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आपराधिक कानून
दहेज मृत्यु के मामलों में जमानत रद्द करना
29-Nov-2025
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योगेंद्र पाल सिंह बनाम राघवेंद्र सिंह उर्फ प्रिंस और अन्य "दहेज मृत्यु सामाजिक कुप्रथा की सबसे घृणित अभिव्यक्तियों में से एक हैं और मानवीय गरिमा की जड़ पर प्रहार करती हैं।" न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और आर. महादेवन |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
योगेंद्र पाल सिंह बनाम राघवेंद्र सिंह उर्फ प्रिंस और अन्य (2025) मामले में न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने दहेज हत्या के एक मामले में अभियुक्त पति को दी गई जमानत रद्द कर दी। पीठ ने इस बात पर बल दिया कि ऐसे मामलों में न्यायिक निष्क्रियता या अनुचित उदारता अपराधियों को प्रोत्साहित करेगी और न्याय प्रशासन में जनता के विश्वास को कम करेगी
योगेन्द्र पाल सिंह बनाम राघवेन्द्र सिंह उर्फ प्रिंस एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपीलकर्त्ता की पुत्री आस्था का विवाह 22 फरवरी 2023 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार अभियिक्त राघवेंद्र सिंह से हुआ था।
- विवाह के समय अपीलकर्त्ता ने अभियुक्त के परिवार को लगभग 22 लाख रुपए नकद, 10 लाख रुपए मूल्य की वस्तुएँ तथा 15 लाख रुपए मूल्य के आभूषण प्रदान किये।
- विवाह के तुरंत बाद, मृतका को कथित तौर पर अभियुक्त और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा अतिरिक्त दहेज के रूप में फॉर्च्यूनर कार की मांग करते हुए क्रूरता और उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा।
- मृतका के विवाह के चार महीने के भीतर ही 5 जून 2023 को संदिग्ध परिस्थितियों में कथित तौर पर जहर खाने से मृत्यु हो गई।
- 4 जून 2023 को एक पारिवारिक समारोह के दौरान, अभियुक्त और मृतक के बीच झगड़ा हुआ और बाद में उसी रात मृतक ने अपनी बड़ी बहन को परेशान होकर फोन किया, और बताया कि अभियुक्त और उसके नातेदारों ने उसे बलपूर्वक एक दुर्गंधयुक्त पदार्थ खिला दिया है।
- मृतका को फतेहपुर के सदर अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उसके मुँह से झाग निकलता पाया गया और कानपुर ले जाते समय उसकी मृत्यु हो गई।
- पोस्टमार्टम जांच में बायीं बांह पर खरोंच का निशान पाया गया तथा फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट में एल्युमीनियम फॉस्फाइड जहर की उपस्थिति की पुष्टि हुई।
- 15 जून 2023 को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498क, 304ख, 120ख और 328 तथा दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 415/2023 दर्ज की गई।
- अभियुक्त को अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज होने के 104 दिन बाद 22 सितंबर 2023 को गिरफ्तार किया गया।
- 30 अक्टूबर 2023 को केवल अभियुक्त पति के विरुद्ध आरोप पत्र दायर किया गया, अन्य नामित ससुराल वालों को छोड़कर।
- सेशन न्यायालय ने 20 अक्टूबर 2023 को जमानत अर्जी खारिज कर दी, किंतु इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 9 जनवरी 2025 को जमानत दे दी।
- मृतक के पिता होने के नाते अपीलकर्त्ता ने जमानत रद्द करने की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि मृतका का पिता होने के नाते अपीलकर्त्ता के पास जमानत रद्द करने की अपील को जारी रखने के लिये अपेक्षित अधिकार है, क्योंकि विवाह के चार महीने के भीतर उसकी पुत्री की अप्राकृतिक मृत्यु ने परिवादकर्त्ता के रूप में उसके अधिकारों को सीधे तौर पर प्रभावित किया है।
- न्यायालय ने जमानत निरस्तीकरण करने (आदेश में विधिक कमी के कारण) और जमानत रद्द करने (जमानत के बाद अवचार या उत्पन्न परिस्थितियों के कारण) के बीच अंतर किया।
- न्यायालय ने कहा कि अपराध की गंभीरता, प्रथम दृष्टया साक्ष्य या अभियुक्त के पूर्ववृत्त जैसे सुसंगत कारकों पर समुचित विचार किये बिना दी गई जमानत को निरस्त किया सकता है।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि विवाह 22 फरवरी 2023 को हुआ था और मृत्यु 5 जून 2023 को हुई, अर्थात् विवाह के चार महीने के भीतर, जिससे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 ख की मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी होती हैं।
- मृतका द्वारा अपने पिता और बड़ी बहन को दिये गए मृत्युकालिक कथन, नातेदारों का सुसंगत परिसाक्ष्य और मृत्यु के पश्चात् दर्ज किये गए घर्षण के निशान के कारण अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला स्थापित हुआ।
- न्यायालय ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 113ख के अधीन सांविधिक उपधारणा अभियुक्त के विरुद्ध अनिवार्य रूप से तब उत्पन्न होती है, जब यह स्थापित हो जाता है कि मृत्यु विवाह के सात वर्ष के भीतर दहेज संबंधी क्रूरता के कारण हुई थी।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि दहेज मृत्यु केवल एक व्यक्ति के विरुद्ध अपराध नहीं है, अपितु यह पूरे समाज के विरुद्ध अपराध है, जो मानवीय गरिमा की जड़ पर प्रहार करता है तथा अनुच्छेद 14 और 21 के अधीन सांविधानिक प्रत्याभूति का उल्लंघन करता है।
- न्यायालय ने कहा कि दहेज मृत्यु की घटना सामाजिक कुरीति की सबसे घृणित अभिव्यक्तियों में से एक है, जहाँ एक युवा महिला का जीवन केवल दूसरों के अतृप्त लालच को संतुष्ट करने के लिये समाप्त कर दिया जाता है।
- न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली, उच्च न्यायालय के आदेश को अपास्त कर दिया और अभियुक्त को दी गई जमानत रद्द कर दी तथा उसे तत्काल अभिरक्षा में आत्मसमर्पण करने का निदेश दिया।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि निर्णय जमानत रद्द करने के विवाद्यक तक ही सीमित है, तथा विचारण विधि के अनुसार अपने गुण-दोष के आधार पर स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ेगा।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम , 1961 क्या है?
बारे में:
- 1 मई, 1961 को अधिनियमित भारतीय विधि का उद्देश्य दहेज देना या लेना को प्रतिषिद्ध करना था।
- इस अधिनियम में दहेज का अर्थ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी गई या देने पर सहमति दी गई कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति है।
- 'दहेज निषेध अधिनियम ' के मूल पाठ को व्यापक रूप से दहेज प्रथा पर अंकुश लगाने में अप्रभावी माना गया था।
- महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के कुछ खास रूपों को दहेज की मांग पूरी न होने से जोड़कर देखा जाता रहा। 1984 में, इसमें परिवर्तन करके यह स्पष्ट किया गया कि विवाह के समय वधू या वर को दिये जाने वाले उपहारों की अनुमति है।
- विधि के अनुसार, एक सूची बनाई जानी चाहिये जिसमें प्रत्येक उपहार, उसका मूल्य, उसे देने वाले व्यक्ति की पहचान, तथा विवाह में किसी भी पक्षकार के साथ उस व्यक्ति के संबंध का विवरण हो।
- दहेज संबंधी हिंसा की शिकार महिलाओं की सुरक्षा के लिये अधिनियम और भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की संबंधित धाराओं में और संशोधन किया गया।
- घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम,2005 के अधीन विधिक सुरक्षा की एक और परत प्रदान की गई ।
- भारतीय दण्ड संहिता, 1860 को भी 1983 में संशोधित किया गया जिससे दहेज से संबंधित क्रूरता, दहेज मृत्यु और आत्महत्या के दुष्प्रेरण जैसे अपराधों को विशिष्ट श्रेणी में रखा जा सके।
- इन अधिनियमों के अधीन दहेज की मांग या दहेज उत्पीड़न का सबूत दिखाये जाने पर महिलाओं के पति या उनके नातेदारों द्वारा की गई हिंसा को दण्डित किया जाता था।
शास्ति:
- दहेज देना या लेना:
- दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् दहेज देगा या लेगा, अथवा दहेज देना या लेना दुष्प्रेरित करेगा, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि पाँच वर्ष से कम की नहीं होगी और जुर्माने से जो15,000 रुपए से या ऐसे दहेज के मूल्य की रकम तक का, इनमें से जो भी अधिक हो, कम नहीं होगा दण्डनीय होगा।
- दहेज की मांग:
- अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति, यथास्थिति, वर या वधू के माता-पिता या अन्य नातेदार या संरक्षक, से किसी दहेज की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मांग करेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी, किंतु दो वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से जो 10,000 रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
- विज्ञापन पर पाबंदी:
- धारा 4-क के अनुसार , किसी भी व्यक्ति द्वारा विवाह के लिये किसी समाचार पत्र, पत्रिका या किसी अन्य माध्यम से विज्ञापन देना या संपत्ति, कारबार, धन आदि में अंश देना, छह मास से कम नहीं और पाँच वर्ष तक के कारावास या पंद्रह हजार रुपए तक के जुर्माने से दण्डित किया जाएगा।
वाणिज्यिक विधि
माल और सेवा कर अपील में प्रक्रियात्मक आवश्यकताएँ
29-Nov-2025
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मेसर्स सन ग्लास वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य "माल और सेवा कर अधिनियम में याचिकाकर्त्ता को उचित सूचना दिये बिना निर्णय सुरक्षित रखने और बाद में सुनाने का कोई प्रावधान नहीं है।" न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने मेसर्स सन ग्लास वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य (2025) के मामले में प्रक्रियात्मक अनियमितता के आधार पर अपर आयुक्त द्वारा पारित अपीलीय आदेश को रद्द कर दिया, जहाँ निर्णय सुरक्षित रखा गया था और याचिकाकर्त्ता को उचित नोटिस दिये बिना सुनाया गया था।
मेसर्स सन ग्लास वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 2 अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता, मेसर्स सन ग्लास वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड, एक निजी लिमिटेड कंपनी है जो कांच की बोतलों के विनिर्माण और विक्रय में लगी हुई है।
- मार्च 2021 के दौरान, याचिकाकर्त्ता ने रजिस्ट्रीकृत डीलरों से कांच की बोतलें बनाने के लिये कच्चे माल के रूप में विभिन्न प्रकार के रसायन खरीदे, जिन्होंने उचित कर चालान जारी किये।
- 17 फरवरी 2022 को माल और सेवा अधिनियम की धारा 74(1) के अधीन कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था जिसमें अभिकथित किया गया था कि कपट या मिथ्या कथन के जरिए इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाया गया था।
- याचिकाकर्त्ता ने कर चालान, बैंक स्टेटमेंट और फॉर्म GSTR2-A की प्रतियों सहित सहायक दस्तावेज़ों के साथ एक विस्तृत उत्तर प्रस्तुत किया।
- 10 मई 2022 को मूल्यांकन प्राधिकारी ने कथित सर्वेक्षण रिपोर्ट की प्रति या याचिकाकर्त्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान किये बिना कर और जुर्माना की मांग करते हुए एक आदेश पारित किया।
- 10 मई 2022 के आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्त्ता ने अपर आयुक्त, ग्रेड-2 (अपील), मैनपुरी के समक्ष अपील दायर की।
- 18 सितंबर 2024 को अपीलीय प्राधिकारी ने सुनवाई की तारीख तय की, जिसके दौरान निर्णय सुरक्षित रखा गया।
- तत्पश्चात् 25 सितंबर 2024 को अपील खारिज करते हुए निर्णय सुनाया गया, किंतु याचिकाकर्त्ता को इस तिथि की सूचना नहीं दी गई।
- याचिकाकर्त्ता ने रिट याचिका के माध्यम से 10 मई 2022 के मूल आदेश और 25 सितंबर 2024 के अपीलीय आदेश दोनों को चुनौती दी।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि माल और सेवा कर अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो पक्षकारों को नोटिस दिये बिना निर्णय सुरक्षित रखने और बाद में निर्णय सुनाने की अनुमति देता हो।
- याचिकाकर्त्ता ने मेसर्स वंडर एंटरप्राइजेज बनाम अपर आयुक्त, ग्रेड-2 एवं अन्य मामले में स्थापित पूर्व निर्णय पर विश्वास किया, जिस पर 12 सितंबर 2024 को निर्णय हुआ।
- अपर आयुक्त ने न्यायालय के आदेश के अनुसरण में व्यक्तिगत शपथपत्र दायर किया, किंतु इसमें किसी ऐसे प्रावधान या अधिसूचना का उल्लेख नहीं किया जो प्राधिकारी को नोटिस जारी किये बिना या सुनवाई का अवसर दिये बिना सुनवाई की तिथि के सिवाय किसी अन्य तिथि पर निर्णय पारित करने का अधिकार देता हो।
- न्यायालय ने कहा कि यह विवाद्यक मेसर्स वंडर एंटरप्राइजेज मामले में दिये गए निर्णय में स्पष्ट रूप से सम्मिलित है।
- न्यायालय ने कहा कि विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, 25 सितंबर 2024 का आदेश विधि की दृष्टि में सही नहीं ठहराया जा सकता।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि इस मामले पर प्रक्रियागत आवश्यकताओं के उचित पालन के साथ पुनर्विचार की आवश्यकता है।
- अपर आयुक्त, ग्रेड-2 (अपील), मैनपुरी द्वारा पारित दिनांक 25 सितंबर 2024 के आदेश को निरस्त कर दिया गया।
- रिट याचिका को स्वीकार कर लिया गया, तथा मामले को पुनः निर्णय के लिये अपर आयुक्त के पास वापस भेज दिया गया।
- न्यायालय ने निदेश दिया कि अपीलीय प्राधिकारी को सभी हितधारकों को सुनवाई का उचित अवसर प्रदान करना चाहिये।
- न्यायालय ने आदेश की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करने की तिथि से तीन महीने के भीतर शीघ्र निपटान का आदेश दिया।
माल और सेवा कर (GST) अधिनियम, 2017 क्या है?
बारे में:
- 101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2017 द्वारा प्रस्तुत, यह भारत में माल और सेवाओं की आपूर्ति पर लगाया जाने वाला एक व्यापक अप्रत्यक्ष कर है।
- यह एक मूल्य वर्धित कर (value-added tax (VAT)) है जिसने केंद्र और राज्यों द्वारा पहले लगाए जाने वाले अनेक अप्रत्यक्ष करों का स्थान ले लिया है।
प्रमुख विशेषताऐं:
- दोहरी माल और सेवा कर संरचना: इसमें केंद्रीय माल और सेवा कर (CGST) और राज्य माल और सेवा कर (SGST) सम्मिलित हैं; एकीकृत माल और सेवा कर (IGST) अंतर-राज्यीय संव्यवहार के लिये लागू है।
- माल और सेवा कर परिषद: यह माल और सेवा कर नीति निर्धारण और दर निर्णय के लिये प्राथमिक निकाय है।
- माल और सेवा कर परिषद केंद्र और राज्यों का संयुक्त मंच है।
- इसे संशोधित संविधान के अनुच्छेद 279क (1) के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा स्थापित किया गया था।
सदस्य:
- परिषद के सदस्यों में केंद्रीय वित्त मंत्री (अध्यक्ष), केंद्र से केंद्रीय राज्य मंत्री (वित्त) सम्मिलित हैं।
- प्रत्येक राज्य वित्त या कराधान के प्रभारी मंत्री या किसी अन्य मंत्री को सदस्य के रूप में नामित कर सकता है।
कार्य:
- अनुच्छेद 279 के अनुसार, परिषद का उद्देश्य “माल और सेवा कर से संबंधित महत्त्वपूर्ण विवाद्यकों पर केंद्र और राज्यों को सिफारिशें करना है, जैसे कि वे माल और सेवाएँ जो माल और सेवा कर के अधीन हो सकती हैं या माल और सेवा कर से छूट प्राप्त हो सकती हैं, मॉडल माल और सेवा कर विधि।”
- माल और सेवा कर नेटवर्क (GSTN): भारत में करदाताओं को रिटर्न तैयार करने, दाखिल करने, अप्रत्यक्ष कर देनदारियों का संदाय करने और अन्य अनुपालन करने में सहायता करना।
- सीमा छूट: एक निश्चित सीमा से कम टर्नओवर वाले छोटे कारबारों को माल और सेवा कर से छूट दी गई है। इससे अनुपालन आसान हो जाता है और सूक्ष्म उद्यमों को अत्यधिक कागजी कार्रवाई से सुरक्षा मिलती है।
