होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872)

आपराधिक कानून

IEA की धारा 119

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 01-Mar-2024

परिचय:

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 119 उन साक्षियों से संबंधित है जो मौखिक रूप से संसूचित करने में असमर्थ होते हैं। इस धारा में वर्ष 2013 में जस्टिस जे.एस. वर्मा समिति द्वारा दी गई सिफारिशों के आधार पर संशोधन किया गया था।

IEA की धारा 119:

  • इस धारा में कहा गया है कि ऐसा कोई साक्षी, जो बोलने में असमर्थ है, ऐसी किसी अन्य रीति में, जिसमें वह उसे बोधगम्य बना सकता है जैसे कि लिखकर या संकेत चिह्नों द्वारा, अपना साक्ष्य दे सकेगा; किंतु ऐसा लेखन और संकेत चिह्न खुले न्यायालय में लिखे और किये जाने चाहिये तथा इस प्रकार दिया गया साक्ष्य मौखिक साक्ष्य माना जाएगा।
  • परंतु यदि साक्षी मौखिक रूप से संसूचित करने में असमर्थ है तो न्यायालय कथन अभिलिखित करने में किसी द्विभाषिये या विशेष प्रबोधक की सहायता लेगा और ऐसे कथन की वीडियो फिल्म तैयार की जा सकेगी।
  • IEA की धारा 119 के प्रावधान में मौखिक रूप से संसूचित करने में असमर्थ शब्द का अर्थ है लिखित रूप में संसूचित करने में असमर्थ और केवल संकेतों के माध्यम से संसूचित कर सकते हैं।
  • यह प्रावधान उन व्यक्तियों की श्रेणी पर लागू होगा जो बोलने में असमर्थ होते हैं और लिखित रूप में संसूचित नहीं कर सकते हैं।
  • प्रावधान के अनुसार, ऐसे मामलों में न्यायालय दुभाषिया की सहायता लेंगे और ऐसे बयान की रिकॉर्डिंग की वीडियोग्राफी की जाएगी। यह एक आदेश है जिसका न्यायालयों को सख्ती से पालन करना होगा

धारा के प्रभाव:

  • यह उन व्यक्तियों के मामलों पर लागू होता है जो शारीरिक विकृति के कारण बोलने में असमर्थ होते हैं।
  • एक साक्षी जिसने मौन की धार्मिक शपथ ली है, उसे इस धारा के अर्थ के भीतर बोलने में असमर्थ माना जाना चाहिये।
  • जब किसी बहरे व गूंगे व्यक्ति से न्यायालय में पूछताछ की जाती है, तो न्यायालय को सावधानी और ध्यान रखना पड़ता है।
  • जब कोई गूँगा-बहरा व्यक्ति साक्षी होता है, तो न्यायालय उससे पूछताछ करने से पूर्व यह सुनिश्चित करेगा कि उसके पास आवश्यक मात्रा में बुद्धि है और वह शपथ की प्रकृति को समझता है।

निर्णयज विधि:

  • राजस्थान राज्य बनाम दर्शन सिंह (2012) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भाषा शब्दों से कहीं अधिक है। अन्य सभी भाषाओं की तरह, संकेतों के माध्यम से संचार में कुछ अंतर्निहित सीमाएँ होती हैं, क्योंकि यह समझना कठिन हो सकता है कि उपयोगकर्त्ता क्या कहना चाह रहा है। लेकिन किसी गूंगे व्यक्ति को केवल उसकी शारीरिक क्षमता के कारण प्रमाणिक और विश्वसनीय साक्षी बनने से रोका नहीं जा सकता। ऐसा व्यक्ति, भले ही बोलने में असमर्थ हो, यदि वह साक्षर है, तो वह लिखकर, या यदि वह पढ़ने व लिखने में असमर्थ है, तो संकेतों और इशारों के माध्यम से अपनी बात कह सकता है।
  • चंदर सिंह बनाम राज्य (2016) मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि एक बहरे और गूंगे साक्षी की शब्दावली बहुत सीमित हो सकती है तथा जब ऐसे साक्षी से ज़िरह चल रही हो तो उचित सावधानी बरतनी चाहिये।