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करेंट अफेयर्स और संग्रह

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सांविधानिक विधि

जिला न्यायाधीश पदों में न्यायिक अधिकारियों हेतु किसी भी प्रकार के कोटे का प्रावधान नहीं है

 20-Nov-2025

"वार्षिक 4-बिंदु रोस्टर प्रणाली के माध्यम से उच्च न्यायिक सेवा के भीतर अधिकारियों की वरिष्ठता अवधारित करने के लिये अनिवार्य दिशानिर्देश जारी किये गए।" 

भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, के. विनोद चंद्रन और जॉयमाल्या बागची 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता में गठित पाँच-न्यायाधीशीय पीठ, जिसमें माननीय न्यायमूर्ति सूर्यकांत, विक्रम नाथ, के. विनोद चंद्रन तथा जॉयमाल्या बागची सम्मिलित थे, ने अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ एवं अन्य बनाम भारत संघ (2025)में निर्णय दिया, जिसमें जिला न्यायाधीश पदों पर पदोन्नत न्यायाधीशों के लिये किसी विशेष कोटा को खारिज कर दिया गया और उच्च न्यायिक सेवा में वरिष्ठता पर व्यापक दिशानिर्देश जारी किये गए। 

अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ एवं अन्य बनाम भारत संघ (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • पीठ इस बात पर विचार कर रही थी कि क्याकैरियर में ठहराव को दूर करने के लिये प्रवेश स्तर पर सम्मिलित होने वालेन्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति के लिये जिला न्यायाधीश के पदों में कोटा होना चाहिये 
  • न्यायालय का मित्र (amicus curiae) नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ भटनागर ने एक विषम स्थिति पर प्रकाश डाला था, जहाँ प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में भर्ती किये गए न्यायिक अधिकारी अक्सर प्रधान जिला न्यायाधीश के स्तर तक भी नहीं पहुँच पाते हैं। 
  • न्यायमित्र ने कहा कि इस स्थिति ने प्रतिभाशाली युवाओं को न्यायपालिका में सम्मिलित होने से हतोत्साहित किया है। 
  • प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट (JMFC) कैडर से आरंभ में चयनित न्यायाधीशों की पदोन्नति के लिये प्रधान जिला न्यायाधीश कैडर से कुछ प्रतिशत पद आरक्षित करने के प्रस्ताव पर विचार करने के लिये यह मामला बड़ी पीठ को भेजा गया था। 
  • वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए तर्क दिया कि इससे जिला न्यायाधीश के रूप में सीधी भर्ती की प्रतीक्षा कर रहे मेधावी अभ्यर्थियों को अवसर नहीं मिलेगा।  
  • संदर्भ आदेश में कहा गया है कि प्रारंभ में सिविल न्यायाधीश के रूप में नियुक्त न्यायाधीश दशकों की सेवा के माध्यम से समृद्ध अनुभव प्राप्त करते हैं, और प्रत्येक न्यायिक अधिकारी कम से कम उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद तक पहुँचने की आकांक्षा रखता है। 
  • इस विवाद्यक में तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा पारित निर्णयों पर विचार करना शामिल था, जिसके लिये पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की आवश्यकता थी। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • न्यायालय ने जिला न्यायाधीश पदों पर पदोन्नत न्यायाधीशों के लिये विशेष कोटा या वेटेज को खारिज कर दिया, तथा कहा कि उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) में प्रत्यक्ष भर्ती से आए अधिकारियों के अनुपात में किसी भी प्रकार की राष्ट्रव्यापी असमानता का कोई ठोस पैटर्न प्रदर्शित नहीं होता 
  • पीठ ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों में असंतोष की भावना के आधार पर उच्च न्यायिक सेवा संवर्ग में कृत्रिम वर्गीकरण को उचित नहीं ठहराया जा सकता। 
  • विभिन्न स्रोतों से सामान्य कैडर में प्रवेश और वार्षिक रोस्टर के अनुसार वरिष्ठता सौंपे जाने पर, पदधारी उस स्रोत का जन्मचिह्न खो देते हैं जहाँ से उनकी भर्ती हुई है। 
  • उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) के अंतर्गत चयन ग्रेड और सुपर टाइम स्केल में निर्धारण, संवर्ग के भीतर योग्यता-सह-वरिष्ठता पर आधारित है और यहन्यायपालिका के निचले स्तर पर सेवा की अवधि या प्रदर्शन पर निर्भर नहीं हो सकता। 
  • सिविल जज के रूप में कार्यकाल की अवधि और प्रदर्शन, जिला जज के सामान्य कैडर में पदाधिकारियों को वर्गीकृत करने के लिये कोई स्पष्ट अंतर नहीं रखता है। 
  • न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि सेवा में कार्यरत न्यायिक अधिकारियों के पास जिला न्यायाधीश के रूप में उन्नति के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं, विशेष रूप से रेजानिश निर्णय के उपरांत, जिसने उन्हें प्रत्यक्ष भर्ती के जिला न्यायाधीश पद हेतु प्रतियोगिता में भाग लेने का अधिकार प्रदान किया है 
  • सिविल जज सीनियर डिवीजन के रूप में शीघ्र पदोन्नति को सेवा अवधि में कमी की शर्त के साथ सुगम बनाया गया है। 
  • व्यक्तिगत आकांक्षाएं किसी भी सेवा की सामान्य घटना है और वरिष्ठता नियमों का मार्गदर्शन नहीं कर सकतीं। 

वरिष्ठता पर उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देश क्या हैं? 

न्यायालय नेभारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 142 के अधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए जिला न्यायाधीश के पदों को भरने के लिये दिशानिर्देश जारी किये 

दिशानिर्देश 1:उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) के भीतर अधिकारियों की वरिष्ठता वार्षिक 4-बिंदु रोस्टर के माध्यम से निर्धारित की जाएगी, जिसे 2 नियमित पदोन्नतियों, 1 सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा (Limited Departmental Competitive Examination (LDCE)) और 1 सीधी भर्ती के दोहराव क्रम में विशेष वर्ष में नियुक्त सभी अधिकारियों द्वारा भरा जाएगा। 

दिशानिर्देश 2:केवल तभी जब भर्ती प्रक्रिया उस वर्ष के भीतर पूरी हो जाती है जिसके बाद इसे शुरू किया गया था और उस बाद के वर्ष के लिये किसी भी तीन स्रोतों से कोई अन्य नियुक्तियां पहले से नहीं हुई हैं, तो विलंब से नियुक्त अधिकारी उस वर्ष के रोस्टर के अनुसार वरिष्ठता के हकदार होंगे जिसमें भर्ती शुरू की गई थी। 

दिशानिर्देश 3:यदि किसी वर्ष उत्पन्न हुई रिक्तियों के लिये उसी वर्ष भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की जाती, तो ऐसी रिक्तियों को बाद की भर्ती प्रक्रिया में भरने वाले अभ्यर्थियों को उस वार्षिक रोस्टर वर्ष में वरिष्ठता प्रदान की जाएगी, जिसमें संबंधित भर्ती प्रक्रिया अंततः पूर्ण हुई हो तथा नियुक्ति संपादित की गई हो 

दिशानिर्देश 4:किसी विशेष वर्ष के लिये सीधी भर्ती और सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा (LDCE) की भर्ती पूरी हो जाने के बाद, उनके कोटे में आने वाले पद जो उपयुक्त अभ्यर्थियों की कमी के कारण खाली रह जाते हैं, उन्हें नियमित पदोन्नतियों के माध्यम से भरा जाएगा, बशर्ते कि वार्षिक रोस्टर में केवल बाद के नियमित पदोन्नत पदों पर नियुक्ति की जाए, और बाद के वर्ष में रिक्तियों की गणना पूरे कैडर पर 50:25:25 के अनुपात में लागू की जाएगी। 

दिशानिर्देश 5:संबंधित राज्यों में उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) को नियंत्रित करने वाले सांविधिक नियम, उच्च न्यायालयों के परामर्श से, वार्षिक रोस्टर और निर्णय निदेशों के कार्यान्वयन की सटीक रूपरेखा विहित करेंगे। 

अतिरिक्त न्यायालय स्पष्टीकरण: 

  • इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य किसी आपसी विवाद को सुलझाना नहीं है, अपितु ये सामान्य हैं तथा इन्हें उच्चतर न्यायिक सेवाओं की आपसी वरिष्ठता को नियंत्रित करने वाले विनियमों में सम्मिलित करना अनिवार्य है। 
  • ये दिशानिर्देश आपसी वरिष्ठता विवादों से संबंधित किसी भी निर्णीत विवाद्यक को पुनः नहीं खोलेंगे। 
  • वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए दिशानिर्देश जारी किये जा रहे हैं तथा भविष्य में इनमें पुनः संशोधन किया जा सकता है। 

उच्च न्यायिक सेवा क्या है? 

बारे में: 

  • उच्चतर न्यायिक सेवा भारतीय न्यायिक प्रणाली में जिला न्यायाधीशों के संवर्ग को संदर्भित करती है। 
  • उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) में प्रवेश तीन स्रोतों से होता है: सिविल जज संवर्ग से नियमित पदोन्नति, सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा और सीधी भर्ती। 
  • नियमित पदोन्नतियों, सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा (LDCE) और सीधी भर्ती के लिये कैडर शक्ति अनुपात क्रमशः 50:25:25 है। 

कैरिअर की प्रगति: 

  • उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) के अधिकारी जिला न्यायाधीश चयन ग्रेड, जिला न्यायाधीश सुपर टाइम स्केल और प्रधान जिला न्यायाधीश जैसे पदों पर आगे बढ़ सकते हैं।  
  • संवर्ग के भीतर पदोन्नति योग्यता-सह-वरिष्ठता सिद्धांत पर आधारित है। 
  • सेवा में कार्यरत न्यायिक अधिकारी जिला न्यायाधीश के रूप में प्रत्यक्ष भर्ती हेतु भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त पदोन्नति अवसर उपलब्ध होते हैं 

वरिष्ठता का अवधारण: 

  • इससे पहले, वरिष्ठता निर्धारण राज्यों में अलग-अलग होता था, जिसके कारण विवाद और कैरियर में ठहराव की चिंताएँ उत्पन्न होती थीं। 
  • नये दिशानिर्देश सुसंगत वरिष्ठता निर्धारण के लिये सभी राज्यों में एक समान वार्षिक रोस्टर प्रणाली स्थापित करते हैं। 
  • वार्षिक रोस्टर उच्चतर न्यायिक सेवा (HJS) संवर्ग में भर्ती के सभी तीन स्रोतों से आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है। 

भारत के संविधान का अनुच्छेद 142 क्या है? 

  • भारत के संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय डिक्रियों और आदेशों का प्रवर्तन और प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश का उपबंध करता है। 
  • अनुच्छेद 142 (1) में यह उपबंध है कि उच्चतम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाए और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश' द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा 
  • अनुच्छेद 142 (2) में यह उपबंध है कि संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र के बारे में किसी व्यक्ति को हाजिर कराने के, किन्हीं दस्तावेज़ों के प्रकटीकरण या पेश कराने के अथवा अपने किसी अवमान का अन्वेषण करने या दण्ड देने के प्रयोजन के लिये कोई आदेश करने की समस्त और प्रत्येक शक्ति होगी 
  • वर्षों से इस उपबंध का उपयोग मुख्यतः दो उद्देश्यों के लिये किया जाता रहा है: पहला, किसी मामले में "पूर्ण न्याय" करना और दूसरा, न्यायालय द्वारा विधायी अंतराल को भरना। 

सांविधानिक विधि

अधिकरण सुधार अधिनियम 2021 को शून्य घोषित किया गया

 20-Nov-2025

"अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 सांविधानिक दोषों को दूर किये बिना बाध्यकारी निर्णयों को विधायी रूप से रद्द करने के समान है।" 

भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ नेमद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2025)के मामले में अधिकरण सदस्यों की नियुक्तियों, कार्यकाल और सेवा शर्तों से संबंधित अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 को असांविधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया। 

मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 को चुनौती देते हुए मद्रास बार एसोसिएशन द्वारा 2021 में याचिका दायर की गई थी। 
  • 2020 के मद्रास बार एसोसिएशन मामले (MBA 4) में, उच्चतम न्यायालय नेअधिकरण नियम 2020 को रद्द कर दिया था। 
  • 2021 के मद्रास बार एसोसिएशन मामले (MBA 5) में, न्यायालय ने अधिकरण सुधार अध्यादेश 2021 को रद्द कर दिया। 
  • इन पूर्व निर्णयों में न्यायालय ने यह आदेश दिया था कि अधिकरण के सदस्यों का कार्यकाल कम से कम 5 वर्ष का होना चाहिये तथा न्यूनतम 10 वर्ष का अनुभव रखने वाले अधिवक्ताओं की नियुक्ति पर विचार किया जाना चाहिये 
  • यद्यपि, 2021 अधिनियम में केवल 4 वर्ष का कार्यकाल विहित किया गया है और नियुक्तियों के लिये न्यूनतम आयु सीमा 50 वर्ष निर्धारित की गई है। 
  • अधिनियम में यह भी निर्धारित किया गया है कि खोज-सह-चयन समिति अध्यक्ष पद के लिये दो व्यक्तियों की सिफारिश करेगी, जो कि पूर्व के निर्णयों से अलग है। 
  • अधिनियम ने समकक्ष सिविल सेवकों के समान भत्ते और लाभ निर्धारित किये तथा ऊपरी आयु सीमा 70/67 वर्ष अधिरोपित की। 
  • याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि यह अधिनियमउच्चतम न्यायालय के पूर्ववर्ती निर्णयों के विपरीतहै तथा न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। 
  • केंद्र सरकार ने मामले को बड़ी पीठ को सौंपने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया, जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया। 
  • 11 नवंबर, 2025 को निर्णय सुरक्षित रखा गया और 19 नवंबर, 2025 को सुनाया गया। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • न्यायालय ने कहा कि येप्रावधान शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता के सांविधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, जो संविधान में दृढ़तापूर्वक अंतर्निहित हैं। 
  • निर्णय में इस बात पर बल दिया गया कि संसद सांविधानिक दोषों को दूर किये बिना उसी उपाय को अलग रूप में पुनः लागू करके न्यायिक निर्णयों को रद्द नहीं कर सकती। 
  • पीठ ने कहा कि यह अधिनियम "केवल थोड़े से परिवर्तित रूप में उन्हीं प्रावधानों को पुनः प्रस्तुत करता है, जिन्हें पहले निरस्त कर दिया गया था" जो विधायी अधिरोहण के समान है। 
  • न्यायालय ने संघ के इस तर्क को खारिज कर दिया कि किसी विधि का परीक्षण न्यायिक स्वतंत्रता और शक्तियों के पृथक्करण जैसे "अमूर्त सिद्धांतों" पर नहीं किया जा सकता। 
  • पचास वर्ष की न्यूनतम आयु सीमा, ऊपरी आयु सीमा के साथ चार वर्ष का संक्षिप्त कार्यकाल, अध्यक्ष के लिये दो नामों की सिफारिश करने की आवश्यकता, तथा सिविल सेवक समकक्षों के लिये भत्ते तय करने को मनमाना करार देते हुए रद्द कर दिया गया। 
  • सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने अटॉर्नी जनरल द्वारा बड़ी पीठ को संदर्भ देने और स्थगन की मांग पर नाराजगी व्यक्त की, तथा प्रश्न किया कि क्या यह मुख्य न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति तक सुनवाई में विलंब करने की एक "रणनीति" थी। 
  • न्यायालय ने निदेश दिया कि जब तक संसद नया अधिनियम पारित नहीं कर देती, तब तक मद्रास बार एसोसिएशन (MBA 4) और मद्रास बार एसोसिएशन (MBA 5) मामलों में दिये गए निदेशलागू रहेंगे। 
  • न्यायालय ने केंद्र को चार महीने के भीतर राष्ट्रीय अधिकरण आयोग गठित करने का निदेश दिया। 
  • जिन नियुक्तियों का चयन अधिनियम लागू होने से पूर्व पूरा हो गया था, किंतु जिनकी औपचारिक अधिसूचनाएँ बाद में जारी की गईं, उन्हें मूल संविधि और मद्रास बार एसोसिएशन 4/5 शर्तों द्वारा संरक्षित और शासित किया जाएगा। 

अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 क्या है? 

बारे में: 

  • यह अधिनियमकुछ अपीलीय अधिकरणों को भंग करकेतथाउनके कार्यों को उच्च न्यायालयों जैसे विद्यमान न्यायिक निकायों को अंतरित करकेअधिकरणों के कामकाज को सुव्यवस्थित करने के लिये अधिनियमित किया गया था। 
  • इसे मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2021)के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के जवाब में पेश किया गया था, जिसने अधिकरण सुधार (Rationalisation and Conditions of Service) अध्यादेश, 2021 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था। 

प्रमुख प्रावधान: 

  • अधिकरण का उन्मूलन:यह अधिनियम अनेक अपीलीय अधिकरणों को भंग कर देता है तथा उनके कार्यों को उच्च न्यायालयों और अन्य न्यायिक निकायों को सौंप देता है। 
  • खोज-सह-चयन समिति:इसकी स्थापना अधिकरण के अध्यक्षों और सदस्यों की नियुक्ति की सिफारिश करने के लिये की गई है। 
  • केंद्रीय अधिकरणों के लिये: 
    • अध्यक्ष:भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) या CJI द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (निर्वाचन मत)। 
    • केंद्र सरकार द्वारा नामितदोसचिव। 
    • अधिकरण के वर्तमान/निवर्तमान अध्यक्ष, अथवा उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, अथवा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश। 
    • गैर-मतदाता सदस्य:संबंधित केंद्रीय मंत्रालय के सचिव। 
  • राज्य प्रशासनिक अधिकरणों के लिये: 
    • अध्यक्ष:संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (मतदान)। 
    • राज्य सरकार केमुख्य सचिव। 
    • राज्य लोक सेवा आयोगके अध्यक्ष । 
    • अधिकरण के वर्तमान/निवर्तमान अध्यक्षअथवा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश। 
  • कार्यकाल और आयु सीमा: अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल4 वर्ष है, न्यूनतम आयु 50 वर्ष है । 
    • अधिकरण के सदस्यों के लिये अधिकतमआयु सीमा 67 वर्षतथाअध्यक्ष के लिये 70 वर्षअथवा 4 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने तक, जो भी पहले हो, है। 
    • अधिकरण केअध्यक्ष और सदस्य पुनर्नियुक्ति के पात्र हैं, तथा उनकी पिछली सेवा को वरीयता दी जाएगी। 
    • अधिकरण के सदस्यों को हटाना:खोज-सह-चयन समिति की सिफारिश पर केंद्र सरकार अध्यक्ष या सदस्य को हटा सकती है। 

अधिकरण क्या हैं? 

अधिकरण एकअर्ध-न्यायिक संस्थाहै जिसकी स्थापना प्रशासनिक या कर-संबंधी विवादों जैसे मामलों के समाधान के लिये की जाती है। मूल संविधान मेंअधिकरणों के संबंध में कोई प्रावधान नहीं था। 1976 के 42 वेंसंशोधन अधिनियम द्वारासंविधान में एक नयाभाग 14-जोड़ा गया । 

  • भाग 14- को अधिकरण कहा गया हैऔर इसमें दो अनुच्छेद हैं, अर्थात् अनुच्छेद 323क और 323 
  • अनुच्छेद 323- : लोक सेवा मामलों के लिये प्रशासनिक अधिकरणों से संबंधित है। 
  • अनुच्छेद 323- : विभिन्न मामलों पर अधिकरणों का उपबंध करता है, जिनमें सम्मिलित हैं: कराधान, विदेशी मुद्रा, आयात और निर्यात, औद्योगिक और श्रम विवाद, संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव, खाद्य सुरक्षा। 

न्यायालय और अधिकरण के बीच अंतर 

                       न्यायालय 

                अधिकरण 

  • पारंपरिक न्यायिक प्रणाली का भाग 
  • यह एक अर्ध-न्यायिक निकाय है। 
  • सिविल न्यायालयों के पास सिविल प्रकृति के सभी वादों पर विचारण चलाने की न्यायिक शक्ति है, जब तक कि संज्ञान पर अभिव्यक्त रूप से या विवक्षित रूप से रोक न लगाई गई हो। 
  • अधिकरणों के पास विशेष मामलों पर विचारण करने का अधिकार होता है जो उन्हें संविधि द्वारा प्रदान किये जाते हैं। 
  • न्यायपालिका कार्यपालिका से स्वतंत्र है। 
  • प्रशासनिक अधिकरण पूरी तरह कार्यपालिका के हाथों में है। 
  • यह साक्ष्य और प्रक्रिया के सभी नियमों से बंधा है। 
  • यह न्याय की प्रकृति के सिद्धांतों से बंधा है।