र न्यायालय द्वारा अंतरित नहीं किया जा सकता है, हालाँकि यह CrPC की धारा 6 के तहत एक आपराधिक न्यायालय है।
- ऐसे मामले को इस धारा के तहत ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा अंतरित किया जा सकता है जिसके अधीन उपमंडल मजिस्ट्रेट होता है।
CrPC की धारा 412:
- यह धारा दर्ज किये जाने वाले कारणों से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि धारा 408, धारा 409, धारा 410 या धारा 411 के अधीन आदेश करने वाला सेशन न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट ऐसा आदेश करने के अपने कारणों को अभिलिखित करेगा।