होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872)
आपराधिक कानून
सि द्ध, असिद्ध एंव सिद्ध नहीं
« »26-Feb-2024
परिचय
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 3 में शब्द ‘साबित (Proved), नासाबित (Disproved) व साबित नहीं हुआ (Not Proved)’ को परिभाषित किया गया है, इन शब्दों को ‘सिद्ध’, ‘असिद्ध’ एंव ‘सिद्ध नहीं’ भी कहा जाता है। यह एक विवेकशील व्यक्ति के दृष्टिकोण से परिस्थितियों के अस्तित्व या गैर-अस्तित्व के बारे में प्रमाण के मानक निर्धारित करता है।
साबित (सिद्ध)
- परिचय:
- अधिनियम की धारा 3 के अनुसार– “कोई तथ्य साबित हुआ कहा जाता है जब न्यायालय अपने समक्ष के विषयों पर विचार करने के पश्चात् या तो यह विश्वास करे कि उस तथ्य का अस्तित्व है या उसके अस्तित्व को इतना अधिसंभाव्य समझे कि उस विशिष्ट मामले की परिस्थितियों में किसी प्रज्ञावान व्यक्ति को इस अनुमान पर कार्य करना चाहिये कि उस तथ्य का अस्तित्व है”।
- यह धारा निश्चितता की पुष्टि करती है जिस पर किसी तथ्य को साबित करने से पहले पहुँचा जाना चाहिये। इस धारा में सिद्ध शब्द को परिभाषित करते समय साक्ष्य के स्थान पर 'उसके समक्ष मौजूद मामले' अभिव्यक्ति का प्रयोग किया गया, जिससे पता चलता है कि न्यायालय निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये अन्य सभी पर विचार कर सकता है।
- परिणाम:
- तथ्य सिद्ध हो जाने पर न्यायालय उस व्यक्ति के पक्ष में निर्णय देता है, जिसने इसे सिद्ध किया है।
- निर्णय विधि:
- आर. पुथुनैनार अलहिथन बनाम पी.एच. पांडियन, (1996) में उच्चतम न्यायालय ने माना कि सिद्ध तथ्यों से कोई निष्कर्ष इतना संभावित होना चाहिये कि यदि न्यायालय सिद्ध तथ्यों से यह मानता है कि तथ्य मौजूद हैं, तो यह माना जाना चाहिये कि तथ्य सिद्ध हो चुका है। उस तथ्य के प्रमाण का अनुमान प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य दिये गए वस्तुनिष्ठ तथ्यों से निकाला जा सकता है।
नासाबित (असिद्ध)
- अधिनियम की धारा 3 के अनुसार– “कोई तथ्य नासाबित हुआ कहा जाता है जब न्यायालय अपने समक्ष के विषयों पर विचार करने के पश्चात् या तो यह विश्वास करे कि उसका अस्तित्व नहीं है या उसके अनस्तित्व को इतना अधिसंभाव्य समझे कि उस विशिष्ट मामले की परिस्थितियों में किसी प्रज्ञावान व्यक्ति को इस अनुमान पर कार्य करना चाहिये कि उस तथ्य का अस्तित्व नहीं है”।
- असिद्ध शब्द नकारात्मक है। जब किसी तथ्य को असिद्ध कर दिया जाता है, तो उसके प्रमाण के बारे में कोई और प्रश्न नहीं उठता।
साबित नहीं हुआ (सिद्ध नहीं)
- अधिनियम की धारा 3 के अनुसार– “कोई तथ्य साबित नहीं हुआ तब कहा जाता है जब वह न तो साबित किया गया है और न सिद्ध”।
- अर्थात् जब कोई तथ्य ना तो सकारात्मक रूप से और ना ही नकारात्मक रूप से साबित होता है बल्कि उस तथ्य को किसी भी तरह से साबित नहीं किया जा सके, यद्यपि वास्तव में घटना हुई है, तो उसे साबित नहीं हुआ कहा जाएगा।
- सिद्ध न होना मिथ्या होने से भिन्न है। किसी दावे को साबित करने में असमर्थता का मतलब यह नहीं है कि सभी मामलों में यह झूठा है।
प्रामाणिक
- प्रमाण का मानक किसी कानूनी दावे या दावे को साबित करने के लिये आवश्यक साक्ष्य की मात्रा को संदर्भित करता है।
- आपराधिक न्याय प्रणाली में सबूत का भार सरकार पर होता है। इसका मतलब यह है कि अपने मामले और आरोपित अपराध के तत्त्वों को साबित करना अभियोजक का दायित्व है, प्रतिवादी का नहीं।
- दीवानी मामलों में, वादी पर ही सबूत का भार होता है, हालाँकि कौन-सा पक्ष दावा कर रहा है उसके आधार पर यह भार बदल सकता है।
- आपराधिक अभियोजन में सबूत का मानक उचित संदेह से परे है। सिविल मामलों में, मानक केवल देनदारियों की प्रधानता है।