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आपराधिक कानून
अतिरिक्त अंवेषण
03-Jun-2025
धरम चंद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य “अतः, उपर्युक्त निर्णय के आलोक में, संज्ञान लेने के बाद भी, मजिस्ट्रेट द्वारा CrPC की धारा 173 (8) के अंतर्गत शक्ति का प्रयोग पुलिस को अतिरिक्त अंवेषण करने का निर्देश देने के लिये किया जा सकता है।” न्यायमूर्ति सुशील कुकरेजा |
स्रोत: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति सुशील कुकरेजा की पीठ ने कहा कि संज्ञान लेने के बाद भी मजिस्ट्रेट द्वारा CrPC की धारा 173 (8) के अंतर्गत शक्ति का प्रयोग करके पुलिस को अतिरिक्त अंवेषण करने का निर्देश दिया जा सकता है।
- हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने धर्म चंद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
धरम चंद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- हिमाचल प्रदेश दुग्ध संघ, मंडी इकाई के क्लर्क लाल चंद ने शिकायत दर्ज कराई थी कि प्लांट से बाहर रास्ते में दूध बेचा जा रहा था और आय का गबन किया गया।
- 01.07.2002 को धर्म चंद और अन्य के विरुद्ध IPC की धारा 409, 420, 467, 468, 471, 120-B और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13 (2) के अंतर्गत FIR संख्या 10/2002 दर्ज की गई थी।
- MCC कटौला के प्रभारी धर्म चंद विभिन्न सहकारी समितियों से दूध एकत्र करने और चक्कर मिल्क प्लांट तक पहुँचाने के लिये उत्तरदायी थे।
- अंवेषण में पता चला कि जून 1994 से मार्च 2001 के बीच चक्कर इकाई में 5,56,656 रुपये मूल्य का दूध कम प्राप्त हुआ था।
- विशेष रूप से, अप्रैल 1995 से मार्च 1996 के लिये, 1,07,198 रुपये मूल्य का 12,683 लीटर दूध कम जमा पाया गया, जो कथित तौर पर पारगमन के दौरान याचिकाकर्ता द्वारा अवैध बिक्री के कारण था।
- मुकदमे के दौरान, धरम चंद ने साक्ष्यों की कमी और प्रक्रियात्मक कमियों का तर्क देते हुए, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 227 के अंतर्गत आरोप मुक्त करने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया।
- ट्रायल कोर्ट ने आवेदन को खारिज कर दिया तथा पुलिस को अतिरिक्त अंवेषण करने और यदि आवश्यक हो तो आरोप पत्र फिर से दाखिल करने का निर्देश दिया।
- व्यथित होकर, याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय के समक्ष एक आपराधिक पुनरीक्षण दायर किया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्च न्यायालय ने पाया कि CrPC की धारा 173(8) के अंतर्गत ट्रायल कोर्ट को संज्ञान लेने के बाद भी अतिरिक्त अंवेषण का निर्देश देने का अधिकार है।
- न्यायालय ने विनुभाई हरिभाई मालवीय बनाम गुजरात राज्य (2019) में उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर विश्वास किया, जिसमें कहा गया था कि मजिस्ट्रेट मुकदमा आरंभ होने से पहले अतिरिक्त अंवेषण का निर्देश दे सकता है।
- न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि संविधान का अनुच्छेद 21 निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण अंवेषण की मांग करता है, जिसके लिये सच्चाई को प्रकटित करने के लिये अतिरिक्त अंवेषण की आवश्यकता हो सकती है।
- न्यायालय ने पाया कि प्रारंभिक अंवेषण अधूरी थी, विशेषकर इस तथ्य को लेकर कि बेचे गए दूध से प्राप्त आय TR-V बिलों के माध्यम से सरकारी खजाने में जमा की गई थी या नहीं।
- न्यायालय ने कहा कि इन पहलुओं की पूरी अंवेषण किये बिना इस स्तर पर आरोपी को दोषमुक्त करना समय से पहले होगा।
- पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई तथा अतिरिक्त अंवेषण के लिये ट्रायल कोर्ट के आदेश को विधिक एवं न्यायोचित माना गया।
अतिरिक्त अंवेषण क्या है?
- CrPC की धारा 173 (8) अतिरिक्त अंवेषण का प्रावधान करती है।
- यह प्रावधान धारा 173(2) के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को पुलिस रिपोर्ट (आरोप पत्र) सौंपे जाने के बाद भी अपराध की अतिरिक्त अंवेषण की अनुमति देता है।
- यदि, ऐसी अतिरिक्त अंवेषण के दौरान, पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को कोई नया साक्ष्य प्राप्त होता है, चाहे वह मौखिक हो या दस्तावेजी, तो उसे मजिस्ट्रेट को एक पूरक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
- पूरक रिपोर्ट मूल आरोप पत्र के समान निर्धारित प्रारूप में होनी चाहिये।
- धारा 173 की उपधारा (2) से (6) में निहित प्रक्रियात्मक नियम, जहाँ तक लागू हो, इन अनुपूरक रिपोर्टों पर भी लागू होंगे।
- यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि अंवेषण खुली एवं लचीली बनी रहे, जिससे न्याय सुनिश्चित करने के लिये अतिरिक्त तथ्यों की खोज की जा सके।
- यह प्रावधान अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 193 (9) के अंतर्गत प्रदान किया गया है।
- BNSS की धारा 193 (9) में एक परंतुक भी जोड़ा गया है जो CrPC की धारा 173 (8) में नहीं था:
- परंतुक में यह प्रावधान है कि:
- मुकदमे के दौरान अतिरिक्त अंवेषण मामले की सुनवाई कर रहे न्यायालय की अनुमति से की जा सकेगी तथा यह नब्बे दिनों की अवधि के अंदर पूरी की जाएगी, जिसे न्यायालय की अनुमति से बढ़ाया जा सकता है।
- परंतुक में यह प्रावधान है कि:
अतिरिक्त अंवेषण से संबंधित ऐतिहासिक निर्णय क्या है?
- विनुभाई हरिभाई मालवीय एवं अन्य बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य, (2019)
- न्यायालय ने इस दृष्टिकोण की आलोचना की कि मजिस्ट्रेट की अतिरिक्त अंवेषण का आदेश देने की शक्ति प्रक्रिया जारी होने या आरोपी के न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के बाद समाप्त हो जाती है।
- निर्णय ने स्पष्ट किया कि आपराधिक मुकदमा केवल आरोप तय होने के बाद ही आरंभ होता है, न कि केवल संज्ञान लेने के बाद।
- न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि संविधान के अनुच्छेद 21 में निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण अंवेषण की आवश्यकता है, जिसके लिये अतिरिक्त अंवेषण की आवश्यकता हो सकती है।
- इसने नोट किया कि पुलिस के पास CrPC की धारा 173(8) के अंतर्गत मजिस्ट्रेट की अनुमति के अधीन, परीक्षण चरण तक अतिरिक्त अंवेषण करने की शक्ति बनी रहती है।
- यह विचार कि मजिस्ट्रेट का पर्यवेक्षी अधिकारिता परीक्षण-पूर्व कार्यवाही के बीच में ही समाप्त हो जाता है, न्याय का उपहास घोषित किया गया।
- मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ धारा CrPC की 156(1), 156(3), 2(h) एवं 173(8) से प्राप्त होती हैं, और सभी परीक्षण-पूर्व चरणों में उपलब्ध होती हैं।
- न्यायालय ने पुष्टि की कि मजिस्ट्रेट मामले के तथ्यों के आधार पर आगे की जाँच का आदेश भी दे सकता है।
- न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि सत्यता को प्रकटित करना एवं न्याय सुनिश्चित करना (जिसमें दोषियों की पहचान करना और निर्दोषों की रक्षा करना शामिल है) विलंब से बचने से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
सिविल कानून
संप्रतीक और नाम अधिनियम
03-Jun-2025
पुडुचेरी बॉडी बिल्डर्स एंड फिटनेस एसोसिएशन बनाम भारत सरकार " बॉडीबिल्डिंग में, मिस्टर या मिस इंडिया जैसे खिताब सामान्यत: विजेताओं को दर्शाने के लिये प्रयोग किये जाते हैं, न कि व्यापार या व्यवसाय के लिये; इस तरह का उपयोग फिटनेस को बढ़ावा देता है और संप्रतीक और नाम अधिनियम की धारा 3 का उल्लंघन नहीं करता है।" न्यायमूर्ति भरत चक्रवर्ती |
स्रोत: मद्रास उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति भरत चक्रवर्ती की पीठ ने निर्णय दिया कि बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिताओं में “मिस्टर इंडिया” जैसे शीर्षकों का उपयोग करना संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950 की धारा 3 का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि यह केवल विजेता को दर्शाता है और राष्ट्रीय नाम का वाणिज्यिक दुरुपयोग नहीं है।
- मद्रास उच्च न्यायालय ने पुडुचेरी बॉडी बिल्डर्स एंड फिटनेस एसोसिएशन बनाम भारत सरकार (2025) मामले में यह निर्णय सुनाया ।
पुडुचेरी बॉडी बिल्डर्स एंड फिटनेस एसोसिएशन बनाम भारत सरकार (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- पुडुचेरी बॉडी बिल्डर्स एंड फिटनेस एसोसिएशन ने मद्रास उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर कर कुछ निजी प्रत्यर्थियों को विशिष्ट शीर्षकों का उपयोग करके बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिताएं आयोजित करने से रोकने की मांग की।
- याचिकाकर्त्ता एसोसिएशन ने विशेष रूप से इन खेल आयोजनों के विज्ञापनों और आयोजन में "मिस्टर इंडिया", "ओपन मिस्टर साउथ इंडिया" और "नेशनल" जैसे शीर्षकों के प्रयोग किये जाने पर आपत्ति व्यक्त की।
- विचाराधीन प्रतियोगिताएं 3 मई 2025 को रॉक बीच, पुडुचेरी में और 25 मई 2025 को कराईकल बीच पर आयोजित की जानी थीं, जिनका आयोजन 6वें से 8वें प्रत्यर्थियों द्वारा संचालित निजी संघों द्वारा किया गया था।
- याचिकाकर्त्ता का मुख्य तर्क यह था कि बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिताओं के विज्ञापन और संचालन में ऐसे शीर्षकों का प्रयोग संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950 की धारा 3 का उल्लंघन है।
- एसोसिएशन ने तर्क दिया कि उचित प्राधिकरण के बिना "मिस्टर इंडिया" और "ओपन मिस्टर साउथ इंडिया" जैसे नामों का प्रयोग देश के नाम का अनुचित प्रयोग है, जो विधि के अधीन निषिद्ध है।
- याचिकाकर्त्ता ने एक रिट जारी कर सरकारी प्रत्यर्थियों (प्रथम से पाँचवें प्रत्यर्थियों) को निदेश देने की मांग की कि वे निजी प्रत्यर्थियों को इन विवादित शीर्षकों का प्रयोग करके ऐसे किसी भी आयोजन को आयोजित करने से रोकें।
- युवा मामले एवं खेल मंत्रालय के माध्यम से भारत सरकार, पुडुचेरी सरकार और संबंधित विभागों को याचिका में प्रत्यर्थी बनाया गया।
- केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने कहा कि प्रतियोगिताएं निजी संस्थाओं द्वारा आयोजित की जा रही थीं और इस मामले में उनकी कोई प्रत्यक्ष संलिप्तता नहीं थी।
- याचिकाकर्त्ता ने निजी बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिताओं में ऐसे खिताबों के प्रयोग पर रोक लगाने के अपने तर्कों के समर्थन में उसी न्यायालय द्वारा पूर्व के एक मामले (W.P. No. 33576 of 2024)) में दिये गए अंतरिम आदेश का भी हवाला दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति डी. भरत चक्रवर्ती ने कहा कि बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिताओं में "मिस्टर इंडिया" या "मिस साउथ इंडिया" जैसे शीर्षकों का प्रयोग संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950 की धारा 3 का उल्लंघन नहीं है।
- न्यायालय ने यह अवलोकन किया कि बॉडीबिल्डिंग खेल के क्षेत्र में यह एक सर्वविदित एवं सामान्य प्रथा है कि प्रतियोगिता के विजेताओं को पारंपरिक रूप से "मिस्टर" अथवा "मिस" के साथ भौगोलिक पदनाम जैसे "साउथ इंडिया", "इंडिया" अथवा "वर्ल्ड" आदि के माध्यम से संबोधित किया जाता है।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि इस तरह का प्रयोग बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिताओं के विजेता को संदर्भित करने के समान है और यह किसी राष्ट्रीय संप्रतीक या देश के नाम का व्यापार, कारोबार, व्यवसाय या पेशे के लिये प्रयोग किये जाने के अंतर्गत नहीं आता।
- न्यायालय ने आगे कहा कि बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिताएं मुख्य रूप से व्यक्तियों के बीच शारीरिक फिटनेस को प्रोत्साहित करने के लिये आयोजित की जाती हैं, जो एक वैध खेल और स्वास्थ्य संवर्धन उद्देश्य की पूर्ति करती हैं।
- माननीय न्यायमूर्ति ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 3 के अधीन प्रतिषेध केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना व्यापार, कारबार, आजीविका, पेटेंट, व्यापार चिह्न (ट्रेडमार्क) या डिजाइन में राष्ट्र के नाम या संप्रतीक के प्रयोग पर लागू होता है।
- याचिकाकर्त्ता के तर्कों में कोई योग्यता न पाते हुए तथा सुसंगत विधिक उपबंधों का उल्लंघन न पाते हुए, न्यायालय ने रिट याचिका को खारिज कर दिया, तथा कहा कि बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिताओं में इस तरह के शीर्षकों का प्रयोग करने की पारंपरिक प्रथा न तो अनुचित है और न ही प्रवृत्त विधि के अधीन अपराध है।
संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950
बारे में
- संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950 संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है, जो व्यावसायिक और वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिये कुछ संप्रतीकों और नामों के अनुचित प्रयोग के निवारण के लिये बनाया गया है।
- यह अधिनियम 1 सितम्बर, 1950 को लागू हुआ तथा संपूर्ण भारत पर लागू है तथा भारत के बाहर रहने वाले भारतीय नागरिकों पर भी लागू होता है।
- अधिनियम के अंतर्गत, "संप्रतीक" से कोई ऐसा संप्रतीक, मुद्रा, ध्वज, राज्यचिह्न कोर्ट ऑफ आर्म्स या चित्र-प्रतिरूपेण अभिप्रेत है, जबकि "नाम" में किसी नाम का संक्षिप्त रूप सम्मिलित है।
- यह अधिनियम केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना व्यापार, कारबार, आजीविका, पेटेंट, व्यापार चिह्न (ट्रेडमार्क) या डिजाइन के लिये विनिर्दिष्ट नामों और संप्रतीकों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
- यह अधिनियम के उपबंधों का उल्लंघन करते हुए किसी भी प्रतिबंधित नाम या संप्रतीक को धारण करने वाली कंपनियों, फर्मों, व्यापार चिह्न (ट्रेडमार्क), डिजाइन या पेटेंट के रजिस्ट्रीकरण पर भी प्रतिबंध लगाता है।
- कोई भी व्यक्ति जो अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करेगा, उसे पांच सौ रुपये तक के जुर्माने से दण्डित किया जा सकेगा।
- इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी अपराध के लिये अभियोजन केंद्रीय सरकार या प्राधिकृत अधिकारियों की पूर्व मंजूरी के बिना संस्थित नहीं किया जा सकता।
- केंद्रीय सरकार को आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से अनुसूची में कुछ जोड़ने या परिवर्तन करके संशोधन करने का अधिकार है।
- अनुसूची में संरक्षित नामों और संप्रतीकों की 28 श्रेणियां सम्मिलित हैं, जिनमें भारतीय राष्ट्रीय ध्वज, सरकारी संप्रतीक, सांविधानिक प्राधिकारियों के नाम तथा विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठन सम्मिलित हैं।
धारा 3
- धारा 3 के अधीन यह प्रतिषेध किया गया है कि कोई भी व्यक्ति अनुसूची में वर्णित किसी भी नाम या संप्रतीक, या उसकी मिलती-जुलती नकल का प्रयोग अथवा प्रयोग जारी नहीं रखेगा, जब तक कि उसे केंद्र सरकार से पूर्वानुमति प्राप्त न हो।
- यह प्रतिषेध किसी भी व्यापार, कारबार, आजीविका या वृत्ति के उद्देश्य से, या किसी पेटेंट के शीर्षक में, या किसी व्यापार चिह्न (ट्रेडमार्क)या डिजाइन में ऐसे नामों या संप्रतीकों के प्रयोग पर लागू होता है।
- यह धारा वर्तमान में प्रवृत्त किसी अन्य विधि में निहित किसी बात के होते हुए भी लागू होगी, तथा इसका प्रभाव सर्वोपरि होगा।
- अपवाद केवल ऐसे मामलों में और ऐसी शर्तों के अधीन अनुमत हैं, जिन्हें केंद्रीय सरकार द्वारा नियमों के माध्यम से निर्धारित किया जाए।
- अनुमति केंद्रीय सरकार या सरकार के ऐसे अधिकारी से प्राप्त की जानी चाहिये जिसे केंद्रीय सरकार द्वारा इस संबंध में प्राधिकृत किया गया हो।
- इस धारा का कोई भी उल्लंघन अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत दण्डनीय अपराध माना जाएगा, जिसके लिये पाँच सौ रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।