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आपराधिक कानून
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354घ
15-Jul-2025
अभिषेक मिश्रा बनाम कर्नाटक राज्य “अंतरंग क्षणों का चित्रण (फिल्मांकन) किये जाने के अभिकथन को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354ग के अधीन दृश्यरतिकता के तत्त्वों को संतुष्ट करते हैं।” न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना |
स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने निर्णय दिया कि केवल अश्लील एवं अपमानजनक संदेश भेजना भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354घ के अधीन पीछा करने के दायरे में नहीं आता है।
- कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अभिषेक मिश्रा बनाम कर्नाटक राज्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
अभिषेक मिश्रा बनाम कर्नाटक राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- अभिषेक मिश्रा और परिवादकर्त्ता पिंकी शर्मा की पहली मुलाकात जनवरी 2022 में हुई थी, जब दोनों दिल्ली में UPSC परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, जहाँ उन्होंने अध्ययन नोट्स के आदान-प्रदान के बहाने संवाद करना शुरू किया।
- 12 जुलाई 2023 को दिल्ली में मुलाकात के बाद उनकी दोस्ती प्रेम संबंध में परिवर्तित हो गई, परिवादकर्त्ता ने उसी कोचिंग क्लास में दाखिला ले लिया और याचिकाकर्त्ता की सहायता से आवास भी प्राप्त कर लिया।
- अंततः संबंध बिगड़ गए, जिसके कारण परिवादकर्त्ता ने 19 अक्टूबर 2023 को चंद्रा लेआउट पुलिस थाने, बेंगलुरु में परिवाद दर्ज कराया, जिसमें अभिकथित किया गया कि याचिकाकर्त्ता ने उससे विवाह करने का वचन दिया था, किंतु उसके निजी वीडियो और तस्वीरें रिकॉर्ड कर लीं।
- परिवादकर्त्ता ने आगे अभिकथित किया कि याचिकाकर्त्ता दिल्ली से बेंगलुरु आ गया, उसका और उसके दोस्तों का पीछा करने लगा, उसकी निजी सामग्री दूसरों को दिखाने लगा, अपमानजनक भाषा का प्रयोग करने लगा और अंतरंग सामग्री को सोशल मीडिया पर प्रसारित करने की धमकी देने लगा।
- इन अभिकथनों के आधार पर, पुलिस ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354-ग (दृश्यरतिकता), 354-घ (पीछा करना), 504, 506 और 509, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66ङ और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(2)(फ) के अधीन अपराधों के लिये 2023 में अपराध संख्या 471 दर्ज किया।
- याचिकाकर्त्ता ने आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसमें तर्क दिया गया कि उसके और परिवादकर्त्ता के बीच सहमति से संबंध थे, 10 नवंबर 2023 को विवाह रजिस्ट्रीकृत किया गया था, और पूरी कार्यवाही विधि की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने कहा कि परिवाद और आरोप पत्र के सारांश की जांच करने पर, याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध कुछ अपराधों को शिथिल रूप से आरोपित किया गया था, जबकि अन्य पर उचित अभिकथन किये गए थे, जिसके लिये प्रत्येक कथित अपराध का व्यक्तिगत मूल्यांकन आवश्यक था।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि परिवाद और आरोपपत्र की विषयवस्तु धारा 354-ग के अधीन दृश्यरतिकता के अपराध को स्पष्ट रूप से स्थापित करती है, और यह भी कहा कि याचिकाकर्त्ता पर परिवादकर्त्ता के अंतरंग क्षणों और शरीर के अंगों के कई वीडियो रिकॉर्ड करने का अभिकथन है, जो यदि कायम रहे तो निस्संदेह दृश्यरतिकता का मामला बनता है। धारा 354-घ के अधीन पीछा करने के आरोप के संबंध में, न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण अंतर यह बताया कि केवल पक्षकारों के बीच संदेश भेजना या अभद्र भाषा वाले संदेशों का आदान-प्रदान करना पीछा करने के दायरे में नहीं आएगा, खासकर जब अभिकथन सहमति से वयस्कों के बीच लैंगिक क्रियाओं से संबंधित हों।
- न्यायालय ने पाया कि उपलब्ध सामग्री के आधार पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 504, 506 और 509 के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ङ और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(2)(फ) के अधीन अपराध कायम रह सकते हैं, तथा यह भी कहा कि यह निर्विवाद है कि याचिकाकर्त्ता को पता था कि परिवादकर्त्ता अनुसूचित जनजाति से है।
- न्यायालय ने कप्तान सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय के सिद्धांत को लागू किया, जिसमें इस बात पर बल दिया गया कि उच्च न्यायालयों को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अधीन कार्यवाही को रद्द नहीं करना चाहिये, जब मामलों में तथ्यों के गंभीर रूप से विवादित प्रश्न सम्मिलित हों, जिनकी विचारण न्यायालय में परीक्षा की आवश्यकता हो।
- न्यायालय ने केवल धारा 354-घ (पीछा करना) से संबंधित कार्यवाही को रद्द करते हुए याचिका को आंशिक रूप से अनुमति दे दी, जबकि अन्य सभी अपराधों से संबंधित याचिका को खारिज कर दिया, तथा स्पष्ट किया कि पीछा करने के लिये आगे के विचारण की अनुमति देना विधि की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
पीछा करना क्या है?
बारे में:
- पीछा करने को किसी व्यक्ति का लगातार पीछा करना या उसकी सम्मति के बिना उसके साथ निजी तौर पर संवाद करने का प्रयास करना कहा जाता है, जिसका उद्देश्य भय या परेशानी पैदा करना होता है।
विधिक उपबंध – भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354घ:
- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354घ के अनुसार, पीछा करना तब होता है जब कोई पुरुष किसी महिला का पीछा करता है और स्पष्ट अनिच्छा के बावजूद बारंबार उससे संपर्क करता है या संपर्क करने का प्रयत्न करता है, या उसके इंटरनेट, ई-मेल या इलेक्ट्रॉनिक संसूचना का प्रयोग किये जाने को मानीटर करता है।
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 77(1) अब "पीछा करने" (Stalking) से संबंधित उपबंधों को प्रतिस्थापित करती है, जो पूर्ववर्ती भारतीय दण्ड संहिता (IPC) के उपबंधों के स्थान पर लागू होती है।
आवश्यक तत्त्व:
- पीछा करने के आरोपों के लिये चार तत्त्व विद्यमान होने चाहिये: अपराधी पुरुष होना चाहिये, महिला के प्रति अवांछित दृष्टिकोण होना चाहिये, व्यवहार में पुनरावृत्ति या निरंतरता दिखनी चाहिये, तथा महिला की सम्मति का अभाव स्पष्ट होना चाहिये।
दण्ड:
- धारा 354घ के अधीन पहली बार अपराध करने पर 3 वर्ष तक का कारावास, जुर्माना या दोनों हो सकता है, जबकि पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि पर 5 वर्ष तक का कारावास, जुर्माना या दोनों हो सकता है।
निर्णय विधि:
- श्री देउ बाजू बोडके बनाम महाराष्ट्र राज्य (2016) में , बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एक ऐसे मामले में धारा 354घ लागू की, जिसमें निरंतर पीछा करने के कारण एक महिला की मृत्यु हो गई, और इस तरह के व्यवहार के गंभीर परिणामों पर प्रकाश डाला गया।
आपराधिक कानून
भारतीय नागरिक सुरक्षा सहित की धारा 413
15-Jul-2025
एशियन पेंट्स लिमिटेड बनाम राम बाबू एवं अन्य “दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 का परंतुक स्पष्ट रूप से पीड़ित को स्पष्ट रूप से यह अव्यवसित अधिकार प्रदान करता है कि वह दोषमुक्ति, कम दोषसिद्धि, अथवा अपर्याप्त प्रतिकर के विरुद्ध अपील कर सके।" न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और प्रशांत कुमार मिश्रा |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और प्रशांत कुमार मिश्रा ने निर्णय दिया कि अभियुक्त के कृत्यों के कारण नुकसान उठाने वाली कंपनी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 के परंतुक के अधीन एक "पीड़ित" है और वह दोषमुक्त होने के विरुद्ध अपील दायर कर सकती है, भले ही वह मूल परिवादकर्त्ता न हो।
- उच्चतम न्यायालय ने एशियन पेंट्स लिमिटेड बनाम राम बाबू एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया ।
एशियन पेंट्स लिमिटेड बनाम राम बाबू एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- 73 वर्षों से पेंट उत्पाद बनाने वाली सार्वजनिक कंपनी एशियन पेंट्स लिमिटेड को अपने ब्रांड नाम से कूटकृत उत्पादों के विक्रय की समस्या का सामना करना पड़ा। कंपनी ने व्यापार चिह्न और प्रतिलिप्यधिकार सहित अपने बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा के लिये एक बौद्धिक संपदा अधिकार सलाहकार फर्म, मेसर्स सॉल्यूशन को पावर ऑफ अटॉर्नी दी।
- मेसर्स सॉल्यूशन ने व्यापार चिह्न उल्लंघन और प्रतिलिप्यधिकार उल्लंघनों का अन्वेषण करने के लिये श्री पंकज कुमार सिंह को नियुक्त किया। 06.02.2016 को, श्री पंकज कुमार सिंह ने तुंगा स्थित राम बाबू की गणपति ट्रेडर्स की दुकान पर कूटकृत एशियन पेंट्स उत्पाद पाए।
- पुलिस को कूटकृत पेंट से भरी 12 बाल्टियाँ मिलीं जिन पर एशियन पेंट्स का मार्क तो था, किंतु नीचे असली कंपनी का मार्क नहीं था। राम बाबू को गिरफ्तार कर लिया गया और भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420/120ख और प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम की धारा 63/65 के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 30/2016 दर्ज की गई।
- विचारण न्यायालय ने 2019 में राम बाबू को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420 और प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम की धारा 63 और 65 के अधीन दोषसिद्ध ठहराते हुए कारावास और जुर्माने की सज़ा सुनाई थी। राम बाबू ने प्रथम अपील न्यायालय में अपील की, जिसने फरवरी 2022 में उन्हें दोषमुक्त कर दिया।
- एशियन पेंट्स ने दोषमुक्त किये जाने के निर्णय को चुनौती देते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 के उपबंध के अधीन उच्च न्यायालय में अपील दायर की। उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए अपील खारिज कर दी कि एशियन पेंट्स न तो परिवादकर्त्ता है और न ही पीड़ित, जिससे उनकी अपील विचारणीय नहीं रह जाती।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय के निर्णय ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 के उपबंध को पूरी तरह से नकार दिया है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 एक स्व-निहित और स्वतंत्र उपबंध है जो दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्य प्रावधानों, विशेष रूप से धारा 378 से स्वतंत्र रूप से कार्य करता है।
- न्यायालय ने कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2(बक) में 'पीड़ित' की व्यापक परिभाषा ऐसे किसी भी व्यक्ति के रूप में दी गई है जिसे अभियुक्त के कृत्य या चूक के कारण नुकसान या क्षति हुई हो। एशियन पेंट्स को अपने ब्रांड नाम से बेचे जा रहे कूटकृत उत्पादों से स्पष्ट रूप से वित्तीय नुकसान और प्रतिष्ठा को ठेस पहुँची है।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 के उपबंध पीड़ितों को किसी भी दोषमुक्त किये गए आदेश के विरुद्ध अपील करने का स्पष्ट अधिकार देता है। यह अधिकार इस बात से अप्रभावित है कि दोषमुक्त किया गया आदेश विचारण न्यायालय से आता है या प्रथम अपील न्यायालय से।
- न्यायालय ने कहा कि जब प्रथम अपील न्यायालय स्तर पर दोषमुक्त किया जाता है, तो पीड़ित की अपील अगले उच्चतर न्यायिक स्तर, अर्थात् उच्च न्यायालय, में होती है। इस अधिकार का प्रयोग करने के लिये पीड़ित का परिवादकर्त्ता या इत्तिला देने वाला होना आवश्यक नहीं है।
- न्यायालय ने कहा कि अपराध के पीड़ितों के लाभ के लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 के उपबंध का उदारतापूर्वक और प्रगतिशील निर्वचन किया जाना चाहिये। यह उपबंध पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा और ऐसे मौलिक अधिकारों का सृजन करने के हितकारी उद्देश्य की पूर्ति करता है जो संहिता में पहले विद्यमान नहीं थे।
- न्यायालय ने कहा कि अपराधों में पीड़ित सबसे ज़्यादा पीड़ित होते हैं और न्यायालय की कार्यवाही में उनकी भूमिका सीमित होती है, इसलिये आपराधिक न्याय प्रणाली में विकृति को रोकने के लिये विशेष अधिकार और प्रतिकर आवश्यक है। यह उपबंध पीड़ितों के लिये न केवल दोषमुक्त होने के विरुद्ध, अपितु कम गंभीर अपराधों में दोषसिद्धि या अपर्याप्त प्रतिकर के विरुद्ध भी अपील करने के अधिकार का मामला बनाता है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 413 क्या है?
- धारा 413 - जब तक अन्यथा उपबंधित न हो किसी अपील का न होना
- दण्ड न्यायालय के किसी निर्णय या आदेश से कोई अपील इस संहिता द्वारा या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा उपबंधित हो उसके सिवाय न होंगी।
- धारा 413 का परंतुक:
- पीडित को न्यायालय द्वारा किसी अभियुक्त को दोषमुक्त करने वाले किसी आदेश या कम अपराध के लिये दोषसिद्ध करने वाले किसी या अपर्याप्त प्रतिकर अधिरोपित करने वाले आदेश के विरुद्ध अपील करने का अधिकार होगा।
- ऐसी अपील उस न्यायालय में होगी जिसमें ऐसे न्यायालय की दोषसिद्धि आदेश के विरुद्ध सामान्यतः अपील की जाती है।
- प्रमुख उपबंध:
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता धारा 413 के अधीन सामान्य नियम यह है कि किसी आपराधिक न्यायालय के किसी भी निर्णय या आदेश के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती, सिवाय संहिता द्वारा या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा जैसा उपबंधित हो उसके सिवाय।
- परंतुक पीड़ितों को तीन विशिष्ट परिस्थितियों में अपील दायर करने का सांविधिक अधिकार प्रदान करता है: जब न्यायालय अभियुक्त को दोषमुक्त कर देता है, जब न्यायालय आरोप से कम अपराध के लिये दोषसिद्ध ठहराता है, या जब न्यायालय अपर्याप्त प्रतिकर देता है।
- पीड़ित द्वारा दायर अपील उसी अपीलीय पदानुक्रम का अनुसरण करती है, जैसा कि उसी न्यायालय द्वारा दिये गए दोषसिद्धि आदेशों के विरुद्ध अपील में किया जाता है।
- यह उपबंध सुनिश्चित करता है कि पीड़ितों को आपराधिक न्याय प्रणाली में भागीदारी का अधिकार प्राप्त हो तथा वे ऐसे न्यायिक निर्णयों को चुनौती दे सकें जो उनके हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हों।
- इस उपबंध के अधीन अपील करने का अधिकार स्वतंत्र है और इसके लिये पीड़ित को मामले में परिवादकर्त्ता या इत्तिला देने वाला होने की आवश्यकता नहीं है।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अध्याय 31 के अंतर्गत यह उपबंध दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 372 के पूर्ववर्ती उपबंध के समान संरचना और दायरे को बनाए रखता है, जो नए आपराधिक न्याय ढाँचे के अंतर्गत पीड़ितों के अधिकारों में निरंतरता सुनिश्चित करता है।